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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

अंगूर के औषधीय प्रयोग

अंगूर के औषधीय प्रयोग

विभिन्न भाषाओं में नाम :
संस्कृत द्राक्षा, गोस्तनी, कशिषा, हारहूरा।
हिंदी मुनक्का, अंगूर, दाख
गुजराती दशख, धराख।
मराठी द्राक्ष
बंगाली कटकी
पंजाबी दाख अंगूर
अरबी इनब, जबीब अंनब
फारसी अंगूर रजताफ, मवेका
तेलगू द्राक्षा
अंग्रेजी ग्रेप्स, ग्रेप्सवाइन, रेजिन्

तत्त्व मात्रा
प्रोटीन 0.8 प्रतिशत नियासिन लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम
वसा 7.1 प्रतिशत विटामिन-सी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम
कार्बोहाइड्रेट 10.2 प्रतिशत लौह लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम
पानी 85.5 प्रतिशत फास्फोरस 0.02 प्रतिशत
विटामिन-ए 15 आई.यू/ग्राम कैल्शियम 0.03 प्रतिशत
विटामिन-बी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग/100 ग्राम

सामान्य परिचय : अंगूर एक आयु बढ़ाने वाला प्रसिद्ध फल है। फलों में यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है, क्योंकि यह सभी प्रकार की प्रकृति के मनुष्य के लिए अनुकूल है। निरोगी के लिए यह उत्तम पौष्टिक खाद्य है तो रोगी के लिए बलवर्धक भोजन। जब कोई खाद्य पदार्थ भोजन के रूप में न दिया जा सके तब मुनक्का का सेवन किया जा सकता है। रंग और आकार तथा स्वाद भिन्नता से अंगूर की कई किस्में होती हैं। काले अंगूर, बैगनी रंग के अंगूर, लम्बे अंगूर, छोटे अंगूर, बीज रहित अंगूर को सुखाकर किशमिश बनाई जाती है। काले अंगूरों को सुखाकर मुनक्का बनाई जाती है। अंगूर स्वस्थ मनुष्य के लिए पौष्टिक भोजन है और रोगी के लिए शक्तिप्रद पथ्य है। जिन बड़े-बड़े भयंकर और जटिल रोगों में किसी प्रकार का कोई पदार्थ जब खाने-पीने को नहीं को दिया जाता तब ऐसी दशा में अंगूर दी जाती है। भोजन के रूप में अंगूर कैन्सर, क्षय (टी.बी.) पायोरिया, ऐपेण्डीसाटिस, बच्चों का सूखा रोग, सन्धिवात, फिट्स, रक्त विकार, आमाशय में घाव, गांठे, उपदंश (सिफलिस), बार-बार मूत्रत्याग, दुर्बलता आदि में दिया जाता है। अंगूर अकेला खाने पर लाभ करता है, किसी अन्य वस्तु के साथ मिलाकर इसे नहीं खाना चाहिए।
नोट : जब अंगूर उपलब्ध न हो तो अंगूर की जगह किशमिश को काम में लिया जा सकता है।)

गुण-धर्म

पके अंगूर : पके अंगूर दस्तावर, शीतल, आंखों के लिए हितकारी, पुष्टिकारक, पाक या रस में मधुर, स्वर को उत्तम करने वाला, कसैला, मल तथा मूत्र को निकालने वाला, वीर्यवर्धक (धातु को बढ़ाने वाला), पौष्टिक, कफकारक और रुचिकारक है। यह प्यास, बुखार, श्वास (दमा), कास (खांसी), वात, वातरक्त (रक्तदोष), कामला (पीलिया), मूत्रकृच्छ्र (पेशाब करने में कठिनाई होना), रक्तपित्त (खूनी पित्त), मोह, दाह (जलन), सूजन तथा डायबिटीज को नष्ट करने वाला है।
कच्चा अंगूर : कच्चे अंगूर गुणों में हीन, भारी, कफपित्त और रक्तपित्त नाशक है।
काली दाख या गोल मुनक्का : यह वीर्यवर्धक, भारी और कफ पित्त नाशक है।
किशमिश : बिना बीज की छोटी किशमिश मधुर, शीतल, वीर्यवर्धक (धातु को बढ़ाने वाला), रूचिप्रद (भूख जगाने वाला) खट्टी तथा श्वास, खांसी, बुखार, हृदय की पीड़ा, रक्त पित्त, स्वर भेद, प्यास, वात, पित्त और मुख के कड़वेपन को दूर करती है।
ताजा अंगूर : रुधिर को पतला करने वाले छाती के रोगों में लाभ पहुंचाने वाले बहुत जल्दी पचने वाले रक्तशोधक तथा खून बढ़ाने वाले होते हैं।

विभिन्न रोगों में अंगूर से उपचार:


1 मूर्च्छा (बेहोशी):- *दाख (मुनक्का) और आंवले को समान मात्रा में लेकर, उबालकर पीसकर थोड़ा शुंठी का चूर्ण मिलाकर, शहद के साथ चटाने से बुखारयुक्त मूर्च्छा (बेहोशी) दूर हो जाती है। ।
*25 ग्राम मुनक्का, मिश्री, अनार की छाल और खस 12-12 ग्राम, जौकूट कर 500 मिलीलीटर पानी में रात भर भिगो दें, सुबह मसल-छानकर, 3 खुराक बनाकर दिन में 3 बार (सुबह, दोपहर और शाम) सेवन करें।
*100-200 ग्राम मुनक्का को घी में भूनकर थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर रोजाना 5-10 ग्राम तक खाने से चक्कर आना बंद हो जाता है। "

2 सिर में दर्द:- 8-10 मुनक्का, 10 ग्राम मिश्री तथा 10 ग्राम मुलेठी तीनों को पीसकर नस्य देने से पित्त के विकार के कारण उत्पन्न सिर का दर्द दूर होता है।

3 मुंह के रोग:- मुनक्का 10 दाने और 3-4 जामुन के पत्ते मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े से कुल्ला करने से मुंह के रोग मिटते हैं।

4 नकसीर (नाक से खून आना):- अंगूर के रस को नाक में डालने से नाक की नकसीर (नाक से खून आना) रुक जाती है।

5 मुंह की दुर्गन्ध:- कफ या अजीर्ण के कारण मुंह से दुर्गन्ध आती है तो 5-10 ग्राम मुनक्का नियमपूर्वक खाने से दूर हो जाती है।

6 उरक्षत (सीने में घाव):- मुनक्का और धान की खीले 10-10 ग्राम को 100 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। 2 घंटे बाद मसल-छानकर उसमें मिश्री, शहद और घी 6-6 ग्राम मिलाकर उंगली से बार-बार चटायें। सीने के घाव में लाभ होता है तथा उल्टी की यह दिव्य औषधि है।

7 सूखी खांसी:- द्राक्षा, आंवला, खजूर, पिप्पली तथा कालीमिर्च इन सबको बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चटनी के सेवन से सूखी खांसी तथा कुकुर (कुत्ता) खांसी में लाभ होता है।

8 क्षय (टी.बी.):- घी, खजूर, मुनक्का, मिश्री, शहद तथा पिप्पली इन सबका अवलेह बनाकर सेवन करने से बुखार, खांसी, श्वास, जीर्णज्वर तथा क्षयरोग का नाश होता है।

9 पित्तज कास:- 10 मुनक्का, 30 पिप्पली तथा मिश्री 45 ग्राम तीनों को मिश्रण बनाकर प्रतिदिन शहद के साथ चटाने से लाभ होता है।

10 दूषित कफ विकार:- 8-10 नग मुनक्का, 25 ग्राम मिश्री तथा 2 ग्राम कत्थे को पीसकर मुख में धारण करने से दूषित कफ विकारों में लाभ होता है।

11 गलग्रंथि:- *दाख (मुनक्का) के 10 मिलीलीटर रस में हरड़ का 1 ग्राम चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम नियमपूर्वक पीने से गलग्रंथि मिटती है।
*गले के रोगों में इसके रस से गंडूष (गरारे) कराना बहुत अच्छा है।"

12 मृदुरेचन (पेट साफ रखने) के लिए:- *10-20 पीस मुनक्कों को साफकर बीज निकालकर, 200 मिलीलीटर दूध में अच्छी तरह उबालकर (जब मुनक्के फूल जायें) दूध और मुनक्के दोनों का सेवन करने से सुबह दस्त साफ आता है।
*मुनक्का 10-20 पीस, अंजीर 5 पीस, सौंफ, सनाय, अमलतास का गूदा 3-3 ग्राम तथा गुलाब के फूल 3 ग्राम, इन सबके काढ़े में गुलकन्द मिलाकर पीने से दस्त साफ होता है।
*रात्रि में सोने से पहले 10-20 नग मुनक्कों को थोड़े घी में भूनकर सेंधानमक चुटकी भर मिलाकर खाएं।
सोने से पहले आवश्यकतानुसार 10 से 30 ग्राम तक किसमिस खाकर गर्म दूध पीयें।
*मुनक्का 7 पीस, कालीमिर्च 5 पीस, भुना जीरा 10 ग्राम, सेंधानमक 6 ग्राम तथा टाटरी 500 मिलीग्राम की चटनी बनाकर चाटने से कब्ज तथा अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) दूर हो जाता है"

