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सोमवार, 16 अगस्त 2021

शिव जी की आराधना में कौन सा मन्त्र जप करना चाहिए:

शिव जी की आराधना में कौन सा मन्त्र जप करना चाहिए:

१ —ॐ नमः शिवाय

२—नमः शिवाय


उत्तर

★तो आइए पहले ॐ का मूल अर्थ समझते हैं।

● यह ॐ -अ उ म इन तीन से मिलकर बना है। इस ॐ को प्रणव भी कहते हैं ये तीन अक्षर सृष्टि स्थिति लय के और क्रमशः ब्रह्मा विष्णु महेश के प्रतीक भी हैं। त्रिकाल संध्या में प्रातः मध्याह्न संध्या गायत्री के भी प्रतीक मान सकते हैं।
★ॐ की व्याख्या मुण्डक उपनिषद में की गई है जो संभवतः सबसे छोटा उपनिषद है । इसमें बताया गया है कि यह ॐ अविनाशी परब्रह्म परमात्मा ही है।इस ॐ में चार पद हैं।इसके स्थूल जगत सूक्ष्म जगत और कारण जगत ये तीन पद हैं जो चिन्तन में आते हैं।पर इस प्रणव ओंकार का चौथा पद या रूप भी है जो अ-चिन्तय है। ॐ का यह चौथा रूप है - शान्तं शिवं अद्वैतं चतुर्थं । (मुण्डक छन्द ७) शिव का यहाँ सामान्य अर्थ कल्याणकारी से है शिव शंकर से नहीं है। (शैव दर्शन वाले चाहे तो मान सकते हैं।)

ॐ ओम का अर्थ इस प्रकार परमात्मा ब्रह्म तत्व हुआ। इसलिए अधिकतर मंत्रों की शुरुआत ॐ से होती है पर कई बार बिना ॐ के भी मन्त्र लिखे जाते हैं।

★मन्त्र में वर्णाक्षर सङ्ख्या नियत है फिक्स है । मन्त्र में sound is the lowest form of ,energy—ध्वनि ऊर्जा का सबसे आरम्भिक रूप है—इस सिद्धांत पर कार्य होता है। जैसे हमने ताप गतिक यांत्रिक विद्युत परमाणु आदि विविध ऊर्जा रूपों केफार्मूले बनाए हैं वैसे ही मन्त्र की ऊर्जा के फार्मूले हैं।

इसके वर्णाक्षरों से मन्त्र सृष्टा ऋषियों ने इसकी ऊर्जा तय की हैऔर उद्देश्य भेद से मन्त्र जप व विधि तय की है।मन्त्र को इस प्रकार गणित का या कहें विज्ञान के सूत्रकी तरह समझें।इसे हम बदल नहीं सकते।

इसलिए जब बिना ॐ के मन्त्र दिया वहाँ ॐ नहीं लगाना चाहिए।

जहाँ ॐ लगा है वहां लगाना चाहिए।इसी तरह जहाँ नमः लगा वहाँ एक्स्ट्रा नमः नहीं लगाना चाहिए।(व्हाट्सएप्प पर नारद कृत 12 अक्षर के मन्त्र ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस मंत्र में एक्सट्रा नमः बाद में भी लगा हुआ प्रेषित होता रहता है जो इसे 14 अक्षर का बना देता है। )
अब हम ॐ नमः शिवाय और नमः शिवाय इन दो मंत्रों में क्या अंतर है, इस पर चर्चा करते हैं।

●ॐ नमः शिवाय— में छह अक्षर है यह षड अक्षर है।

●नमः शिवाय —में पाँच अक्षर हैं।यह पंचाक्षर है।

●मंत्रों में हम संख्या की दृष्टि से एक दो तीन चार पांच छह इत्यादि कई अक्षरों वाले मन्त्र देखते हैं।इनके पीछे कुछ उद्देश्य होते हैं जो हमें स्पष्ट रूप से लिखे नहीं मिलते केवल अनुमान लगाना होता है।

★1 ॐ युक्त नमः शिवाय मन्त्र आध्यात्मिक क्षेत्र की साधना की दृष्टि से उत्तम है क्योंकि ॐ परब्रह्म परमात्म स्वरूप है

◆इस ॐ युक्त नमः शिवाय के छह अक्षर वाले मन्त्र को उसे करना चाहिए जो सांसारिक उपलब्धि नहीं चाहता ,आत्म तत्व का अन्वेषण करना चाहता है।


चित्र परिचय: सृष्टि के मूल तत्व की खोज के लिए बनी विश्व की सबसे बड़ी कण भौतिकी प्रयोग शाला CERN ,स्विट्ज़रलैण्ड के प्रवेश द्वार पर नटराज शिव की प्रतिमा स्थापना के 18 जून 2004 समय औपचारिकता पूर्णकरते वैज्ञानिक।इस प्रतिमा के नीचे भौतिकविद फ्रिट्ज़ोफ काप्रा का यह वाक्य लिखा है कि शिव का यह नृत्य आधुनिक पार्टिकल फिजिक्स की दृष्टि से सूक्ष्म कण भौतिकी का ही नृत्य है जो समस्त अस्तित्व का कारण है।

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मुण्डक उपनिषद 2–2–4 में कहा गया है-,

