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रविवार, 1 अगस्त 2021

अग्निहोत्र विज्ञान पर जैविक जीवन शैली विज्ञान मिशन की अवधारणा


अग्निहोत्र विज्ञान पर जैविक जीवन शैली विज्ञान मिशन की अवधारणा

🌴⛳अग्निहोत्र ⛳🌴
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🙇सप्त ऊर्जा का प्रस्फुटन और पंचमहाभूतो का सृजन🙇

अग्निहोत्र हजारों वर्ष पुरानी हमारे ऋषि परम्परा द्वारा अविष्कृत एक पूर्ण वैज्ञानिक विधा है,मान्यता के अनुसार इस विज्ञान को भगवान महर्षि परसुराम ने खोजा है जो मध्यकाल के समय विलुप्त हो गया था जिसे सन्त स्वामी गजानन महाराज  की प्रेरणा से भोपाल के माधव स्वामी पोतदार जी ने महाशिवरात्रि के दिन 1967 ईस्वी को पुनः पुर्नजीवित किया है।

अग्निहोत्र के सशक्त प्रमाण हमारे वेदशास्त्रो,रामायण, महाभारत और श्रीमद्भागवत गीता में तो है,आधुनिक विज्ञान व इंटरनेट पर भी बहुत से वेबसाइस में भी उपलब्ध है,अब यह विश्व के हर देश में दिनोंदिन फैलती जा रही है।

अपना जैविक जीवन शैली विज्ञान की स्पष्ट मान्यता है कि
पदार्थ का सूक्ष्म स्वरूप रूप,रंग,गन्ध,स्वर और स्पर्श पंचमहाभूतो की सूक्ष्म ऊर्जा है।
ये ही पांचों सूक्ष्म ऊर्जा प्रकृति के हर कण(अणु-जीवाणु) का निर्माण करती है।

अग्निहोत्र के भस्म में प्रकृति को बनाने वाले सभी 108 अणु विधमान है,अपने जांच रिपोर्ट बहुत से अणु मिल चुके है और आज का विज्ञान जैसे जैसे विकसित होता जाएगा बाकी के अणु-परमाणु भी मिलते चले जायेंगे।

इसके भस्म से बहुत सी औषधी भी बना रहे है जिनके बनाने का  वर्णन "अग्निहोत्र : स्वास्थ्य क्रांति" पुस्तक में है।

मिशन की स्पष्ट मान्यता है कि अग्निहोत्र में अग्निहोत्र की आहुति डालते ही पात्र की अंदर के अलाव (धधकती आग) में परमाणु विखंडन की एक सूक्ष्म क्रिया होती है,परमाणुओं के टूटने से प्रकृति को बनाने वाली सात ऊर्जा क्रमशः शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी,चन्द्रघण्टा,कुष्मांडा,
स्कन्द माता,कात्यायनी, कालरात्रि  प्रकट होती है जो पंचमहाभूतो का  सृजन करती है और इन्ही पंचमहाभूतो के गुण क्रमशः रूप,रंग,गन्ध,स्वर,स्पर्श की प्रत्यक्ष अनुभूति होती है। मन आनंद से भर जाता है,बुद्धि की कुशाग्रता बढ़ती है। नित्य अग्निहोत्र से क्रोध,लोभ,मोह,मद,अहंकार समाप्त होने लगती है,व्यशन छूटने लगते है।
 कई कई बार अग्निहोत्र से सात रंग निकलते देखा गया है, दिखने वाले सात रंग इस ब्रम्हांड में केवल सूर्य से निकलता है दुसरा केवल अग्निहोत्र से निकलता है।
आधुनिक रंग चिकित्सा विज्ञान भी मानता है कि मनुष्य सात रंगों से बना है,वनस्पति भी सात रंगों से बना है अर्थात अग्निहोत्र के इन सात रंगों को हमारे शरीर ने स्वीकार(एक्सेप्ट) कर लिया तो हम स्वस्थ हो जायेगे,शरीर मे जिस रंग की कमी होगी उसकी पूर्ति हो जाएगी। 

अग्निहोत्र मंत्रो में 7 स्वर है,अग्निहोत्र के पश्चात निकला हुआ गन्ध "सुगन्धिम पुष्टि वर्धनम" को स्थापित करता है।
अग्निहोत्र करने में मात्र एक रुपया खर्च होता है और मात्र 2-3 मिनट का समय लगता है । इसे कोई भी कर सकता है । 5 साल का बच्चा या महिला,पुरुष सब कर सकते है इसके लिए नहाना भी जरूरी नहीं है।