13 पित्तज शूल:- अंगूर और अडू़से का काढ़ा 40-60 मिलीलीटर की मात्रा में पिलाने से पित्त कफ जन्य उदरशूल दूर होता है।

14 अम्लपित्त:- *दाख (मुनक्का), हरड़ बराबर-बराबर मात्रा में लें। इसमें दोनों के बराबर शक्कर मिलायें, सबको एक साथ पीसकर, एक-एक ग्राम की गोलियां बना लें। 1-1 गोली सुबह-शाम शीतल जल के साथ सेवन करने से अम्लपित्त, हृदय-कंठ की जलन, प्यास तथा अपच का नाश होता है।
*मुनक्का 10 ग्राम और सौंफ आधी मात्रा में दोनों को 100 मिलीलीटर पानी में भिगों दें। सुबह मसलकर और छानकर पीने से अम्लपित्त में लाभ होता है।"

15 पांडु (कामला या पीलिया):- *बीजरहित मुनक्का का चूर्ण (पत्थर पर पिसा हुआ) 500 ग्राम, पुराना घी 2 लीटर और पानी 8 लीटर सबको एक साथ मिलाकर पकाएं। जब केवल घी मात्र शेष रह जाये तो छानकर रख लें, 3 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम सेवन करने से पांडु (पीलिया) आदि में विशेष लाभ होता है।

16 पथरी:- *काले अंगूर की लकड़ी की राख 10 ग्राम को पानी में घोलकर दिन में दो बार पीने से मूत्राशय में पथरी का पैदा होना बंद हो जाता है।
*अंगूर की 6 ग्राम भस्म को गोखरू का काढ़ा 40-50 मिलीलीटर या 10-20 मिलीलीटर रस के साथ पिलाने से पथरी नष्ट होती है।
*8-10 नग मुनक्कों को कालीमिर्च के साथ घोटकर पिलाने से पथरी में लाभ होता है।
*अंगूर के जूस में थोड़े-से केसर मिलाकर पीयें। इससे पथरी ठीक होती है।"

17 मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट):- *मूत्रकृच्छ में 8-10 मुनक्कों एवं 10-20 ग्राम मिश्री को पीसकर दही के पानी में मिलाकर पीने से लाभ होता है।
*मुनक्का 12 ग्राम, पाषाण भेद, पुनर्नवा मूल तथा अमलतास का गूदा 6-6 ग्राम जौकूटकर, आधा किलो जल में अष्टमांश काढ़ा बनाकर पिलाने से मूत्रकृच्छ एवं उसके कारण उत्पन्न पेट के रोग भी दूर होते हैं।
*8-10 नग मुनक्कों को बासी पानी में पीसकर चटनी की तरह पानी के साथ लेने से मूत्रकृच्छ में लाभ होता है।"

18 अंडकोषवृद्धि:- अंगूर के 5-6 पत्तों पर घी चुपड़कर तथा आग पर खूब गर्मकर बांधने से फोतों की सूजन बिखर जाती है।

19 बल एवं पुष्टि के लिए:- *मुनक्का 12 पीस, छुहारा 5 पीस तथा मखाना 7 पीस, इन सभी को 250 मिलीलीटर दूध में डालकर खीर बनाकर सेवन करने से खून और मांस की वृद्धि होकर शरीर पुष्ट होता है।
*मुनक्का 9 पीस, किशमिश 5 पीस, ब्राह्मी 3 ग्राम, छोटी इलायची 8 पीस, खरबूजे की गिरी 3 ग्राम, बादाम 10 पीस तथा बबूल की पत्ती 3 ग्राम, घोटकर पीने से गर्मी शांत होकर शरीर पुष्ट तथा बलवान बनता है।
*सुबह-सुबह मुनक्का 20 ग्राम खाकर ऊपर से 250 मिलीलीटर दूध पीने से बुखार के बाद की कमजोरी और बुखार दूर होकर शरीर पुष्ट होता है।
*20 से 60 ग्राम किशमिश रात को एक कप पानी में भिगो दें, सुबह मसल-छानकर उस पानी को पीने से कमजोरी और अम्लपित्त (ऐसीडिटी) दूर होती है।
*रात को सोने से पहले मुनक्का खायें फिर ऊपर से पानी पी लें, इससे कुछ दिनों में ही दुर्बलता दूर होकर शरीर पुष्ट होता है (ज्यादा लेने पर दस्त हो जाते हैं, अपनी शारीरिक क्षमतानुसार मात्रा का निर्धारण कर लें)।"

20 जलन (दाह), प्यास:- *10-20 नग मुनक्का शाम को पानी में भिगोकर सुबह मसलकर छान लें और उसमें थोड़ा सफेद जीरे का चूर्ण और मिश्री या चीनी मिलाकर पिलाने से पित्त के कारण उत्पन्न जलन शांत होती है।
*10 ग्राम किशमिश आधा किलो गाय के दूध में पकाकर ठंडा हो जाने पर रात्रि के समय नित्य सेवन करने से जलन शांत होती है।
*मुनक्का और मिश्री 10-10 ग्राम रोज चबाकर और पीसकर सेवन करने से जलन शांत होती है।
*किशमिश 80 ग्राम, गिलोय सत्व (बारीक पिसा हुआ चूर्ण) और जीरा 10-10 ग्राम तथा चीनी 10 ग्राम इन सभी के मिश्रण को चिकने गर्म बर्तन में भरकर उसमें इतना गाय का घी मिलायें, कि मिश्रण अच्छी तरह भीग जाये। इसे नियमित 6 से 20 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से एक दो सप्ताह में चेचक आदि विस्फोटक रोग होने के बाद जो जलन शरीर में हो जाती है, वह शांत हो जाती है।"

21 सन्निपात ज्वर:- जीभ सूख जाये और फट जाये तो उस पर 2-3 अंगूर को 1 चम्मच शहद के साथ पीसकर उसमें थोड़ा घी मिलाकर लेप करने से लाभ होता है।

22 पित्त ज्वर:- *काला अंगूर और अमलतास के गूदे का 40-60 मिलीलीटर काढ़ा सुबह-शाम पिलाने से पित्त ज्वर ठीक हो जाता है।
*अंगूर के शरबत के नित्य सेवन से भी दाह ज्वर आदि शांत होता है। यदि प्यास अधिक हो तो अंगूर और मुलेठी का लगभग 40-60 मिलीलीटर काढ़ा दिन में 2-3 बार पिलावें।
*मुनक्का, कालीमिर्च और सेंधानमक तीनों को पीसकर गोलियां बनाकर मुंह में रखें।
*एक समान मात्रा में आंवला तथा मुनक्के को लेकर अच्छी तरह महीन पीसकर थोड़ा घी मिलाकर मुंह में रखें।"

23 रक्तपित्त:- *किशमिश 10 ग्राम, दूध 160 मिलीलीटर, पानी 640 मिलीलीटर तीनों को हल्की आंच पर पकावें। 160 मिलीलीटर शेष रहने पर थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाएं।
*मुनक्का, मुलेठी, गिलोय 10-10 ग्राम लेकर जौकूट कर 500 मिलीलीटर जल में अष्टमांश काढ़ा बनाकर सेवन करें।
*मुनक्का 10 ग्राम, गूलर की जड़ 10 ग्राम, धमासा 10 ग्राम लेकर, जौकूट कर अष्टमांश काढ़ा बनाकर सेवन करें। इस प्रयोग से रक्तपित्त, जलन, मुंह की सूजन, प्यास तथा कफ के साथ खांसने पर रक्त निकलना आदि विकार शीघ्र दूर हो जाते हैं।
*अंगूर के 50-100 मिलीलीटर रस में 10 ग्राम घी और 20 ग्राम चीनी मिलाकर पीने से रक्तपित्त दूर होता है।
*मुनक्का और पके गूलर का फल बराबर-बराबर लेकर पीसकर शहद के साथ सुबह-शाम चटायें।
*मुनक्का 10 ग्राम, हरड़ 10 ग्राम पानी के साथ पीसकर 6 ग्राम तक बकरी के दूध के साथ पिलायें।"

24 त्वचा के रोग:- बसन्त के सीजन में इसकी काटी हुई टहनियों में से एक प्रकार का रस निकलता है जो त्वचा सम्बंधी रोगों में बहुत लाभकारी है।

25 धतूरे का जहर:- अंगूर का रस 10 मिलीलीटर, सिरका 100 मिलीलीटर दूध में मिलाकर कई बार पिलायें।

26 हरताल के जहर पर:- रोगी को उल्टी कराकर किशमिश 10-20 ग्राम, 250 मिलीलीटर दूध में पकाकर पिलायें।

27 नशे की आदत:- सिगरेट, चाय, काफी, जर्दा, शराब आदि की आदत केवल अंगूर खाते रहने से छूट जाती है।