प्रणवो धनुः शरो आत्मा, ब्रह्म तल्लक्ष्यम उच्यते।

अर्थात ओमकार या प्रणव ही धनुष है, आत्मा ही बाण है, ब्रह्म उसका लक्ष्य है ऐसा कहा गया है।

★2 नमः शिवाय यह पाँच अक्षर का मन्त्र भी अलग से है। इतना ही क्यों केवल इन पाँच अक्षरों — न म शि व य में से प्रत्येक अक्षर से छन्द आरम्भ करते हुए बहुश्रुत शिवपञ्चाक्षरस्तोत्र भी है जिसमें शुरू में ॐ नहीं लगाया गया है।यह

-'न' नागेन्द्र हाराय से शुरू होकर 'य' यक्षस्वरूपाय…पर सम्पन्न होता है
पांच अक्षर के इस शिव मन्त्र नमः शिवाय का उद्गम या स्रोत हम शुक्ल यजुर्वेद के अंतर्गत रुद्राष्टाध्यायी में देख सकते हैं जिसमें
नमः शिवाय च शिव तराय च
ऐसा पाठ दिया गया है ।रुद्र चमकम में भी ऐसा पाठ है।
एक महत्व पूर्ण बात◆कल्याण के शिव महापुराण अंक 2017 विशेषांक पूर्वार्ध के अध्याय 10 में शिव पंचाक्षर मन्त्र की महत्ता विस्तृत रूप से दी गई है।
जबकि अध्याय 17 में शिव के ओमकार स्वरूप को सूक्ष्म और पंचाक्षर को स्थूल रूप बताया गया है।
★★ इससे स्पष्ट होता है कि ॐ निराकार शिव का रूप है जबकि पंचाक्षर साकार पञ्च भूतात्मक जगत रूप शिव का रूप है★★
★★।(शाक्त ,वैष्णव गणपति आदि सभी मतों में उनके देव ,ओं कार या प्रणव रूप ही हैं )

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●इससे यह निष्कर्ष निकल सकता है कि जो सांसारिक समस्याओं से शीघ्र त्राण, राहत चाहते हैं उन्हें बिना ॐ लगाए केवल —नमः शिवाय —इस पांच अक्षर के मन्त्र का जप करना चाहिए।

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●और जब कोई सांसारिक संमस्या या इच्छा नहीं रह गई हो तो ॐ नमः शिवाय -इस छह अक्षर मन्त्र का जप करना चाहिए।

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●मेरा तो यही सुझाव वर्षों से रहता आया है।

नौकरी,स्वास्थ्यलाभ, विवाह, इच्छित संतान, दाम्पत्य सुख, पद प्राप्ति आदि की सांसारिक कामना के मामलों में जन्मपत्रिका के अनुसार शिव उपासना के सुझाव व प्रदोष व्रत के सुझाव का पालन करने पर सिद्धि की दृष्टि से शिव उपासना में अन्य स्तोत्र इत्यादि के साथ★ पंचाक्षर जप करने वाले भक्त जन की कामना शीघ्रता से सिद्ध होती देखी गई।यह मेरा अनुभव भी है।★

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●अब कोई कहे कि ॐ सहित और ॐ रहित पंचाक्षर जप वाले में से किसकी कामना जल्दी सिद्ध हुई तो ऐसी कोई वर्कशाप इस श्रद्धा जगत में आयोजित होती नहीं देखी, सम्भव ही नहीं।

●कुछ लोग जिद करते हैं कि ॐ लगाने में क्या कोई बुराई है ? बहुत से मंत्रों में ॐ लगा रहता है।वे ठीक कहते हैं ; पर यह भी तो देखें कि और देव तो वर देने थोड़ी देर भी लगाते हैं पर शिव जी देर नहीं लगाते।इसीलिए तो शिव "आशुतोष" हैं: आशु अर्थात शीघ्र , तोष अर्थात प्रसन्न।

वैसे शिव उपासना में भी ॐ से तो आत्म ज्ञान जैसी सर्वोत्तम भलाई आत्मज्ञान-भी शीघ्र ही है पर वह अभी चाहिए कहाँ?
अति महत्वपूर्ण :श्रीमद्भागवत में भी शुकदेव जी से परीक्षित का प्रश्न है कि विष्णु भक्त सांसारिक कष्ट क्लेश भोगते हुए देखे जाते हैं जबकि शिवभक्त भोग ऐश्वर्य सम्पन्न देखे जाते हैं -ऐसा क्यों ?परन्तु इस पर चर्चा फिर कभी ।

●तो बात ये कि अभी तो परीक्षा में पास होना है, विवाह होना संतान होना प्रमोशन होना बढिया डेपुटेशन होना चुनाव जीतना मांगता अपुन को। तो भैया सांसारिक कामना की शीघ्र पूर्ति के लिए नमः शिवाय ही जपें।

★वैसे भी केवल शिव ही आशुतोष हैं और सांसारिक कामना पूरी करने में देर नहीं करते इसलिए ऐसी स्थिति में शिव को शीघ्र प्रसन्न कर जल्दी कार्य सिद्धि के लिए, शब्द-स्पर्श-रूप-रस-गंध इन पंच तन्मात्राओं की सुख की इच्छा वाले साधक को पंचभौतिक जगत के प्रतिनिधि रूप शिव के पाँच अक्षर का मन्त्र ही करना चाहिए :

।।नमः शिवाय।।

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