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मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

अडूसा ( वासा ) के प्रयोग

अडूसा ( वासा ) के प्रयोग -

1 क्षय (टी.बी.) :- अडूसा के फूलों का चूर्ण 10 ग्राम की मात्रा में लेकर इतनी ही मात्रा में मिश्री मिलाकर 1 गिलास दूध के साथ सुबह-शाम 6 माह तक नियमित रूप से खिलाएं।
*अडूसा (वासा) टी.बी. में बहुत लाभ करता है इसका किसी भी रूप में नियमित सेवन करने वाले को खांसी से छुटकारा मिलता है। कफ में खून नहीं आता, बुखार में भी आराम मिलता है। इसका रस और भी लाभकारी है। अडूसे के रस में श
हद मिलाकर दिन में 2-3 बार देना चाहिए।
*वासा अडूसे के 3 किलो रस में 320 ग्राम मिश्री मिलाकर धीमी आंच पर पकायें जब गाढ़ा होने को हो, तब उसमें 80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण मिलायें जब ठीक प्रकार से चाटने योग्य पक जाय तब उसमें गाय का घी 160 ग्राम मिलाकर पर्याप्त चलायें तथा ठंडा होने पर उसमें 320 ग्राम शहद मिलायें। 5 ग्राम से 10 ग्राम तक टी.बी. के रोगी को दे सकते हैं। साथ ही यह खांसी, सांस के रोग, कमर दर्द, हृदय का दर्द, रक्तपित्त तथा बुखार को भी दूर करता है।
*वासा के रस में शहद मिलाकर पीने से अधिक खांसी युक्त श्वास में लाभ होता है। यह क्षय, पीलिया, बुखार और रक्तपित्त में लाभकारी होता है।
*अडूसा की जड़ की छाल को लगभग आधा ग्राम से 12 ग्राम या पत्ते के चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक खुराक के रूप में सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।

2 दमा :- *अड़ूसा के सूखे पत्तों का चूर्ण चिलम में भरकर धूम्रपान करने से दमा रोग में बहुत आराम मिलता है।
*अडूसा के ताजे पत्तों को सुखाकर उनमें थोड़े से काले धतूरे के सूखे हुए पत्ते मिलाकर दोनों के चूर्ण का धूम्रपान (बीड़ी बनाकर पीने से) करने से पुराने दवा में आश्चर्यजनक लाभ होता है।
*यवाक्षार लगभग आधा ग्राम, अडू़सा का रस 10 बूंद और लौंग का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से लाभ मिलता है।
*लगभग आधा ग्राम अर्कक्षार या अड़ूसा क्षार शहद के साथ भोजन के बाद सुबह-शाम दोनों समय देने से दमा रोग ठीक हो जाता है।
*श्वास रोग (दमा) में अडू़सा (बाकस), अंगूर और हरड़ के काढ़े को शहद और शर्करा में मिलाकर सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से लाभ मिलता है।
*श्वास रोग (दमा) में अड़ूसे के पत्तों का धूम्रपान करने से श्वास रोग ठीक हो जाता है। अडूसे के पत्ते के साथ धतूरे के पत्ते को भी मिलाकर धूम्रपान किया जाए तो अधिक लाभ प्राप्त होता है।
*अड़ूसे के रस में तालीस-पत्र का चूर्ण और शहद मिलाकर खाने से स्वर भंग (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
*अड़ू़सा (वासा) और अदरक का रस पांच-पांच ग्राम मिलाकर दिन में 3-3 घंटे पर पिलाएं। इससे 40 दिनों में दमा दूर हो जाता है।
*अड़ूसा के पत्तों का एक चम्मच रस शहद, दूध या पानी के साथ दिन में तीन बार सेवन करने से पुरानी खांसी, दमा, टी.बी., मल-मूत्र के साथ खून का आना, खून की उल्टी, रक्तपित्त रोग और नकसीर आदि रोगों में लाभ होता है।"