28 दुग्धवृद्धि (स्तनों में दूध की वृद्धि):- अंगूर खाने से दुग्धवृद्धि होती है। इसलिए स्तनपान कराने वाली माताओं को यदि उनके स्तनों में दूध की कमी हो तो अंगूरों का नियमित रूप से सेवन करना चाहिए। अंगूर दुग्धवर्द्धक होता है। प्रसवकाल में यदि उचित मात्रा से अधिक रक्तस्राव हो तो अंगूर के रस का सेवन बहुत अधिक प्रभावशाली होता है। खून की कमी के शिकायत में अंगूर के ताजे रस का सेवन बहुत उपयोगी होता है क्योंकि यह शरीर के रक्त में रक्तकणों की वृद्धि करता है।

29 शक्तिवर्द्धक (शारीरिक ताकत) :- ताजे अंगूरों का रस कमजोर रोगियों के लिए लाभदायक है। यह खून बनाता है और खून पतला करता है तथा शरीर को मोटा करता है। दिन में 2 बार रोजाना अंगूर के रस सेवन करने से पाचनशक्ति ठीक होती है, कब्ज दूर होती है। यह जल्दी पचता है, इससे दुर्बलता दूर होती है। सिर दर्द, बेहोशी के दौरे, चक्कर आना, छाती के रोग, क्षय (टी.बी) में उपयोगी है। यह रक्तविकार को दूर करता है। शरीर में व्याप्त विशों (जहर) को बाहर निकालता है।

30 बार-बार पेशाब आना:- बार-बार पेशाब जाना मूत्राशय (वह स्थान जहां पेशाब एकत्रित होता हैं) के लिए अच्छा नही हैं। अंगूर खाने से बार-बार पेशाब जाने की आदत कम होती है।

31 गुर्दे का दर्द:- अंगूर की बेल के 30 ग्राम पत्तों को पीसकर पानी मिलाकर व छानकर और नमक मिलाकर पीने से गुर्दे के दर्द से तड़पते रोगी को आराम मिलता है।

32 अनियमित मासिक-धर्म, श्वेतप्रदर:- 100 ग्राम अंगूर रोज खाते रहने से मासिक-धर्म नियमित रूप से आता है। इससे स्वास्थ्य अच्छा रहेगा।

33 घबराहट:- अंगूर खाने से घबराहट दूर हो जाती है।

34 बच्चों के दांत निकलते समय का दर्द:- *दांत निकलते समय अंगूरों का 2 चम्मच रस नित्य पिलाते रहने से बच्चों के दांत सरलता और शीघ्रता से निकल आते हैं। बच्चा रोता नहीं है, वह हंसमुख रहता है। बच्चा सुडौल रहता है तथा बच्चे को `सूखारोग´ नहीं होता। इसके अतिरिक्त बच्चों को दौरे नहीं पड़ते और चक्कर भी नहीं आते लेकिन अंगूर मीठे हो, चाहे तो स्वाद के लिए अंगूर में शहद भी मिला सकते हैं।
*बच्चों के दांत निकलते समय के दर्द कम करने के लिए अंगूर का रस पिलायें। इससे दर्द कम होता है तथा दांत स्वस्थ व मजबूत निकलते हैं।
*बच्चों के दांत निकलते समय अंगूर के रस में शहद डालकर देने से दांत जल्द निकल आते हैं। इससे दांत निकलते समय दर्द नहीं होता।"

35 जुकाम:- कम से कम 50 ग्राम अंगूर खाते रहने से बार-बार जुकाम होना बंद हो जाता है।

36 गठिया:- अंगूर शरीर से उन लवणों को निकाल देता है, जिनके कारण गठिया शरीर में बनी रहती है। गठिया की परिस्थितियों को साफ करने के लिए सुबह के समय अंगूर खाते रहना चाहिए।

37 चेचक:- अंगूर गर्म पानी में धोकर खाने से चेचक में लाभ होता है।

38 मिरगी:- मिरगीग्रस्त रोगियों को अंगूर खाना लाभकारी होता है।

39 माइग्रेन:- अंगूर का रस आधा कप नित्य सुबह (सूरज उगने से पहले) पीने से आधे सिर का दर्द जो सूर्य निकलने के साथ प्रारम्भ होकर सूर्य के साथ-साथ बढ़ता है, ठीक हो जाता है।

40 खांसी-कफ:- अंगूर के सेवन से फेफड़ों को शक्ति मिलती है, खांसी-जुकाम दूर होता है। कफ बाहर आ जाता है। नोट : अंगूर खाने के बाद पानी न पीएं।

41 हृदय के रोग:- *रोगी यदि अंगूर खाकर ही रहे तो हृदयरोग शीघ्र ही ठीक हो जाते हैं। जब हृदय में दर्द हो और धड़कन अधिक हो तो अंगूर का रस पीने से दर्द बंद हो जाता है और धड़कन सामान्य हो जाती है। थोड़ी ही देर में रोगी को आराम आ जाता है तथा रोग की आपात स्थिति दूर हो जाती है।
*यदि हृदय में दर्द हो तो मुनक्का का कल्क (पेस्ट) 30 ग्राम, शहद 10 ग्राम तथा लौंग 5 ग्राम, मिलाकर कुछ दिन सेवन करें।
*प्रतिदिन 100 ग्राम अंगूर खाने से हृदय की निर्बलता जल्दी ही खत्म हो जाती है।
*यदि हृदय में दर्द महसूस हो तो आधा कप अंगूर का रस सेवन करें।"

42 पेट की गैस और जलन में:- अंगूर के रस का नियमित सेवन करने से पेट की जलन, गैस की तकलीफ शांत होती है तथा पाचन में सुधार होता है।

43 पाचनयुक्त:- अंगूर में 50 प्रतिशत तक शर्करा पाई जाती है जोकि परिपक्व होती है। इस शर्करा का शरीर में शोशण आसानी से हो जाता है।

44 पाचन व मलत्याग में सहायक:- अंगूर का रस आंतों की गति व क्रियाशीलता को बढ़ाता है। इससे पाचन व मलत्याग की क्रियाएं सुचारु हो जाती हैं।

45 गर्दन वातरक्त रक्तशोधक (खून की सफाई):- अंगूर का प्रयोग करने से खून की सफाई होती है क्योंकि अंगूर में मौजूद विभिन्न प्रकार के एसिड रक्तशोधन का कार्य करते रहते हैं।
कुछ दिन नियमित रूप से अंगूर का रस पीने से शरीर के अंदर की गरमी दूर हो जाती है और रक्त शुद्ध होता है।"

46 मूत्राशय की जलन और पथरी में:- मूत्र विकारों, मूत्राशय की जलन और पथरी में अंगूर का नियमित रसपान फायदेमंद होता है।

47 बवासीर:- प्रतिदिन अंगूर खाने से कब्ज दूर होती है, बवासीर में भी लाभ मिलता है।

48 अतिसार (दस्त):- अंगूर के रसपान से अतिसार (दस्त) में भी फायदा होता है।

49 श्वास या दमा का रोग:- *अंगूर का रस 30-40 मिलीलीटर गर्म करके दमा के रोगी को पिलाने से श्वास का वेग घट जाता है।
*अंगूर का रस फेफड़ों के कोषों को शक्ति देता है। इसलिए दमा, खांसी और टी.बी के रोगियों को अंगूर बहुत लाभकारी रहता है। यदि थूकने में खून आता हो तब भी हमें अंगूर खाने चाहिए।
*दमे में अंगूर खाना लाभकारी है। यदि थूक में रक्त आता हो तब भी अंगूर खाने से लाभ होता है।"

50 फेफड़ों के रोग:- फेफड़ों के सभी प्रकार के रोग- यक्ष्मा, खांसी, जुकाम तथा दमा आदि के लिए अंगूर बहुत ही अच्छे होते हैं।

51 खांसी:- अंगूर खाने से फेफड़ों को शक्ति मिलती है। कफ बाहर निकल आता है। अंगूर खाने के बाद पानी न पियें।

52 अफारा (गैस का बनना):- अंगूर के 50 मिलीलीटर रस में 5 ग्राम मिश्री और 2 ग्राम यवक्षार मिलाकर पीने से आध्मान (अफारा, गैस) को समाप्त करता हैं।

53 कब्ज:- खाना खाने के बाद लगभग 200 ग्राम अंगूर को खाने से पेट में बनी कब्ज मिट जाती है।

54 वमन (उल्टी):- अंगूर का रस चूसने से जलन और उल्टी आने के रोग में आराम आ जाता है।

55 कैन्सर (कर्कट) के रोग में:- अंगूर का सेवन 1 दिन में 2 किलो तक कर सकते हैं इससे ज्यादा अंगूर न खायें। कुछ दिनों के बाद छाछ पी सकते हैं और कोई चीज खाने को न दें। इससे धीरे-धीरे महीनों में लाभ होगा। कभी-कभी अंगूर का रस लेने से पेट दर्द, मलद्वार पर जलन होती है। इससे न डरें। दर्द कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। दर्द होने के बाद इसे सेंक सकते हैं। इस प्रयोग से कैंसर की बीमारी से आराम मिलता है।

56 मूत्ररोग:- अंगूर के रस में शहद डालकर पीने से ज्यादा पेशाब का होना कम हो जाता है।

57 पक्षाघात :- अंगूर, सेब और नाशपाती के फलों का रस रोजाना दो बार पिलाने से रोगी के शरीर में शक्ति आती है और पक्षाघात ठीक हो जाता है।

