नंदी की स्थापना गर्भ-गृह के बाहर क्यों?
यह बात देखने में अटपटी लग सकती है कि शिव परिवार का महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद असीम शक्तियों के स्वामी नंदी शिव परिवार के साथ न होकर गर्भ-गृह के बाहर क्यों स्थापित होते हैं। इसके पीछे भी रहस्य है। नंदी गर्भ-गृह के बाहर खुली आंखों की अवस्था में समाधि की स्थिति में होते हैं, लेकिन उनकी दृष्टि शिव की ओर ही रहती है।
महाभारत के रचयिता के अनुसार खुली आंखों से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और इस आत्मज्ञान के सहारे जीवन मुक्ति पाना सरल हो जाता है। शिव दर्शन से पहले नंदी के दर्शन करना शास्त्रसम्मत है, ताकि व्यक्ति अपने अहंकार सहित समस्त बुराइयों से मुक्त हो जाए। मद, मोह, छल, कपट और ईर्ष्या जैसे अपने विकारों को नंदीश्वर के चरणों में त्याग कर वह शिव के पास जाए और उनकी कृपा प्राप्त करे। नंदी का अर्थ है— प्रसन्नता यानी जिनके दर्शन मात्र से ही समस्त दुख दूर हो जाते हों। नंदी जीवन में प्रसन्नता और सफलता के प्रतीक हैं। ऋषि शिलाद के अयोनिज पुत्र नंदी शिव के ही अंश हैं, इसलिए अजर-अमर हैं। नंदी के सींग विवेक और वैराग्य के प्रतीक हैं। दाहिने हाथ के अंगूठे और तजर्नी से नंदी के सींगों को स्पर्श करते हुए शिव के दर्शन किए जाते हैं। नंदी की कृपा के बिना शिव कृपा संभव नहीं। आपने मंदिरों में अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग नंदी के कान के पास जाकर कुछ बुदबुदाते हैं। यह बुदबुदाना और कुछ नहीं, एक तरह से सिफारिश की गुहार लगाना ही है। इससे भक्त नंदी के जरिये अपनी मनोकामना महादेव तक पहुंचाते हैं। भोले बाबा अपने नंदी की बात को कभी नहीं टालते। दरअसल नंदी, शिव और भक्तों के बीच उस सेतु का कार्य करते हैं, जिसके सहारे व्यक्ति शिव की शरण में पहुंच कर उनकी कृपा का पात्र हो जाता है।
यह बात देखने में अटपटी लग सकती है कि शिव परिवार का महत्वपूर्ण और अभिन्न हिस्सा होने के बावजूद असीम शक्तियों के स्वामी नंदी शिव परिवार के साथ न होकर गर्भ-गृह के बाहर क्यों स्थापित होते हैं। इसके पीछे भी रहस्य है। नंदी गर्भ-गृह के बाहर खुली आंखों की अवस्था में समाधि की स्थिति में होते हैं, लेकिन उनकी दृष्टि शिव की ओर ही रहती है।
महाभारत के रचयिता के अनुसार खुली आंखों से ही आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और इस आत्मज्ञान के सहारे जीवन मुक्ति पाना सरल हो जाता है। शिव दर्शन से पहले नंदी के दर्शन करना शास्त्रसम्मत है, ताकि व्यक्ति अपने अहंकार सहित समस्त बुराइयों से मुक्त हो जाए। मद, मोह, छल, कपट और ईर्ष्या जैसे अपने विकारों को नंदीश्वर के चरणों में त्याग कर वह शिव के पास जाए और उनकी कृपा प्राप्त करे। नंदी का अर्थ है— प्रसन्नता यानी जिनके दर्शन मात्र से ही समस्त दुख दूर हो जाते हों। नंदी जीवन में प्रसन्नता और सफलता के प्रतीक हैं। ऋषि शिलाद के अयोनिज पुत्र नंदी शिव के ही अंश हैं, इसलिए अजर-अमर हैं। नंदी के सींग विवेक और वैराग्य के प्रतीक हैं। दाहिने हाथ के अंगूठे और तजर्नी से नंदी के सींगों को स्पर्श करते हुए शिव के दर्शन किए जाते हैं। नंदी की कृपा के बिना शिव कृपा संभव नहीं। आपने मंदिरों में अक्सर देखा होगा कि कुछ लोग नंदी के कान के पास जाकर कुछ बुदबुदाते हैं। यह बुदबुदाना और कुछ नहीं, एक तरह से सिफारिश की गुहार लगाना ही है। इससे भक्त नंदी के जरिये अपनी मनोकामना महादेव तक पहुंचाते हैं। भोले बाबा अपने नंदी की बात को कभी नहीं टालते। दरअसल नंदी, शिव और भक्तों के बीच उस सेतु का कार्य करते हैं, जिसके सहारे व्यक्ति शिव की शरण में पहुंच कर उनकी कृपा का पात्र हो जाता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.