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*टेडीबीयर डे (व्यंग्य जोधपुर की मारवाड़ी भाषा में)*
*बीते कल (09-02-22) की लेखनी से आगे*....
*लारले तीण दिणों सु , भारतीय समाज रा ए छोरा- छोरिया, होडा-होड, , गोड़ा-फोड़, फिरंगियों री संस्कृति देख ने उवोरी नकल करता करता मारी रातो री नींद उडा दी ....... कदई तो ऐं भोडंलागिया ..... रोजडे रो दिण मनावे ओर कदई परपोज रो दिण ओर मने आज अचम्बो इण बात रो है कि काले तो ए छोरा स्कूल में पढाउण वाली चॉक रो दिन भी मना लियो, उन चॉक रो अंगेजी में स्वर्गवास कर दिया .... चॉक रे लारे .....लेट लगा दियो .........*
.*आज मैं इण सब दिनों सु तंग आ ने घर सु गेढियों ले ने इण बात रो पतो लेवण रे वास्ते निकलियों हूूं ...ताकि मने आ तो पतो लाग सके, कि आज मारे शहर में किणों दिण मनायो जा रियो है ....सिरे बाजार जदै मैं पुगियो तो सडको माते भालू रा नैनकिया ......नैनकिया टाबरिया बिकण रे वास्ते आयोडा हा, उठे उबा छोरो ने मैं पुछियो .....रे छोरो ...आज, कई ढोंग मचा राखियों हो ....... छोरा बालिया काकोसा आज टेडीबीयर डे है .....मैं आंखियों मातु चश्मों हटा ने पाछो पुछियो कि ओ कई हुवे रे .... जवाब दियो थे हमझो ला कोनी काकोसा ...... आप तो घरे पधारो .... काकीजी जिको कोम भलायो है ....कर ने घरे सीधा घरे जावो .परा ...... हुनी टेम पास मत करो....मैं पाछो बोलियों, रे छोरो.....जै थे छोरा घर रो कोम कर देवता, तो मने डोकरो ने क्यु बाजार आवणों पडतो ........ टेम पास री बात करे, माउ....*.
*खेर ....बीयर रो नोम हुणतो ही इज मैं तो गहरे सदमें में पहुच गियो ...... बचपन मे जदे पोशाल (पाठशाला) पढ़ता, उण टेम माडसाहब कैवता दारू, बीयर नरक रा द्धार हुवे.... जीवन भर उन कनी देखजो मत, जै कदई देख ली, तो कुते री मोत मरो ला . ...... उण टैम इज... माडसाब रे होमे गौ माता री... होगन्ध खाई कि जिन्दगी भर बीयर, दारू ओर शराब सु दूर रैवो ला सा....ओर आज तक मने माडसाहब रे होमे ली होगन्द याद है और उवोरी कैयो डी बातो भी.... मैं दारू, बीयर पीवणों री बात तो दूर ... मैं खाली बोतल रे भी हाथ कोनी लगाऊँ .... पण मनै आज इण बात रो अचम्बो है कि आज रा छोरा, होडा -होड, गोडा -फोड ने बीयर ने टेढ़ी कर ने उन्हों भी दिन मना रिया है ।*
*बाजार में जीवती मछली, बकरा, मुर्गो रो माँस तो मिलतो ही इज हो....बाजार में भालु रा नैनकिया नैनकिया टाबरिया निर्जीव रूप में आ गया है....इण देश रा युवा क्यु खुद री चोकी- चोकी संस्कृति ने छोड़ ने फिरंगियों री हुगली बातों मनाउंन ने आमदा हु रिया है.....इन बुढ़ापे में ऐडा दिन किनही भी नही दिखावे.....होचतो होचतो मैं उठु रवाना हु गियो..........*
(शेष कल, अगर सोचने का समय मिला तो लिखने का प्रयास करूंगा)
*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*
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