58 घाव:- रोज अंगूर खाने से घाव जल्दी भरता है।

59 कफ विकार:- अंगूर खाने से फेफड़ों को शक्ति मिलती है। जुकाम, खांसी दूर होती है। कफ (बलगम) बाहर आ जाता है। अंगूर खाने के बाद पानी नहीं पीना चाहिए।

60 पित्ताशय की पथरी:- रोज 200 मिलीलीटर अंगूर का रस पीने या अंगूर खाने से पित्ताशय की पथरी में बहुत ही फायदा होता है।

61 दिल की धड़कन बढ़ना :- *नित्य 25 ग्राम अंगूर का रस पिएं।
*रोगी यदि अंगूर खाकर ही रहे तो हृदय-रोग शीघ्र ठीक हो जाते है। जब हृदय में दर्द हो, धड़कन अधिक हो तो अंगूर का रस पीने से दर्द बंद हो जाता है तथा धड़कन सामान्य हो जाती है। थोड़ी देर में ही रोगी को आराम आ जाता है।"

62 सूखा रोग:- अंगूर का रस जितना ज्यादा हो सके बच्चे को पिलाना लाभकारी है। इस रस को टमाटर के रस के साथ मिलाकर पिलाने से भी बच्चा सेहतमंद और तंदुरुस्त होता है।

63 खून की कमी:- 100 मिलीलीटर अंगूर का जूस (रस) पीने से शरीर में खून की कमी दूर हो जाती है।

64 याददास्त कमजोर होना:- रोजाना सुबह और शाम को 4-4 चम्मच की मात्रा में अंगूर के रस को पानी के साथ मिलाकर भोजन के बाद लेने से बुद्धि का विकास और याददास्त मजबूत होती है।

65 कमजोरी दूर करना:- लगभग 25 ग्राम की मात्रा में अंगूर का रस भोजन करने के आधे घंटे बाद पीने से शरीर में खून बढ़ता है। इसके अलावा पेट फूलना, अफारा, दिल के दौरे पड़ना, चक्कर आना, सिरदर्द और भोजन न पचना आदि बीमारियां दूर हो जाती हैं। इसका सेवन लगभग 2 या 3 हफ्ते तक लगातार करना चाहिए। इसके अलावा इसका सेवन महिलाओं के लिए भी लाभकारी होता है और कमजोर बच्चों को भोजन के बाद अंगूर का रस पिलाना काफी लाभकारी सिद्ध होता है। अंगूर का रस बच्चों के चेहरे को लाल कर देता है।

अनार के औषधीय प्रयोग :

अनार के औषधीय प्रयोग :

1 नाक से खून आना या नकसीर: -*अनार के रस को नाक में डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है।
*अनार के फूल और दूर्वा (दूब नामक घास) के मूल रस को निकालकर नाक में डालने और तालु पर लगाने से गर्मी के कारण नाक से निकलने वाले खून का बहाव तत्काल बंद हो जाता है।
*100 ग्राम अनार की हरी पत्तियां, 50 ग्राम गेंदे की पत्तियां, 100 ग्राम हरा धनिया और 100 ग्राम हरी दूब (घास) को एक साथ पीसकर
पानी में मिलाकर शर्बत बना लें। इस शर्बत को दिन में 4 बार पीने से नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
*100 ग्राम अनार का रस नकसीर (नाक से खून बहना) के रोगी को कुछ दिनों तक लगातार पिलाने से लाभ होता है।
*आधे कप खट्टे-मीठे अनार के रस में 2 चम्मच मिश्री मिलाकर रोजाना दोपहर के समय पीने से गर्मी के मौसम की नकसीर (नाक से खून बहना) ठीक हो जाती है।
*नथुनों में अनार का रस डालने से नाक से खून आना बंद हो जाता है। 7 दिन से अधिक रहने वाला बुखार, एपेन्डीसाइटिस में अनार लाभदायक है।
*अनार की कली जो निकलते ही हवा के झोंकों से नीचे गिर पड़ती है, अतिसंकोचन और गीलेपन को दूर करने वाली होती है। इनका रस 1-2 बूंद नाक में टपकाने से या सुंघाने से नाक से खून बहना बंद हो जाता है। यह नकसीर के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि है।
*अनार के छिलके को छुहारे के पानी के साथ पीसकर लेप करने से सूजन में तथा इसके सूखे महीन चूर्ण को नाक में टपकाने से नकसीर में लाभ होता है।
*अनार के पत्तों के काढ़े को या 10 ग्राम रस पिलाने से तथा पीसकर मस्तक पर लेप करने से नकसीर में लाभ होता है।"

2 गर्मी के कारण नाक से खून आना: -अनार के फूल और दूब की जड़ का रस निकालकर नाक में डालना चाहिए अथवा केवल अनार के फूल का रस नाक में डालना और मस्तिष्क पर लगाना चाहिए। इससे नाक से खून आना बंद हो जाता है।

3 पेशाब का अधिक मात्रा में आना (बहुमूत्र): -*1 चम्मच अनार के छिलकों का चूर्ण एक कप पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करें। इससे बहुमूत्र का रोग नष्ट हो जाता है।
*अनार के छिलकों को छाया में सुखाकर बारीक चूर्ण बना लें। 3 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम पानी के साथ लेने से बार-बार पेशाब जाने से छुटकारा मिलता है।"

4 शरीर की गर्मी: -अनार का रस पानी में मिलाकर पीने से गर्मी के दिनों में बढ़ी शरीर की गर्मी दूर होती है।

5 चेहरे का सौंदर्य: -गुलाब जल में अनार के छिलकों के बारीक चूर्ण को मिलाकर अच्छी तरह लेप बनाएं। इस लेप को सोते समय नियमित रूप से लगाकर सुबह चेहरा धो लें। इससे दाग के निशान, झांइयों के धब्बे दूर हो जाएंगे और चेहरे में चमक आ जायेगी।
अनार के ताजे हरे 100 ग्राम पत्तों के रस को 1 किलो सरसों में मिला लेते हैं। चेहरे पर इस तेल की मालिश करने से चेहरे की कील, झांईयां और काले धब्बे नष्ट हो जाते हैं।"

6 अजीर्ण: -*3 चम्मच अनार के रस में 1 चम्मच जीरा और इतना ही गुड़ मिलाकर भोजन के बाद सेवन करने से अजीर्ण का रोग नष्ट हो जाता है।
*छाया में सुखाया हुआ अनार के पत्ते का चूर्ण 40 ग्राम और सेंधानमक 10 ग्राम दोनों को महीन पीसकर चूर्ण बनाकर रखें। 4-4 ग्राम सुबह-शाम भोजन से पहले पानी के साथ सेवन करने से अजीर्ण दूर होता है।
*अनार का रस, शहद और तिल का तेल समान मात्रा में लेकर, कुल मिश्रण 50 ग्राम की मात्रा में तैयार करते हैं। इसमें 6 ग्राम जीरा और 6 ग्राम खांड मिलाकर मुंह में भरे और थोड़ी देर तक मुंह को चलाते रहे। जब आंख नाक से पानी निकलने लगे तो कुल्ला कर दें और फिर दुबारा नया रस मुंह में भरें। दिन में 8-10 बार ऐसा करें। इसके अलावा जब बिल्कुल भूख न हो तथा यकृत में विकार हो तब उस अवस्था में भी लाभ होता है।
*खट्टे मीठे अनार का रस 1 ग्राम मुंह में भरकर धीरे-धीरे चलाकर पीयें। इस प्रकार 8 या 10 बार करने से मुंह का स्वाद सुधरकर आंत्रदोषों (आंतों के विकारों) का पाचन होता है तथा बुखार के कारण से हुई अरुचि भी दूर होती है।
*मीठे अनार के रस में शहद मिलाकर पिलाने से अरुचि में लाभ होता है।"

7 दांत से खून आना: -अनार के फूल छाया में सुखाकर बारीक पीस लेते हैं। इसे मंजन की तरह दिन में 2 या 3 बार दांतों में मलने से दांतों से खून आना बंद होकर दांत मजबूत हो जाते हैं।

8 उल्टी: -अनार के बीज को पीसकर उसमें थोड़ी-सी कालीमिर्च और नमक मिलाकर खाने से पित्त की वमन और घबराहट में आराम मिलता है।
अनार का रस पीने से गर्भवती स्त्रियों की वमन विकृति (उल्टी) नष्ट होती है।
अनार के रस में शहद मिलाकर चाटने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
सूखे अनारदाने को पानी में भिगो दें। थोड़ी देर के बाद इस पानी को पीने से उल्टी आने के रोग मे लाभ होता है।
खट्टे-मीठे अनार के 200 ग्राम रस में 25 ग्राम मुरमुरे का आटा और 25 ग्राम शर्करा मिलाकर सेवन करने से मस्तिष्क की गर्मी शांत होती है। इसके प्रयोग से शारीरिक गर्मी भी दूर होती है और पित्तज्वर को शांत करने हेतु भी यह प्रयोग गुणकारी है। लू लगने से आए हुए बुखार की जलन, व्याकुलता, उल्टी और प्यास भी इसके सेवन से मिट जाता है|"

