मैं मीडिया में सक्रिय रहा हूं इसलिए कुछ बाते बताना चाहूंगा जो मैंने देखी।
व्यवहारिक उपाय:
फालतू
में पुलिसवाला कभी तंग नहीं करता आम तौर पर पुलिस वाले शरीफ आदमी पर कभी
हाथ नहीं डालते। हाँ ये हो सकता है कि कोई पीड़ित आदमी किसी मामले में फंसकर
पुलिस के चक्कर में आता है तब बात सिर्फ 'फालतू' नहीं रहती। यहां अवश्य
'भ्रष्टाचारी पुलिस वाला' पीड़ित को तंग करता है। तो उससे निपटना वाकई टेढी
खीर है क्योंकि आपको इस संबंध में आवश्यक मदद किस स्तर पर जाकर मिलेगी इसका
कोई निश्चित नहीं है। हो सकता है कि उसके बिल्कुल ऊपर वाले अधिकारी से
मिले या complaint को होम मिनिस्ट्री तक ले जाना पड़े।
पुलिस हमेशा कमजोर को तंग करती है और यही संसार का नियम है कि हर कोई कमजोर पर हावी होना चाहता है। पंजाबी में एक कहावत का अर्थ है कि कमजोर इंसान की पत्नी सबकी भाभी होती है। भीड़ में भी जो सीधा , या कमजोर या अच्छे कपड़े वाला नहीं हो पुलिस सबसे पहले उसी की पिटाई चालू करती है ताकि अच्छे प्रोफ़ाइल दिखने वाले लोग दूर रहे और पुलिस को सबक ना सीखा पाए। ज्यादातर अनपढ़, काम चलाऊ पोशाक पहने हुए, डरपोक दिखने वाले लोग , बेहद कमजोर युवा लोग पुलिस के निशाने पर आते हैं। तेज तर्रार बोलने वाली महिला से भी पुलिस वाले नहीं उलझते।
अब बात आती है कि हर कोई तुरंत शक्तिशाली कैसे बने? बहुत समय लगता है। शक्ति के अर्थ में तो सभी निर्बल हैं।
शहर में या ग्राम में शक्ति के कुछ केंद्र होते हैं जिनसे आप अपना काम निकाल सकते हैं। ये हैं:
राजनीति से जुड़े हर तरह के लोग चाहे वह कार्यकर्ता ही हो।
पत्रकार चाहे कितना ही छोटे अखबार का हो, पुलिस उससे नहीं उलझती है।
वकील पुलिस को भी कानून सीखा सकता है इसलिए दोनों एक दूसरे से नहीं उलझते।
कोई भी संस्था, संगठन हो इनको पुलिस इज्जत देती है।
पांच आदमी साथ मिलकर थाने चले जाओ, आपकी बात सुनी जाएगी। मगर एक आदमी प्रभाव वाला हो।
आजकल सोशल मीडिया भी एक ताकत बन कर उभरा है। ऐसी घटना को रिकॉर्ड करके पुलिस थाने और पुलिस कप्तान तक पहुंचा दो, आपको हल मिल जाएगा। ।
इनमें से किसी से मिलकर अपनी समस्या बता दीजिए। कोई न कोई आपकी समस्या हल कर देगा।
मैंने पत्रकारिता के दौरान बहुत से लोगों की निस्वार्थ मदद की थी। हमारी कालोनी में एक परिवार रहता था। उनका लड़का मेरा मित्र था। एक दिन उसने मुझे बताया कि कई साल हो गए। उसकी शादी का पलंग व अलमारी आदि एक फर्नीचर वाला दे नहीं रहा और दाम दुगुने तिगुने लगाए बैठा है।
हर कोशिश कर ली जो मेरा दोस्त कर सकता था। पुलिस भी सुनवाई नहीं कर रही थी। मैंने उसे एक कागज पर थानाधिकारी के नाम छोटा सा संदेश लिख कर दिया। नीचे मेरे हस्ताक्षर और मोहर लगा दी। याद आया उन दिनों मैं एक पार्टी का छात्र नेता भी था।
मैं बात को भूल गया। कुछ दिन बाद मेरा दोस्त मिला। वह खुश था । उसका सामान आसानी से पुलिस वाले ने दिला दिया।
दरअसल पुलिस आजकल मनी और पॉवर की बात ही समझती है। अगर दो विरोधी पक्ष एक धन लेकर और दूसरी पॉवर लेकर पुलिस के सामने आ जाए तो यहां थोड़ा संशय आ जाता है। पुलिस इस स्थिति में भी बीच का रास्ता निकाल लेती है। सबसे पहले नौकरी की रक्षा करेगी, फिर अपना पैसा पक्का करने की पूरी कोशिश करेगी और फिर बीच का रास्ता निकलेगी और दोनों पक्षों को संतुष्ट कर देगी। अगर फिर भी एक पक्ष नहीं मानता तो प्रभावशाली लोगों से बैठकें चलेंगी और विरोधी को संतुष्ट करने का पूरा प्रयास चलेगा। ऐसे में अगर पीड़ित कोई कमजोर व्यक्ति है तो उसको फेवर में लेकर सब लोग अपना लाभ उठाएंगे। रिपोर्ट दर्ज भी हो जाती है तो भी कार्रवाई ना के बराबर चलेगी। जैसे निर्भया मामले में हो रहा है जिस पर कई प्रभावशाली धडों की राजनीति चल रही है और यह मामला कुछ लोगों की नाक का सवाल बना हुआ है और फुटबाल का खेल जैसा हो रहा है। युक्तियां ढूंढी जा रही है। वकील लाभ उठा रहे हैं और कई अदृश्य पक्ष मैदान में डटे हैं। खैर, यह तो एक राजनीतिक मामला बन गया है। छोटे लेवल पर बात करें तो निर्बल इंसान की अधिकतर कोई सुनवाई नहीं होती। मनी या किसी की पॉवर का साथ लेना पड़ता है।
कहने का सार यह है कि परेशान होने की बजाय इसे टाले नहीं। उचित माध्यम से इसका हल करें। माध्यम मैंने ऊपर बता दिए हैं।
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