*प्रोमीस डे ( व्यंग्य)*
बीते कल (10-02-22)की लेखनी से आगे.....
*...घर पहुचा तो चिन्ता की लकीरें मस्तक पर देख श्रीमती पानी की गिलास दी, ओर बोली जमाना तुम्हारे अकेले से नही बदलेगा....तुम्हे कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा ? सोचा है कभी तुमने ? ..... दुनिया की छोड़ो, वो चाहे किसी का भी दिन मनाए ? .... तुम अपना माथा क्यो खपाते हो..... उनकी डाट में प्रेम स्प्ष्ट झलक रहा था....अब थोड़ा आराम कर लो, मैं तुम्हारे पैर दबा देती हूं..... ओर वो मेरे पैर दबाते हुवे बोली, कल शुक्रवार है माँ संतोषी माता के दर्शन व मोर को चुगा डालने चलना है, कल । ऑटो टेक्सी वाले से बात कर लेना । मैं मन मे सोचने लगा कि पत्नी के कितने रूप होते है लक्ष्मी रूप धर कर वो ससुराल को स्वर्ग भी बना सकती है और वो चाहे तो.....*
*अगले दिन अपरान्ह में मै टेक्सी मे श्रीमतीजी के साथ संतोषी माता के दर्शन किये....मोर व अन्य पक्षियों को दाना- पानी- चुगा डाल पैदल ही घर की ओर लौट रहे थे कि.... राह में पानी पीने की इच्छा हुई....... हलाकि सामने दुकान में #बिसलेरी बोतल उपलब्ध थी....... लेकिन सोचा जल को खरीदने की बजाय किसी घर से मांग कर मुफ्त में ही पी लेते है ...... वैसे भी आजकल मुफ्त के वादे करने से #सरकार तक बन जाती है ...... बाद में भलेही किये वादे पर झाड़ू लगें या चल जाये साइकिल क्या फर्क पड़ता है....जिसको खिलना होता खिल ही जाता है..... कुछ ही दूर विराने में एक भवन नजर आया । पानी की चाहत में, उस भवन के समीप पहुचा ... भवन के मुख्य द्वार पर एक #बुढी माँ टकटकी लगाए हुए बैठी थी....मैं अपनी पत्नी के साथ उसके निकट जा ही रहा था कि पहले तो दूर से देखकर वो मुस्कराई ... समीप पहुचा तो थोड़ी उदास हुई...... उसके चेहरे की झुरिया से बूढ़ी माँ की उम्र 85-90 वर्ष नजर आ रही थी ....शायद उन्हें किसी अपनो का इन्तजार था .... बूढ़ी आँखों ने मुझे व पत्नी को देख शायद धोखा खा लिया हो....इस बड़े भवन में बहुत से बुजर्ग महिलाए एव पुरूष थे .... मैंने वृद्धा को..... माँ..... से सम्बोधित कर बोला..... , माई मुझे #पानी पीना है .. क्या हमे पिलाओगी* .
*माँ शब्द सुनते ही .... उस वृद्ध माई मे नई जान आ गई हो.... ऐसा लग रहा था कि शायद मरु भूमि की तपती रज पर अनन्त वषों के बाद मेघ की कृपा हुई हो....बूढ़ी माँ अपनी क्षमता से अधिक .... दौडी ... भवन से पानी का लौटा छलकाते हुवे मेरे समीप ले आई ..... मै यह नही समझ पा रहा था कि मैं इसस माँ के हाथ में पकड़े लोटे से कंठ की प्यास बुझाऊ या माँ के आँखों से अविरल छलकते प्रेम के अश्रुधारा का पान करू ....*
*उस माँ के प्रेम, स्नेह के नीर का पान कर मैने पुछा, माई तुम दरवाजे पर किसकी राह तक रही हो ?.....ओर इस भवन में सभी रहवासी वृद्धजन क्यों है ? ...... माई बोली बेटा....यह #वृद्धाश्रम है यहाँ हम सभी वृद्धजनों को हमारे ही अपने #रिश्तेदारो ने रहने को मजबुर किया है .... इतना बोली ही थी कि, माई की आंखों में फिर से अश्रुधारा बह उठी..... माई से मैने फिर से सवाल किया....., माई तुम दरवाजे पर किसका इन्तजार कर रही थी ? ..... वो बोली....... बेटे, आज से 15 वर्ष पूर्व मेरे बेटे-बहु ने मुझे इस आश्रम में छोड दिया ...ओर मुझसे यह बोल कर चले गये थे कि ...... हम एक महीने के लिए पोते की आगे की पढ़ाई के लिए विदेश जा रहे है, जब वापस आयेगें तो तुम्हे घर लेकर जायेगें ..... तब तक तुम यही रहना.....*.
*....माई अपने आंखो से अश्रुधारा पुछते हुए बोली , बेटे उस बात को महीने ,... वर्ष बीत गए पर आज तक वो मुझे लेने नही आए ....... पर आज सुबह इस आश्रम में लगी टीवी पर मैने देखा ... आज #प्रोमीस डे है तो.. मैने सोचा कि आज मेरे बेटा बहुँ जरूर आएंगे क्यो कि उन्होंने प्रोमीस(वादा) किया था........ ओर आज #प्रॉमिसडे है मैं उनकी राह तक रही हूँ ....बेटे..... मैने दूर से तुझे व तेरी पत्नी को देखा तो एकबार लगा कि मेरे बेटे बहु मुझे लेने आ गए......लेकिन तुम वो नही हो..... उस माँ ने मुझसे कहा बेटे, क्या ऐसा होता है प्रोमिस.....*
*मेरे पास उस माई को प्रतिउत्तर देने हेतु सिवाय शीश झुकाने के अलावा कोई शब्द ना था ....मैने माई को नम आंखों से हाथ जोड़ निकल आया ....ओर प्रॉमिस किया आपस मे कि हम पति- पत्नी जीवन के अंतिम पड़ाव तक हम जुदा ना होंगे... भलेही संताने अपने अपने अलग अलग घर बना ले....हम 15 - 15 दिन में विभक्त ना होंगे......*
(शेष कल, अगर सोचने का समय मिला तो लिखने का प्रयास करूंगा)
*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*
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