9 बच्चों की खांसी: -बच्चों को खांसी होने पर अनार की छाल खाने के लिए देनी चाहिए अथवा अनार के रस में घी, शक्कर, इलायची और बादाम मिलाकर देना चाहिए।

10 बच्चों की दस्त एवं पेचिश: -बच्चों को दस्त या पेचिश की शिकायत होने पर अनार की छाल को घिसकर पिलाने से लाभ मिलता है।

11 पेट के कीड़े: -*अनार की जड़ और तने की छाल का काढ़ा बनाकर पिलाना चाहिए अथवा अनार की छाल के काढ़े में तिल का तेल मिलाकर 3 दिन तक पिलाना चाहिए। इससे पेट के कीडे़ नष्ट हो जाते हैं।
*यदि कद्दू दाना कृमि ही हो तो 50 ग्राम अनार के जड़ की छाल दरदरा कूटकर 2 किलो पानी में उबालते हैं जब आधा पानी शेष बचे तो इसे उतार लें। इसके बाद 50 ग्राम सुबह खाली पेट, आधा-आधा घंटे के अंतर से 4 बार सेवन करें। फिर एक बार एरंड तेल का सेवन करें। बालकों को काढे़ की 10 ग्राम तक की मात्रा देनी चाहिए।
*छाया में सुखाये हुए अनार के पत्तों को बारीक पीस छानकर 6 ग्राम की मात्रा में सुबह गाय की छाछ के साथ या ताजे पानी के साथ प्रयोग करें। इससे पेट के सभी कीड़े दूर हो जाते हैं।
*अनार की जड़ की छाल 10 ग्राम, वायबिडंग और इन्द्रजौ 6-6 ग्राम कूटकर काढ़ा तैयार कर लेते हैं। इसके बाद काढ़े का सेवन करने से पेट के कीड़े मरकर मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
*खट्टे अनार के छिलके और शहतूत की 20-20 ग्राम मात्रा को 200 ग्राम पानी में उबालकर पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
*अनार के पेड़ की जड़ की तरोताजा छाल 50 ग्राम लेकर उसके टुकड़े-टुकड़े कर लें। इसमें पलास बीज का चूर्ण 5 ग्राम, बायविडंग 10 ग्राम को एक लीटर पानी में उबालें। आधा पानी शेष रहने तक उसे उबालते रहें। उसके बाद नीचे उतारकर ठंडा होने पर छान लें। यह जल दिन में चार बार आधा-आधा घंटे के अन्तराल पर 50-50 ग्राम की मात्रा में पिलाने से और बाद में एरंड तेल का जुलाब देने से सभी प्रकार के पेट के कीड़े निकल जाते हैं।
*अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार नियमित रूप से कुछ दिनों तक सेवन करें। इससे पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं। यही प्रयोग खूनी दस्त, खूनी बवासीर, स्वप्नदोष, अत्यधिक मासिकस्राव में भी लाभकारी होता है।
*अनार के फल की छाल को उतार लें, फिर इससे काढ़ा बनाकर उसमें 1 ग्राम तिल का तेल मिलाकर पीने से पेट के कीड़ें समाप्त हो जाते हैं।
*अनार की जड़ की छाल, पलास बीज और वायविंडग को मिलाकर काढ़ा बना लें। इस काढे़ को शहद के साथ पीने से पेट के अंदर के सूती, चपटे और गोल आदि कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकाल जाते हैं।
*अनार की जड़ के काढ़े में मीठे तेल को मिलाकर 3 दिन तक सेवन करने से आंतों के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
*50 ग्राम अनार की जड़ की छाल को 250 ग्राम पानी में उबाल लें, जब पानी 100 ग्राम की मात्रा में बचे, तब इस बने काढे़ को दिन में 3-4 दिन बार पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
* 3 ग्राम अनार के छिलकों का चूर्ण दही या छाछ (मट्ठे) के साथ सेवन करें।
*अनार की छाल को 24 घंटे पानी में भिगोकर रख दें, फिर उसी पानी को उबालकर खाली पेट सुबह पीने से पेट की फीताकृमि (कीड़) मर जाते हैं।"

12 उष्णपित्त: -शक्कर की चाशनी में अनार-दानों का रस डालकर कपडे़ से छान लें। आवश्यकता होने पर 20 ग्राम शर्बत, 20 ग्राम पानी के साथ पी लें। इससे उष्णपित्त नष्ट हो जाता है।

13 नेत्र की गर्मी: -अनार के दानों का रस आंख में डालना चाहिए। इससे आंखों की गर्मी नष्ट हो जाती है।

14 छाती का दर्द: -*अनार के दानों के रस में एक ग्राम सोनामक्खी का चूर्ण मिलाकर पिलाना चाहिए। इससे छाती का दर्द नष्ट हो जाता है।
*अनार के दानों का रस 10 ग्राम में इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर पीने से हृदय को लाभ होता है तथा छाती का दर्द भी दूर होता है। छाती के दर्द में अनार के दानों के रस में 1 ग्राम सोनामुखी का चूर्ण डालकर पीना भी छाती के दर्द में लाभकारी होता है।"

15 पित्त-रोग: -पके हुए अनार के रस में शक्कर मिलाकर पीना चाहिए। इससे पित्त का रोग नष्ट हो जाता है।

16 रक्तातिसार (दस्त में खून का आना): -अनार की छाल और कुरैया (इन्द्रजव) की छाल का काढ़ा शहद के साथ पीने से रक्तातिसार नष्ट हो जाता है।

17 अनार पाक: -धनिया, सोंठ, नागरमोथा, खस, बेल का गूदा, आंवले, कुरैया की छाल, जायफल, अतिविषा, खैर की छाल, अजमोदा, एरंड की जड़, जीरा, लौंग, पीपल, कर्कटश्रृंगी, खुरासानी अजवाइन, धाय के फूल और लोघ्रा सभी को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में बारीक चूर्ण कर लेते हैं और अनार में भरकर आटे से बंद कर दे और चूल्हे में सेंककर आटा निकाल दें। इसके बाद सभी को मिलाकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर खाने से अतिसार (दस्त), संग्रहणी (ऑव रक्त) का आना, मंदाग्नि (अपच), अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना) और दर्द का नाश होता है।

18 अरुचि (भोजन का अच्छा न लगना): -* अनार के दाने चबाकर उनका रस निगलने से अरुचि नष्ट हो जाती है।
*कालीमिर्च आधा चम्मच, सेंका हुआ जीरा 1 चम्मच, सेंकी हुई हींग चने की दाल के बराबर, सेंधानमक स्वादानुसार, अनारदाना 70 ग्राम इन सबको पीस लें। यह स्वादिष्ट अनारदाने का चूर्ण बन जाएगा। इसके खाने से अरुचि नष्ट हो जाती है और मन प्रसन्न हो जाता है।
*14 मिलीलीटर अनार के रस में 1 ग्राम कालानमक मिलाकर अथवा भुना जीरा मिलाकर शहद या चीनी के साथ सेवन करें। इससे अजीर्ण और अरुचि नष्ट हो जाती है।"

19 प्यास: -*अधिक प्यास की शिकायत होने पर अनारदाने खाने चाहिए अथवा उनका रस निकालकर तुरन्त ही थोड़ा-थोड़ा पीना चाहिए।
*60 ग्राम अनारदाने को 2 लीटर पानी में डालकर मिट्टी के बर्तन में भिगो दें। 2 से 3 घंटे बाद थोड़े-थोड़े पानी में मिश्री मिलाकर पिलाने से प्यास और गले की जलन मिट जाती है।"

20 बुखार से या किसी भी कारण से मुख की अरुचि: -पके हुए अनार के 10 ग्राम रस में 7 ग्राम शहद और 4 ग्राम गाय का घी मिलाकर सुबह-शाम देना चाहिए। दूसरी किसी औषधि का बार-बार सेवन करने से जी घबड़ा जाता है, पर इस औषधि से ऐसा नहीं होता, बल्कि इसे बार-बार खाने की इच्छा होती है।