3 खांसी और सांस की बीमारी में :- अडूसा के पत्तों का रस और शहद समान मात्रा में मिलाकर दिन में 3 बार 2-2 चम्मच की मात्रा में ले सकते हैं।

4 नकसीर व रक्तपित्त :- अड़ूसा की जड़ की छाल और पत्तों का काढ़ा बराबर की मात्रा में मिलाकर 2-2 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार सेवन कराने से नाक और मुंह से खून आने की तकलीफ दूर होती है।

5 फोड़े-फुंसियां :- अडूसा के पत्तों को पीसकर गाढ़ा लेप बनाकर फोड़े-फुंसियों की प्रारंभिक अवस्था में ही लगाकर बांधने से इनका असर कम हो जाएगा। यदि पक गए हो तो शीघ्र ही फूट जाएंगे। फूटने के बाद इस लेप में थोड़ी पिसी हल्दी मिलाकर लगाने से घाव शीघ्र भर जाएंगे।

6 पुराना जुकाम, साइनोसाइटिस, पीनस में :- अडूसा के फूलों से बना गुलकन्द 2-2 चम्मच सुबह-शाम खाएं।

7 खुजली :- अडूसे के नर्म पत्ते और आंबा हल्दी को गाय के पेशाब में पीसे और उसका लेप करें अथवा अडूसे के पत्तों को पानी में उबाले और उस पानी से स्नान करें।

8 गाढ़े कफ पर :- गर्म चाय में अडूसे का रस, शक्कर, शहद और दो चने के बराबर संचल डालकर सेवन करना चाहिए।

9 बिच्छू के जहर पर :- काले अडूसे की जड़ को ठंडे पानी में घिसकर काटे हुए स्थान पर लेप करें।

10 सिर दर्द :- *अडूसा के फलों को छाया में सुखाकर महीन पीसकर 10 ग्राम चूर्ण में थोड़ा गुड़ मिलाकर 4 खुराक बना लें। सिरदर्द का दौरा शुरू होते ही 1 गोली खिला दें, तुरंत लाभ होगा।
*अडूसे की 20 ग्राम जड़ को 200 ग्राम दूध में अच्छी प्रकार पीस-छानकर इसमें 30 ग्राम मिश्री 15 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से सिर का दर्द, आंखों की बीमारी, बदन दर्द, हिचकी, खांसी आदि विकार नष्ट होते हैं।
*छाया में सूखे हुए वासा के पत्तों की चाय बनाकर पीने से सिर-दर्द या सिर से सम्बंधी कोई भी बाधा दूर हो जाती है। स्वाद के लिए इस चाय में थोड़ा नमक मिला सकते हैं।

11 नेत्र रोग (आंखों के लिए) :- इसके 2-4 फूलों को गर्मकर आंख पर बांधने से आंख के गोलक की पित्तशोथ (सूजन) दूर होती है।

12 मुखपाक, मुंह आना (मुंह के छाले) :- *यदि केवल मुख के छाले हो तो अडूसा के 2-3 पत्तों को चबाकर उसके रस को चूसने से लाभ होता है। पत्तों को चूसने के बाद थूक देना चाहिए।
*अडूसा की लकड़ी की दातुन करने से मुख के रोग दूर हो जाते हैं।
*अडूसा (वासा) के 50 मिलीलीटर काढे़ में एक चम्मच गेरू और 2 चम्मच शहद मिलाकर मुंह में रखने करने से मुंह के छाले, नाड़ीव्रण (नाड़ी के जख्म) नष्ट होते हैं।"

13 दांतों का खोखलापन :- दाढ़ या दांत में कैवटी हो जाने पर उस स्थान में अडूसे का सत्व (बारीक पिसा हुआ चूर्ण) भर देने से आराम होता है।

14 मसूढ़ों का दर्द :- अडूसे (वासा) के पत्तों के काढ़े यानी इसके पत्तों को उबालकर इसके पानी से कुल्ला करने से मसूढ़ों की पीड़ा मिटती है।

