कच्ची धानी अर्थात पुराने जमाने में बैलों से चलने वाले कोल्हू होते थे उन्हें ही कच्ची घानी कहते हैं।
वह एक पत्थर/ लकड़ी की काफी बड़ी ओखली नुमा होता था, जिसमे एक लकड़ी के लम्बे मूसल को घुसा कर रखा जाता था। उस ओखली व मूसल के बीच के खाली स्थान में वह तिलहन डाला जाता था जिसका तेल निकालना हो।
उस मूसल को बैलों की सहायता से घुमाया जाता था, दोनों के बीच आकर तिलहन का तेल निकल जाता था, जिसे साइड में लगी टोंटी से निकाल लिया जाता था।
आज भी कुछ जगह इसका प्रयोग करके तेल निकला जाता है वही वास्तविक कच्ची घानी का तेल कहलाता है। आजकल यह विधि लगभग समाप्ति के कगार पर है, कारण उसे निकालना काफी महंगा पड़ता है। साथ ही आधुनिक मोटर से चलने वाली मशीन (आयल एक्सपेलर) के मुकाबले कम तेल निकलता है, अतः वह सामान्य रिफाइंड तेल से चार गुनी कीमत में बिकता है।
दूसरी है पक्की घानी - आजकल इसी सिद्धांत पर कुछ मोटर से चलने वाली घानी भी प्रचलित हैं हैं। उनसे भी तेल कम ही निकलता है, पर शीघ्र निकलता है। इसे ही पक्की घानी भी कहते हैं।
तीसरी है आधुनिक मोटर से चलने वाली "आयल एक्सपेलर मशीन", यह मशीन भी ठंडी विधि से ही तेल निकालती है, पर इससे तेल कुछ अधिक व शीघ्र निकलता है, कम नमी युक्त व साफ होता है।
उपरोक्त सभी विधियों से निकलने वाला तेल रिफाइड या फिलटर्ड नहीं कहलाता, इस तेल में नमी की काफी मात्रा होती है, कारण तेल निकालते समय तिलहन को कुछ गीला करना पड़ता है। इस तेल को आप खरीद कर 1 माह से अधिक स्टोर नहीं कर सकते।
यहां मैं तीनो मशीनों के चित्र प्रस्तुत कर रहा हूँ।
यह सभी चित्र गूगल से साभार
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