21 अतिसार: -* 10 ग्राम अनार की छाल, 10 ग्राम पुराना गुड़ और 5 ग्राम जीरा मिलाकर देना चाहिए। इससे 1-2 दिन में ही अतिसार में लाभ होता है।
*3-6 ग्राम अनार के जड़ की छाल या अनार के छिलके का चूर्ण शहद के साथ दिन में 3 बार देना चाहिए। इससे अतिसार नष्ट हो जाता है।
*लगभग 14-28 मिलीलीटर अनार के छिलके तथा कोरैया की छाल का काढ़ा दिन में 2 बार सेवन करने से अतिसार नष्ट हो जाता है।
*अनार फल के छिलके के 2-3 ग्राम चूर्ण का सुबह-शाम ताजे पानी के साथ प्रयोग करने से अतिसार तथा आमातिसार में लाभ होता है।
*अनार की ताजी कलियों के साथ छोटी इलायची के बीज और मस्तंगी को पीसकर शक्कर मिलाकर अवलेह तैयार कर लें, इसे चटाने से बालकों के पुराने अतिसार और प्रवाहिका में विशेष लाभ होता है।
*अनार को छिलके सहित कूटकर रस निचोड़कर 30-50 ग्राम तक पिलायें। इसमें शक्कर मिलाकर पिलाने से पित्त के कारण होने वाली उल्टी, खुजली और थकान में लाभ होता है।
*अनार का छिलका 20 ग्राम को 1 किलो पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर रख लें, फिर इसी बने काढ़े को छानकर पीने से अतिसार (दस्त, पतली ट्टटी लगना) में खून का आना बंद हो जाता है।
*अनार के पत्तों को पानी में पीसकर लेने से अतिसार में लाभ मिलता है।
*अनार की कली 1 ग्राम, बबूल की हरी पत्ती 1 ग्राम, देशी घी में भुनी हुई सौंफ 1 ग्राम, खसखस या पोस्त के दानों की राख आदि 3 ग्राम की मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें, फिर इसी चूर्ण को लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में 1 दिन में सुबह, दोपहर और शाम को मां के दूध के साथ पीने से बच्चों का दस्त आना बंद हो जाता है।
*अनार के छिलके 50 ग्राम को लगभग एक किलो 20 ग्राम दूध की मात्रा में डालकर धीमी आग पर रख दें, जब दूध 800 ग्राम बच जाये इसे एक दिन में 3 से 4 बार खुराक के रूप में पीने से अतिसार यानी दस्त समाप्त हो जाते हैं।
*अनार की छाल का काढ़ा बनाकर 20 ग्राम से 40 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से लाभ मिलता है।
*अनार के फल, सौंफ, सोंठ, आम की गुठली यानी गिरी, खसखस की डोडी और भुना हुआ सफेद जीरा को बराबर मात्रा में लेकर बारीक चूर्ण बनाकर रख लें, इस बने चूर्ण को लगभग 5 ग्राम की मात्रा में लेकर 10 ग्राम मिश्री के साथ हर 2 घंटे के बाद खाकर ताजा पानी को पीने से अतिसार यानी दस्त की बीमारी से रोगी को छुटकारा मिलता है।
*अनार की छाल का 100 ग्राम चूर्ण, 50 ग्राम जीरा, 3 ग्राम सेंधानमक को बारीक पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में चूर्ण को लेकर 1 दिन में सुबह, दोपहर और शाम को पीने से पतले दस्तों का आना बंद हो जाता है।
*अनार के फल के छिलकों को उतारकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लें, इसी बने चूर्ण को 20 ग्राम की मात्रा में लगभग 400 ग्राम पानी में, 2 लौंग को डालकर अच्छी तरह से उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से पेट में होने वाली मरोड़ या ऐंठन और दस्त बंद हो जाते हैं।
*अनार के रस को लगभग 2 से 3 ग्राम की मात्रा में 4 या कुछ दिनों तक पीने से अतिसार का आना रुक जाता है।
*अनार के छिलकों को सुखाकर 15 ग्राम की मात्रा में लेकर 2 लौंग को डालकर पीसकर 1 गिलास पानी में डालकर उबाल लें, जब पानी आधा रह जाये तब इसका सेवन 1 दिन में लगभग 3-3 घंटे के बाद पिलाने से दस्त, पेचिश और पेट में से मल के द्वारा आने वाली आंव समाप्त हो जाती है।"

22 अजीर्ण से उत्पन्न अतिसार: -आधा ग्राम अनार की छाल का चूर्ण, आधा ग्राम जायफल और दो लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग केसर को मिलाकर उसका चूर्ण बनाकर शहद के साथ देना चाहिए। इससे एक ही बार में लाभ होगा। यदि न हो, तो दुबारा देना चाहिए।

23 हिस्टीरिया, पागलपन: -15 अनार के पत्ते, 15 ग्राम गुलाब के ताजे फूल 500 ग्राम पानी में उबालें। चौथाई पानी शेष रहने पर छानकर 20 ग्राम देशी घी मिलाकर रोजाना पीने से हिस्टीरिया और पागलपन के दौरों में लाभ होता है।

24 पाण्डुरोग (पीलिया): -*अच्छे अनार के 20 ग्राम रस में 10 ग्राम मिश्री मिलाकर सुबह-शाम देना चाहिए। इससे थोड़े दिनों में ही पीलिया ठीक हो जाता है।
*अनार खाने और रस पीने से शारीरिक कमजोरी नष्ट होती है और खून की कमी (एनीमिया) के रोग से मुक्ति मिलती है।
*50 ग्राम अनार के रस में रात को साफ लोहे का टुकड़ा डुबो दें। सुबह लोहे का टुकड़ा निकालकर, छानकर स्वादानुसार मिश्री और 25 ग्राम पानी मिलाकर पी जायें। इससे पीलिया में लाभ होगा।
*लगभग 250 ग्राम उत्तम अनार के रस में 750 ग्राम चीनी मिलाकर चाशनी बना लें। इसका सेवन दिन में 3 या 4 बार करने से पीलिया रोग दूर हो जाता है।
*छाया में सुखाए हुए अनार के पत्ते के महीन चूर्ण की 6 ग्राम मात्रा को सुबह गाय की छाछ तथा शाम को उसी छाछ के पनीर के साथ सेवन कराने से पीलिया रोग में लाभ मिलता है।
*अनार का रस मल बंध की शिकायत दूर करता है और पीलिया रोग में फायदा करता है।"

25 क्षय (टी.बी) के रोग: -*पके हुए स्वादिष्ट अनार के 200 ग्राम रस में 40 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण, 40 ग्राम जीरे का चूर्ण, 40 ग्राम सोंठ का चूर्ण, 40 ग्राम दालचीनी का चूर्ण और 10 ग्राम शुद्ध केसर डालकर 200 ग्राम उत्तम पुराना गुड़ मिलाएं, फिर सबको एकत्र करके जलाकर उसमें 10 ग्राम इलायची का चूर्ण डालें और 5-5 ग्राम वजन की गोलियां बनाएं फिर रोज सुबह-शाम 250 ग्राम दूध के साथ अपनी पाचन शक्ति के अनुसार लेना चाहिए। इससे टी.बी का रोग नष्ट हो जाता है।
*अनार के 200 ग्राम स्वादिष्ट रस में पीपल, सफेद जीरा, सोंठ और दालचीनी का चूर्ण 40-40 ग्राम, उत्तम केशर 10 ग्राम, पुराना गुड़ 200 ग्राम, हल्की आंच पर पकायें, जब गोली बनने योग्य गाढ़ा हो जाये, तो नीचे उतारकर 10 ग्राम छोटी इलायची का चूर्ण डालकर 6-6 ग्राम की गोलियां बनाकर, सुबह-शाम 1-1 गोली बकरी के दूध के साथ सेवन करें।
*यदि कमजोरी अधिक हो, परन्तु दस्त और खांसी न हो तो, ताजे अनार का रस जितना पी सकें पिलायें। इससे टी.बी का रोग नष्ट हो जाता है।
*यदि खांसी हो तो अनार का रस 2-2 चम्मच दिन में 3-4 बार पिलायें।"

26 अधिक बोलने से स्वर बिगड़ने पर: -अच्छा पका हुआ एक अनार रोज खाना चाहिए। इससे गले की बिगड़ी हुई आवाज कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है।

27 आंख की फूली (गुहेरी): -*अनार का फल जो अच्छी तरह पका हो, उसकी छाल को पके हुए अनार फल के रस में घिसे। फिर इसे लाल घोंगची के ऊपर के छिलके निकालकर घिसना चाहिए और आंख की फूली पर अंजन करना चाहिए।
*अनार का फल जो अच्छी तरह पका हो, उसकी छाल को पके हुए अनार फल के रस में घिसे। फिर इसमें एक या दो लाल गुंजा का छिलका निकालकर घिसें। इसे फूली पर दिन में तीन बार लगावें|"

28 कोढ़ के घाव: -*अनार के पत्तों को पीसकर लगाने से कोढ़ के जख्म, दाद और बर्र या बिच्छू दंश आदि में लाभ होता है।
*अनार के पत्तों को छाया मे सुखाकर उसका चूर्ण बनाकर 6 ग्राम से 10 ग्राम तक रोजाना पानी के साथ खाने से सफेद कोढ़ ठीक हो जाता है।"

29 गर्भस्राव: -लगभग 100 ग्राम अनार के ताजा पत्तों को पीसकर पानी में
छानकर पिलाने से और पत्तों का रस पेडू पर लेप करने से गर्भस्राव रुक जाता है

30 अत्यधिक मासिक स्राव (अत्यार्तव): -अनार के सूखे छिलके पीसकर छान लें। इस चूर्ण को 1 चम्मच भर की मात्रा में दिन में 2 बार सेवन करने से रक्तस्राव बंद हो जाता है। नोट : शरीर के किसी भी भाग से खून निकल रहा हो, उसे रोकने में भी इस विधि का उपयोग किया जा सकता है।

31 मुंह की दुर्गन्ध: -मुंह से दुर्गन्ध आती हो अथवा मुंह से पानी आता हो तो 4 ग्राम अनार के पिसे हुए छिलकों को सुबह-शाम ताजा पानी से लेने तथा छिलका उबालकर कुल्ले करने से लाभ होता है।

