राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के बारे में दुष्प्रचार का एक बड़ा झूठ कुछ इस प्रकार फैलाया गया की संघ को तिरंगा अछूत है..
इतिहास के पन्नों से कुछ जानकारियाँ मिली हैं जो सभी से साझा किया जाना मुझे उचित लगा,, आप भी जानिये ...
(1) 1936 में कांग्रेस के फैजपुर राष्ट्रीय अधिवेशन में तत्कालीन अध्यक्ष पं. जवाहरलाल नेहरू जब ध्वजारोहण कर रहे थे,
झण्डा बीच में ही अटक गया।
झण्डा बीच में ही अटक गया।
ध्वजदंड अस्सी फुट ऊंचा था।
अनेक ने उस पर चढ़कर ध्वज ठीक करने की कोशिश की, पर असफल रहे।
अनेक ने उस पर चढ़कर ध्वज ठीक करने की कोशिश की, पर असफल रहे।
तभी "किसन सिंह परदेशी" नामक संघ का स्वयंसेवक तेजी से उस दंड पर चढ़ गया और ध्वज खोल आया।
लोगों ने प्रशंसा की।
खुले अधिवेशन में परदेशी को सम्मानित करने की बात स्वयं नेहरू जी ने कही।
पर जब पता चला कि परदेशी संघ का स्वयंसेवक है, तो सम्मान नहीं किया गया।
कुछ दिन बाद संघ के जन्मदाता डाक्टर हेडगेवार - किसन सिंह के गांव शिरपुर
(महाराष्ट्र) आए और तिरंगे का मान रखने के लिए उन्होंने उसे एक कार्यक्रम
में चांदी का पात्र भेंट किया।
(2) देशभक्ति का सहज संस्कार प्राप्त संघ के स्वयंसेवकों ने 1947 में श्रीनगर (कश्मीर) में भी तिरंगे का सम्मान स्थापित किया था।
वहां 14 अगस्त को (जब पाकिस्तान बना) शहर की कई इमारतों पर पाकिस्तानी
झण्डे फहरा दिए गए। तब कुछ ही घण्टों में संघ के लोगों ने तीन हजार तिरंगे
सिलवाकर पूरी राजधानी उनसे पाट दी थी।
(3) लोग भूल गए हैं कि 1952 में जम्मू संभाग में संघ ने "तिरंगा सत्याग्रह' करके 15 बलिदान दिए थे।
हुआ यूं कि "सदरे रियासत" का पद संभालने के बाद डा. कर्णसिंह 22 नवम्बर, 1952 को जम्मू आने वाले थे।
उनके स्वागत समारोह में शेख अब्दुल्ला की पार्टी नेशनल कांफ्रेंस केवल अपना लाल-सफेद दुरंगा झण्डा फहराने चली थी।
तब जम्मू क्षेत्र के सभी मुख्यालयों पर संघ कार्यकर्ताओं ने तिरंगा फहराए जाने की मांग को लेकर सत्याग्रह किए।
चार स्थानों- छम्ब, सुंदरवनी, हीरानगर और रामवन में इन "तिरंगा सत्याग्रहियों' पर शेख की पुलिस ने गोलियां चलायीं,
जिसमें मेलाराम, कृष्णलाल, बिहारी, शिवा आदि 15 स्वयंसेवक मारे गए थे।
तिरंगा फहराने का अपना अधिकार जताने के लिए स्वतंत्र भारत में किसने ऐसी कुर्बानी दी है?
(4) 2 अगस्त, 1954 को पूना के संघचालक विनायक राव आपटे के नेतृत्व में संघ
के सौ कार्यकर्ताओं ने सिलवासा (दादरा और नगर हवेली का मुख्यालय) में
घुसकर वहां से पुर्तगाली झण्डा उखाड़कर तिरंगा फहराया था।
पुर्तगाली पुलिसजनों को बंदी बना लिया और इस तरह वहां पुर्तगाली शासन का अंत किया।
(5) पणजी (गोवा) में 1955 में पुर्तगाली सरकार के सचिवालय पर भी पहली बार
तिरंगा फहराने वाला व्यक्ति भी मोहन रानाडे नामक एक स्वयंसेवक था,
जो इस "जुर्म' में 1972 तक लिस्बन (पुर्तगाल) की जेल में रहा।
(6) गोवा में पुर्तगाल शासन के खिलाफ तिरंगा हाथ में लिए सत्याग्रह करते
हुए राजाभाऊ महाकाल (उज्जैन के स्वयंसेवक) पुलिस की गोली से मारे गए थे।
ऐसे कितने ही उदाहरण हैं।
(7) 1962 में जब चीनी सेना नेफा (अब अरुणाचल प्रदेश) में आगे बढ़ रही थी,
तेजपुर (असम) से कमिश्नर सहित सारा सरकारी तंत्र तथा जनसाधारण भयभीत होकर भाग गए थे।
तेजपुर (असम) से कमिश्नर सहित सारा सरकारी तंत्र तथा जनसाधारण भयभीत होकर भाग गए थे।
तब आयुक्त मुख्यालय पर तिरंगा फहराए रखने के लिए सोलह स्वयंसेवकों ने दिन-रात ड्यूटी दी थी।
(8) 15 अगस्त, 1996 को लाल चौक, श्रीनगर में आतंकवाद के सीने पर संघ के ही एक स्वयंसेवक मुरली मनोहर जोशी ने तिरंगा फहराया था।
तिरंगे की आन के लिए स्वतंत्र भारत में ऐसी कुर्बानी किसने भी नही दी है...!!!!
और इसके लिए संघ या स्वयंसेवको को किसी के शिक्षा की जरुरत नही है, क्योकि देशभक्ति संघ के स्वयंसेवकों का सहज संस्कार है।
वन्दे मातरम
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