अग्निहोत्र के केवल 5 नियम है
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पहला : समय,दूसरा : देशी गाय के गोबर से बने साफ-सुथरे कंडे, तीसरा : देशी गाय का बिलोने वाला घी,चौथा : अक्षत चावल,पाँचवा : निश्चित आकार का पिरामिड पात्र

सूर्योदय(सरकेडियम रिदम)-सूर्यास्त(इंफ्रारेडियम रिदम) के समय पर ही अग्निहोत्र करना है क्योंकि इस समय सूर्य की 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड की स्पीड से गति र्कर रही किरणे पृथ्वी से टकराती है तो पंचमहाभूतो में एक कम्पन  (सरकेडियम रिदम-इंफ्रारेडियम रिदम) होता है। इसी समय हमारे नाक की दोनो नथुनो से स्वांस की प्रक्रिया शुरू हो जाती है अन्यथा हम तो एक समय मे एक ही नाक से स्वांस लेते है,प्राचीन विज्ञान इसे सुषुम्ना नाड़ी का सक्रीय होना भी कहता है जो मानव के सातों चक्रों को सीधे सक्रिय करता है।

ऐसे करे अग्निहोत्र :-
       अग्निहोत्र करने के लिये कुछ चीजो की आवश्यकता होती है वो इस प्रकार है :--
1.निश्चित आकार व नाप का अग्निहोत्र पात्र ताम्बे या मिट्टी का
2.स्थानीय समयानुसार सूर्योदय और सूर्यास्त   की समयसारीणी 
3.गोवन्श  के गोबर के साफ से कंडे 
4. गो घृत 
5. कच्चा साबुत चावल 
6.सूर्योदय और सूर्यास्त के दो मंत्र 
7. माचिस
8. कुन्दुरुनु गोद / कर्पुर या गो घृत मे भिगी रुई की बत्ती
9.अग्निहोत्र स्टैंड और चमीटा
10.आग में हवा करने वाला पंखा। 

     उपरोक्त सामग्री एकत्र करके सर्वप्रथम अग्निहोत्र समय सारिनी देखकर या गूगल प्ले स्टोर से अग्निहोत्र मित्र (Agnihotra buddy) एप डाउनलोड करके अपने घर या खेत के अग्निहोत्र स्थान का लोकेशन निकाल लें।
 मान लिजिये आज शाम के अग्निहोत्र का समय  06:48 है तो इसके 15 मिनट पूर्व हाथ -पैर धोकर बैठ जावे।

सर्वप्रथम अग्निहोत्र पात्र के पेंदे मे गाय के गोबर के कंडे का एक चोकोर टुकडा  रखे। उसके उपर कर्पुर या कुन्दूरुनू गोद का टुकडा  या गाय के घी मे भिगी रुई की बत्ती रख उसे माचिस से 7-8 मिनट पूर्व जला देवे। इसके पूर्व  गो वंश के कंडे के पतले व लंबे टुकडे (आयताकार)तोड कर रखे।  चारो साईडो मे छोटे-छोटे टुकडे जमा देवे,फिर कन्डो को इस प्रकार जमावे की अग्नि को जलने के लिये हवा आने  की जग़ह बचे और मध्य मे आहुति डालने  के लिये स्थान रिक्त रखे और रिक्त रखे स्थान को  कंडे के छोटे से टुकडे से ढक देवे ताकि  सारे कंडे जल सके।अब दो चुटकी चावल बाये हाथ की हथेली पर लेकर उसमे दो बुंद गो घृत मिलाकर तैयार रखे। इन चावलो के दो बराबर भाग कर लेवे और अग्निहोत्र के समय की प्रतीक्षा करे। जैसे ही अग्निहोत्र का समय हो आपको दो मंत्र बोलकर आहुति अग्नि मे अर्पित करनी है।