32 खांसीनाशक गोलियां: -80 ग्राम अनार का छिलका 10 ग्राम सेंधानमक में थोड़ा पानी डालकर गोलियां बना लें। यह 1-1 गोली दिन में 3 बार चूसने से खांसी ठीक हो जाती है।

33 खूनी बवासीर: -*खूनी बवासीर में सुबह-शाम अनार के पिसे छिलके के चूर्ण को 8 ग्राम की मात्रा में ताजे पानी से फंकी लेना चाहिए। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाता है।
*12 ग्राम अनार के फल के छिलके का चूर्ण समान मात्रा में चीनी के साथ दिन में 2 बार दें। इससे खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
*10 मिलीलीटर अनार के रस को मिसरी के साथ दिन में सुबह-शाम 2 बार लेना चाहिए। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।
*10 ग्राम अनार के सूखे छिलकों के चूर्ण को बराबर मात्रा में बूरा मिलाकर दिन में 2 बार लेना चाहिए। इससे खूनी बवासीर नष्ट हो जाती है।
*मीठे अनार का छिलका शीतल तथा खट्टे फल का छिलका शीतल रूक्ष होता है इसलिए यह अर्श (बवासीर) के लिए विशेष उपयोगी होता है।
*अनार की जड़ के 100 ग्राम काढे़ में 5 ग्राम सोंठ का चूर्ण मिलाकर दिन में 2-3 बार पीने से रक्तार्श यानी खूनी बवासीर में लाभ होता है।
*अनार के पत्तों का लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग रस सुबह-शाम पीने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
*अनार के 8-10 पत्तों को पीसकर टिकिया बनाकर गर्म घी में भूनकर बांधने से अर्श (बवासीर) के मस्सों में लाभ होता है।"

34 कामशक्तिवर्धक: -प्रतिदिन मीठा अनार खाने से पेट मुलायम रहता है तथा कामेन्द्रियों को बल मिलता है।

35 यकृत के रोग: -यकृत रोगों में अनार का रस सेवन करना लाभकारी होता है।

36 क्षुधावर्द्धक (भूख बढ़ाने वाली): -कालीमिर्च आधा चम्मच, सिंका हुआ जीरा 1 चम्मच, सेंकी हुई हींग चने की दाल के बराबर, सेंधानमक स्वादानुसार, अनारदाना 70 ग्राम लें। इन सबको पीस लें। यह स्वादिष्ट अनारदाने का चूर्ण बन जाएगा। इसको खाने से अरुचि नष्ट हो जाती है तथा मन प्रसन्न रहता है।

37 गर्मी के मौसम में सिर दर्द होना: -गर्मियों में सिर दर्द हो, लू लग जाए और आंखें लाल-लाल हो जाए तो अच्छे, पके अनार के दानों का रस निकालें। रस में डेढ़ गुनी शर्करा डालकर रस को उबालें और चासनी बनाकर शर्बत तैयार करें। उसमें 5 ग्राम केसर और 10 ग्राम इलायची दोनों का कपड़छन चूर्ण मिला लें। 20 से 25 ग्राम शर्बत में उतना ही पानी मिलाकर पीने से उष्णपित्त में शीघ्र ही लाभ होता है। गर्मी के मौसम में मस्तिष्क को शांत रखने, आंखों की जलन मिटाने और धूप में घूमने के कारण आई हुई बेचैनी को दूर करने हेतु प्रयोग करें। यह शर्बत रुचिकर एवं पित्तशामक होता है।

38 पित्तप्रकोप: -ताजे अनार के दानों का रस निकालकर उसमें मिश्री मिलाकर पीने से हर प्रकार का पित्तप्रकोप शांत हो जाता है।

39 दबी हुई आवाज के लिए: -पका अनार खाने से दबी हुई गले की आवाज खुल जाती है।

40 हठीली खांसी: -अनार की सूखी छाल पांच ग्राम बारीक पीसकर कपड़े से
छानकर उसमें 0.10 ग्राम कपूर भी मिला लें। यह चूर्ण दिन में 2 बार पानी में मिलाकर पीने से भयंकर बिगड़ी हुई हठीली खांसी भी दूर हो जाती है।

41 गर्भवती स्त्री की शारीरिक शक्ति की वृद्धि हेतु: -*अनार के पत्तों की चटनी, घिसा हुआ चंदन, थोड़ा-सा दही और शहद मिलाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भस्थ शिशु व गर्भवती स्त्री की बल वृद्धि होती है।
*खट्टे-मीठे अनार के रस या शर्बत के सेवन से गर्भावस्था की उल्टी शांत हो जाती है तथा मीठे अनार के दाने खाने से गर्भवती स्त्री के कमजोर रहने वाले हृदय और शरीर में सुधार होता है तथा गर्भवती महिला की दुर्बलता भी दूर होती है।"

42 नई पेचिश: -अनार का छिलका 5 ग्राम, लौंग का अधकुटा चूर्ण लगभग 8 ग्राम और 500 ग्राम पानी को ढंककर उबालें। 15 मिनट बाद इसे नीचे उतारकर ठंडा होने पर कपड़े से छान लें। यह जल दिन में 25 ग्राम से 50 ग्राम तक की मात्रा में सेवन कराने से नया अतिसार, नई पेचिश और आमातिसार की शिकायत दूर हो जाती है तथा आंते बलवान बनती हैं।

43 पेचिश: -अनार का छिलका और इन्द्रजौ प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर उन्हें चार गुने पानी में मिलाकर चतुर्थांश काढ़ा तैयार कर लेते हैं। उसकी 3 खुराक बनाकर 1-1 मात्रा सुबह, दोपहर शाम दिन में 3 बार प्रयोग करने से 1-2 दिन में ही रक्तातिसार (पेचिश में खून गिरना) बंद होता है। यदि पेचिश के कष्ट के साथ पेट में दर्द भी हो तो काढे में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग की मात्रा में अफीम भी मिला लें।

44 संग्रहणी: -*कच्चे अनार के रस में माजूफल, लौंग और सोंठ को घिसकर शहद के साथ पीना चाहिए। यदि अनार न मिले तो अनार की छाल को घिसकर पिलाना चाहिए। इससे संग्रहणी नष्ट हो जाती है। *अनार के 50 ग्राम रस में लौंग, सोंठ और जायफल का 3 ग्राम चूर्ण मिलाकर, शहद डालकर सेवन करने से संग्रहणी रोग नष्ट हो जाता है।
* अनार के दानों को कूटकर रस निकाल लेते हैं। इसके बाद उसमें जायफल, लौंग और सोंठ का थोड़ा-सा चूर्ण और शहद मिलाकर पीने से संग्रहणी रोग मिटता है। सूखे अनार के छिलकों को पीसकर उसमें पानी मिलाकर पीने से भी संग्रहणी का रोग दूर हो जाता है।
* 10 ग्राम अनारदाना, 2 ग्राम सोंठ, 2 ग्राम कालीमिर्च, 5 ग्राम मिश्री आदि सभी को कूट-पीसकर कपड़छन कर लें। इस प्राप्त चूर्ण का सेवन करने से संग्रहणी अतिसार के रोगी का रोग दूर हो जाता है।
* 20 से 40 ग्राम अनार की छाल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करने से संग्रहणी अतिसार ठीक हो जाते हैं।"

45 आंखों की थकावट: -अनार के वृक्ष के पत्तों को पीसकर आंखें बंद करके उन पर यह लुग्दी बनाकर रखने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है।

46 आंखों की चिरमाहट: -अनार के दानों का रस आंखों में डालने से आंखों की गर्मी दूर होती है।

47 स्त्रियों के स्तन को सुडौल, सख्त और आकर्षक करना: -*एक तरोताजा अनार को पीस लें। इसे 200 या 250 ग्राम सरसों के तेल में डालकर गर्म कर लें। इस तेल की मालिश नियमित रूप से स्तनों पर करते रहने से स्त्रियों के स्तन उन्नत, सुडौल, सख्त और सौंदर्ययुक्त बन जाता है।
*अनार की छाल लगभग एक किलो और माजूफल 125 ग्राम को 2 लीटर पानी में डालकर पकायें जब पानी आधा बच जाये तब इसे छानकर रख लें, फिर इसी में 125 ग्राम तिल्ली का तेल डालकर पकाकर स्तनों पर लेप करने से स्तन कठोर होते हैं।"

48 हृदय के रोग: -*अनार के ताजे पत्तों का रस 10 ग्राम, 100 ग्राम पानी में मिलाकर पीने से हृदय की तेज धड़कन में बहुत लाभ होता है। इसे सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।
*अनार का शर्बत 20-25 मिलीलीटर का नित्य सेवन करें। इससे हृदय के रोग नष्ट हो जाते हैं।
*छाया में सुखाये हुए अनार के महीन पत्तों के चूर्ण को ताजे पानी के साथ सेवन करने से दाद, रक्तविकार (खून के रोग), कुष्ठ, प्रमेह (वीर्य विकार), दिल की धड़कन, नासूर, घाव, पित्तज्वर, वातकफज्वर में लाभ होता है।"

