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शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

हग डे (व्यंग्य) आनन्द जोशी, जोधपुर

हग डे (व्यंग्य)
बीते कल (11-02-22)की लेखनी से आगे.....

*.... उस बूढ़ी माँ के आँखो का तारा जिसे अपनी माँ को संभालने का भी उसके पास वक़्त ना था ओर सब कुछ जानते हुवे भी उसकी माँ के ममत्व का नीर उसके चक्षुओ से अवविरल छलकना .... यह सब सोच कर रात भर मुझे नींद नही आई......*.

*सुबह श्रीमती चाय के प्याला से मेरी आँख खुली, पास आकर वो बैठी गई, लग रहा था उसे मेरी ज्यादा चिंता है, वैसे भी उम्र के अंतिम पड़ाव में पति-पत्नी ही एक दूसरे का सहारा होते है.....हम बातें ही कर रहे थे कि इतने में घर की बेल (घण्टी) 2-3 बार बजी, दरवाजा खोला तो 2-3 युवा घर की अंदर आकर छुपने लगे.... हाथ जोड़कर मुझसे बोले अंकल हमे बचा लो, अब हम गलती नही करेगे..... माझरा समझ पाता इतने में पुलिस के दो सिपाही पीछा करते-2 आ गए ..... पूछा कि कुछ युवक आपके घर मे आये है ?.....पर्दे के पीछे छीपे युवा ....हाथ जोड़कर... इशारों में कहने लगे हमे पुलिस से बचा लो..... उन युवाओं की दयनीय स्थिति को देखकर पुलिस सिपाही के सम्मुख मैने झूठ बोला कि युवा नही आये...... पुलिस चली गई, युवक बाहर आये, कारण पूछा तो आँखें नीची कर बोले , रोज हम टीवी सीरियल देखते है, कल उसमे बताया कि आज हग डे , सीरियल में लड़को ने अपनी कॉलेज में हग डे मनाया.…...हमने भी आज ये करने का प्लान बनाया....सुबह सुबह ही कॉलेज में लड़की साथी से हम गले मिलकर हग डे मनाया ...इसकी भनक कॉलेज प्रशासन को लगी, उन्होंने पुलिस को सूचना दी, ओर हम भागते भागते यहां पहुच आए......*

*मैने उनको सुन कर पूछा तुम लोग ऐसा क्यों करते हो...वो बोले अब नही करेंगे । मैने पूछा तुम्हे कैसे पता चलता है कि आज रोज डे है , हग डे है आदि.... आदि.... वो बोले व्हाट्सप, फेसबुक, इंस्टा, टीवी, व सोशियल मीडिया के अन्य आयाम से हमे पता चल जाता है । मैंने उनसे कहा सावन के बाद रक्षा बंधन, कार्तिक मास में दीवाली, फाल्गुन में होली का त्योहार आता है इन सभी त्योहार का महत्व होता है ....एक संस्कृति, एक प्रेरक सीख मिलती है, हमारे त्योहार में.....अगर हम अपने धर्म के त्योहार मनाते हैं तो अपने राष्ट्र के सभ्य नागरिक कहलाते हैं, दूसरे राष्ट्र की संस्कृति जिससे हम अनजान हैं बिना सोचे समझे उनकी संस्कृति का अनुसरण करना हमें गर्त की ओर ढकेलता है , जैसे कि आज तुम्हारे पीछे पुलिस पड़ी है......हग करो, जरूर करो अपनी जननी, पिता , निर्धन से हग करो, सुदामा कृष्णा राम भरत की तरह हग करो उन युवाओं ने अपने कान पकड़े , माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने का वचन देकर अपने घर को गए.......*
(शेष कल, अगर सोचने का समय मिला तो लिखने का प्रयास करूंगा)

*✒️आनन्द जोशी, जोधपुर*

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