मंत्र इस प्रकार है :-
*सूर्यास्त के मंत्र.*
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!! अग्नये स्वाहा,अग्नये इदं न मम !! 
 (स्वाहा पर पहली आहुति छोडे)
!! प्रजापतये स्वाहा lप्रजापतये इदं न मम !!
(स्वाहा पर दूसरी आहुति छोडे)
*सूर्योदय  के मंत्र*
===========
!! सुर्याय स्वाहा,सुर्याय इदं न मम !!
!! प्रजापतये स्वाहा प्रजापतये इदं न मम !!
प्रातःकालीन अग्निहोत्र :अपनी आंखें घडी के कांटें पर रखें, जैसे ही सूर्योदय का समय होता है, पहला मंत्र बोलना प्रारंभ करें सूर्याय स्वाहा..स्वाहा कहने के साथ ही अक्षत का पहला भाग अग्नि को आहुति दें और "सूर्याय इदं न मम"का उच्चारण करते हुए मंत्र के प्रथम पंक्ति को पूर्ण करें। अक्षत को दाहिने हाथ का अंगूठा, मध्यमा तथा अनामिका से (हथेली ऊपर की दिशा में रखकर)अग्नि में आहुति दें तथा बांए हाथ को अपनी छाती के पास रखें। मंत्र की दूसरी पंक्ति का उच्चारण करते हुए अक्षत का दूसरा भाग "प्रजापतये स्वाहा" कहने के उपरांत अग्नि में दूसरी आहुति दें तथा मंत्र को "प्रजापतये इदं न मम" कहते हुए पूर्ण करें,जब तक हवन सामग्री पूर्णतः जल न जाए, बैठकर अग्नि पर ध्यान एकाग्र करें। प्रातःकाल का अग्निहोत्र यहीं समाप्त होता है।आहुति देने के बाद कमर सीधी रखे हुऐ अग्नि या धुऐ पर ध्यान केन्द्रित करे l जब तक आहुति जल रही है तब तक शांत चित्त बैठे रहे, अग्निहोत्र पात्र को शाम तक वहीं रहने दें।

  *अग्निहोत्र* छूट जाने या नागा होने से कोई नुकसान हर्जा नहीं होता है ।

अग्निहोत्र : कृषि क्रांति
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10 एकड़ क्रषि भूमि के लिए 1 जगह का अग्निहोत्र पर्याप्त माना गया है,अपने जैविक जीवन शैली विज्ञान मिशन ने कृषि भूमि की मिट्टी को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने के उपयोग को प्रमुखता से  अपनाया है।
आज की यूरिया,डीएपी जैसी रसायनिक खाद केमिकल के साथ साथ नकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित करती है,कच्चे सूखे गोबर का ढेर,मुर्गी की खाद,प्रेसमड ये सब परंपरागत स्रोत भी भयंकर नकारात्मक होते है और नकारात्मक जीवो का पारिस्थतिक तंत्र(इकोलॉजी) का निर्माण करते है,अर्थात मिट्टी में फंगस,वायरस,कीटो को बढ़ाते है।
इस इकोलॉजी की जड़ नकारात्मक ऊर्जा है जिसे एक ग्राम अग्निहोत्र भस्म प्रति लीटर पानी मे मिलाकर स्प्रे करने से बदला जा सकता है।
स्प्रे करते ही ऊर्जा चक्र तो तुरन्त ही बदल जाता है और धीरे धीरे 1,2 वर्ष की अवधि में इकोलॉजी भी बदल जाती है।
यह भस्म मिट्टी में पड़े पूर्व के विषाक्त तत्वों को भी नष्ट करता है। जब भी पौधों की ऊर्जा कम दिखती हो इसी तरह से भस्म का पौधों पर भी स्प्रे करते रहे।
अधिक जानकारी के लिए जैविक जीवन शैली विज्ञान  मिशन की केंद्रीय टीम से या अपने राज्य  संयोजक से सम्पर्क कर प्राप्त करें।

मिताली बेलजी
8349324032
प्रधान सचिव,भोपाल

डॉ ऋषि सागर
8889973113
राष्ट्रीय संगठन सचिव
केंद्र-जबलपुर 

श्रीमति अंजलि काले
7776005097
राष्ट्रीय संगठन सह-सचिव
केंद्र - पुणे 
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।।नित्य सूर्योदय सूर्यास्त अग्निहोत्र करें व अपने परिवार को सुख,स्वास्थ्य,सन्मति दें।।
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 ।।नित्य रहना है निरोग तो नित्य करें रहे अग्निहोत्र ।।
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 ।।आपका अग्निहोत्र आचरण  पर्यावरण का संरक्षण  है।।
🙏

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