49 मूत्राघात (पेशाब के साथ धातु का जाना): -*लगभग 50 ग्राम अनार के रस में छोटी इलायची के बीजों का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण आधा-आधा ग्राम मिलाकर पीने से मूत्राघात में बहुत लाभ होता है।
*अनार के रस में छोटी इलायची के बीज और सोंठ का चूर्ण मिलाकर पिलाने से मूत्राघात में बहुत लाभ मिलता है।
*अनार के पत्ते 10 ग्राम और हरा गोखरू 10 ग्राम दोनों को 150 ग्राम पानी में पीस-छानकर सेवन करने से मूत्राघात की शिकायत दूर हो जाती है।"

50 गर्भधारण की क्षमता में वृद्धि: -*अनार की ताजी, कोमल कलियां पीसकर पानी में मिलाकर, छानकर पीने से गर्भधारण की क्षमता में वृद्धि होती है।

51 अम्लता (एसीडिटी): -10 मिलीलीटर अनार का रस दिन में 2 बार पीने से भी लाभ होता है।

52 मुंहासे: -अनार के बीजों का लेप बनाकर मुंहासों पर लगाना चाहिए। इससे मुंहासे नष्ट हो जाते हैं।

53 हृदयरोग, उच्चरक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर): -*अनार का रस उच्च रक्तचाप कम करता है। यह धमनियों के सिकुड़ने को कम करता है। रोज अनार का रस पीने से बाईपास सर्जरी से बचा जा सकता है।

54 रक्तपित्त: -लगभग 7-14 मिलीलीटर अनार के फलों का रस दिन में 2 बार देना चाहिए। इससे रक्तपित्त में लाभ मिलता है।

55 कब्ज: -*अनार में शर्करा (शुगर) और सिट्रिक अम्ल काफी मात्रा में होता है। यह अत्यंत पौष्टिक, स्वादिष्ट और लौह-तत्व से भरपूर होता है। कब्ज से पीड़ित व्यक्तियों के लिए बीज समेत अनार का सेवन करना अच्छा रहता है और इसके रस के सेवन से उल्टी आना बंद हो जाती है।
*अनारदाना 100 ग्राम, दालचीनी 20 ग्राम, इलायची 20 ग्राम, तेजपत्ता 20 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, कालीमिर्च 40 गाम, पीपल 40 ग्राम को मिलाकर अच्छी तरह पीसकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें 250 ग्राम पुराना गुड़ मिला दें। इसे 4 ग्राम रोजाना सुबह लें। इससे कब्ज दूर हो जाती है।"

56 दांतों के रोग: -*अनार तथा गुलाब के सूखे फूल, दोनों को पीसकर मंजन करने से मसूढ़ों से पानी आना बंद हो जाता है। केवल अनार की कलियों के चूर्ण का मंजन करने से मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है।
*मुख और मसूढ़ों के विकार में अनार के जड़ के काढ़े से कुल्ले कराने से लाभ होता है।
*मीठे अनार के छाया में सूखे 8-10 पत्तों के चूर्ण के मंजन से दांतों का हिलना, मसूढ़ों से खून और पीव का आना या सूजन होना आदि दांतों के विकार नष्ट हो जाते हैं।"

57 अनिद्रा या नींद न आना: -अनार के ताजे पत्ते 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 ग्राम पानी में उबालें, जब यह 100 ग्राम शेष रह जाये तो इसमें गर्म दूध मिलाकर पीयें। इससे शारीरिक व मानसिक थकावट मिटती है और अनिद्रा रोग भी मिटता है।

58 मुंह के छाले: -अनार के 25 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई भाग शेष बचे तो उस पानी से कुल्ले करने से मुंह के छाले तथा मुंह के अन्य रोग नष्ट हो जाते हैं।

59 आंखों के रोग: -*अनार के 5-6 पत्तों को पानी में पीसकर दिन में दो बार लेप करने तथा पत्तों को पानी में भिगोकर पोटली बनाकर आंखों पर फेरने से आंखों के दर्द में लाभ होता है।
*अनार के 8-10 ताजे पत्तों का रस किसी चीनी मिट्टी के बर्तन में कपड़े से छानकर रख दें और सूख जाने पर इसे सुबह-शाम किसी तिल्ली या सलाई द्वारा आंखों में लगायें, इससे खुजली, आंखों से पानी बहना, पलकों की खराबी, आदि रोग दूर होते हैं।
*अनार के पत्तों को पीसकर आंखों के ऊपर लेप करना चाहिए। इससे आंखों का दर्द नष्ट हो जाता है।"

60 कर्ण विकार (कानों के रोग): -*अनार के ताजे पत्तों का रस 100 ग्राम, गौमूत्र (गाय का पेशाब) 400 ग्राम और तिल का तेल 100 ग्राम, तीनों को धीमी आंच पर उबालते हैं जब केवल तेल शेष ही रह जाए तो इसे छानकर रख लें। इसकी कुछ बूंदें थोड़ा गर्म कर सुबह-शाम कान में डालने से कान की पीड़ा, कर्णनाद और बहरेपन में लाभ होता है।
*अनार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में बेल के पत्तों का रस और गाय का घी मिलाकर गर्म कर लेते हैं। इसे लगभग 20 ग्राम की मात्रा में लेकर उसमें 250 ग्राम मिश्री मिले दूध के साथ सुबह-शाम लेने से बहरापन में लाभ होता है।
*खट्टे अनार के रस में शहद मिलाकर कान में डालने से कान का पैत्तिक दर्द दूर हो जाता है।
*थोड़े से अनार के छिलके और 2 लौंग को लेकर सरसों के तेल में डालकर अच्छी तरह से पका लें। पकने के बाद इस तेल को छानकर एक शीशी में भर लें। इस तेल को कान में डालने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।"

61 गले के रोग: -*अनार के ताजे पत्तों के 1 किलो रस में मिश्री मिलाकर, शर्बत बना लें, 20-20 ग्राम दिन में 2-3 बार चाटने से आवाज का भारीपन, खांसी, नजला तथा जुकाम दूर होता है।
*अनार के छाया में सूखे पत्तों के महीन चूर्ण में शहद या गुड़ मिलाकर झरबेरी जैसी गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इन गोलियों को मुंह में रखकर चूसना चाहिए। इससे गले के रोग नष्ट हो जाते हैं।
*एक किलो अनार के पत्तों का रस, 1 किलो सत्यानाशी (पीला धतूरा) का रस, 1 किलो गोमूत्र (गाय का पेशाब), 2 किलो काले तिलों का तेल, 500 ग्राम अनार के पत्तों की लुगदी (चटनी) को मिलाकर आग पर पकाने के लिये रख दें, जब पकते-पकते केवल तेल रह जाय, तब इसे उतारकर ठंडा कर लें और छान लें। यह तेल लगाने से कण्ठमाला (गले की गांठे), भगन्दर, कोढ़ के दाग (निशान), दाद और चेहरे के काले निशान मिट जाते हैं।
*अनार के छिलकों को 10 गुना पानी में मिलाकर काढ़ा बना लें। और इसमें लौंग और फिटकरी को पीसकर मिला लें। इसके गरारे करने से गले की खरास (गले का सूखना) और स्वर-भंग (आवाज का बैठना) रोग ठीक हो जाता है।"

62 बालों का झड़ना: -अनार के ताजे हरे पत्तों के 100 ग्राम काढे़ में आधा किलो सरसों का तेल मिलाकर गर्म कर लेते हैं। इस तेल को सिर में लगाने से सिर का गंजापन दूर होता है तथा बालों का झड़ना रुकता है।

63 सिर का दर्द: -*अनार के छाया में सुखाये हुए आधा किलो पत्तों में आधा किलो सूखा धनिया मिलाकर महीन चूर्ण कर लें, इसमें 1 किलो गेहूं का आटा मिलाकर, 2 किलो गाय के घी में भून लें, ठंडा होने पर 4 किलो चीनी मिला लें। सुबह-शाम गर्म दूध के साथ 50 ग्राम तक सेवन करने से सिर दर्द और सिर चकराना दूर होता है।
*अनार की छाल को घिसकर सिर पर लेप करें, इससे सिर का दर्द तथा आधाशीशी (माइग्रेन) में भी लाभ होता है।

कुंवारी रह जाओ : एक गंभीर हास्य कविता

कुंवारी रह जाओ : एक गंभीर हास्य कविता


शादी में बेटे की कीमत मांगते भारी,
यह पिता नहीं हैं, ये हैं व्यापारी !
ऐसे मंगतो के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

औरत की कोख से ही पैदा हुए हैं आप,
फिर भी भ्रूण हत्या का करते जघन्य अपराध,
ऐसे अपराधियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

संसद में बैठ नंगा विडियो चलाते,
घोटालों के सिर पर अपनी तोंद बढाते,
ऐसे बदमाशों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

बलात्कारी हैं निर्लज्जता की हद ये तोडें,
बस चले इनका तो माँ-बहन को न छोडें,
ऐसे बलात्कारियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

नशे में डूब करते जिन्दगी बरबाद,
न अपनो की शर्म न दूजों का लिहाज्,
ऐसे नशेडियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

संत महात्मा बने फिरते, बडा तिलक लगाते,
गला उनका ही काटें जिन्हें गले लगाते,
ऐसे पापियों के घर मत जाना, चाहे कुंवारी रह जाना !

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