भगवान ने कौन सा काम क्यों किया यह समझ पाना हमारे वश का नहीं है फिर भी मधु कैटभ की उत्पत्ति और अंत पर कुछ बातें करते हैं।
प्रलय के अंत में सब कुछ जलमग्न था भगवान विष्णु योगनिद्रा के प्रभाव से शयन कर रहे थे लेकिन ब्रह्म जी उनकी कमल नाभि पर बैठे थे। जहां तक मुझे लगता है भगवान विष्णु कभी खाली नहीं रहते कुछ ना कुछ करते ही रहते हैं। ब्रह्म जी को ब्रह्मा होने का अभिमान बहुत बार हो चुका है , इस बार भी ब्रह्मा जी को एक पाठ पढ़ाने के लिए भगवान ने अपने कान के मैल से महा शक्तिशाली मधु कैटभ को उत्पन्न कर दिया है या उत्पन्न होने दिया।
मनु कैटभ उत्पन्न होते ही ब्रह्मा जी को मारने चल दिए, उन भयानक असुरों को देखकर ब्रह्मा जी ने सोचा भगवान तो सो रहे हैं अब उन्हें कौन बचाएगा ? तब ब्रह्म जी ने देवी की स्तुति करना प्रारंभ किया जिनके वश में आकर भगवान विष्णु शयन कर रहे थे।
ब्रह्मा जी ने कहा — " ये जो दोनों असुर मधु और कैटभ हैं, इनको मोह में डाल दो और जगदीश्वर भगवान विष्णु को शीघ्र ही जगा दो। साथ ही इनके भीतर इन दोनों असुरों को मार डालने की बुद्धि उत्पन्न कर दो "
तमोगुण की अधिष्ठात्री देवी योगनिद्रा इस स्तुति से प्रसन्न हुईं और भगवान विष्णु के नेत्रों से निकलकर ब्रह्मा जी के सामने खड़ी हो गईं।
योगनिद्रा से मुक्त होते ही जगत के आधार भगवान शेषनाग की शैय्या पर बैठ गए और दो असुर वीरों को ललकारते हुए देखा। जो लाल लाल नेत्र किए ब्रह्मा जी को खाने के लिए उद्यत थे।
भगवान विष्णु को उन महापराक्रमी असुरों ने युद्ध करने को आमंत्रित किया लेकिन भगवान बल के साथ बुद्धि के भी भंडार हैं, वे उन असुरों की स्तुति करके उनसे उन्हीं के मृत्यु का वरदान मांग लिया। तत्पश्चात भगवान ने उनका वध कर दिया।
भगवान के इस लीला से हमें बहुत कुछ मिला जैसे दुर्गा जी की स्तुति करने का तरीका, भगवान की पावन कथा और व्यवहारिक ज्ञान तो मिला ही। अगर भगवान ये सब ना करें तो भवसागर से पार होने के लिए हमारे पास कोई साधन नहीं रहेगा।
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