15 दांत रोग :- अडू़से के लकड़ी से नियमित रूप से दातुन करने से दांतों के और मुंह के अनेक रोग दूर हो जाते हैं।

16 चेचक निवारण :- यदि चेचक फैली हुई हो तो वासा का एक पत्ता तथा मुलेठी तीन ग्राम इन दोनों का काढ़ा बच्चों को पिलाने से चेचक का भय नहीं रहता है|

17 कफ और श्वास रोग :- *अडूसा, हल्दी, धनिया, गिलोय, पीपल, सोंठ तथा रिगंणी के 10-20 ग्राम काढे़ में एक ग्राम मिर्च का चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार पीने से सम्पूर्ण श्वांस रोग पूर्ण रूप से नष्ट हो जाते हैं।
*अडूसे के छोटे पेड़ के पंचाग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) को छाया में सुखाकर कपड़े में छानकर नित्य 10 ग्राम मात्रा की फंकी देने से श्वांस और कफ मिटता है।

18 फेफड़ों की जलन :- अडूसे के 8-10 पत्तों को रोगन बाबूना में घोंटकर लेप करने से फेफड़ों की जलन में शांति होती है।

19 आध्यमान (पेट के फूलने) पर :- अडूसे की छाल का चूर्ण 10 ग्राम, अजवायन का चूर्ण 2.5 ग्राम और इसमें 8वां हिस्सा सेंधानमक मिलाकर नींबू के रस में खूब खरलकर 1-1 ग्राम की गोलियां बनाकर भोजन के पश्चात 1 से 3 गोली सुबह-शाम सेवन करने से वातजन्य ज्वर आध्मान विशेषकर भोजन करने के बाद पेट का भारी हो जाना, मन्द-मन्द पीड़ा होना दूर होता है। वासा का रस भी प्रयुक्त किया जा सकता है।

20 वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) :- अडूसे और नीम के पत्तों को गर्मकर नाभि के निचले भाग पर सेंक करने से तथा अडूसे के पत्तों के 5 ग्राम रस में उतना ही शहद मिलाकर पिलाने से गुर्दे के भयंकर दर्द में आश्यर्चजनक रूप से लाभ पहुंचता है।

21 मासिक-धर्म :- यदि मासिक-धर्म समय से न आता हो तो वासा पत्र 10 ग्राम, मूली व गाजर के बीज प्रत्येक 6 ग्राम, तीनों को आधा किलो पानी में उबालें, जब यह एक चौथाई की मात्रा में शेष बचे तो इसे उतार लें। इस तैयार काढ़े को कुछ दिन सेवन करने से लाभ होता है।

22 मूत्रावरोध :- खरबूजे के 10 ग्राम बीज तथा अडूसे के पत्ते बराबर लेकर पीसकर पीने से पेशाब खुलकर आने लगता है।

23 मूत्रदाह (पेशाब की जलन) :- यदि 8-10 फूलों को रात्रि के समय 1 गिलास पानी में भिगो दिया जाए और प्रात: मसलकर छानकर पान करें तो मूत्र की जलन दूर हो जाती है।

24 शुक्रमेह :- अडूसे के सूखे फूलों को कूट-छानकर उसमें दुगुनी मात्रा में बंगभस्म मिलाकर, शीरा और खीरा के साथ सेवन करने से शुक्रमेह नष्ट होता है।

25 जलोदर (पेट में पानी की अधिकता) :- जलोदर में या उस समय जब सारा शरीर श्वेत हो जाए तो अडूसे के पत्तों का 10-20 ग्राम स्वरस दिन में 2-3 बार पिलाने से मूत्रवृद्धि हो करके यह रोग मिटता है।

26 सुख प्रसव (शिशु की नारमल डिलीवरी) :- *अडू़से की जड़ को पीसकर गर्भवती स्त्री की नाभि, नलो व योनि पर लेप करने से तथा जड़ को कमर से बांधने से बालक आसानी से पैदा हो जाता है।
*पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग, इनमें किसी एक बूटी की जड़ को नाभि, बस्तिप्रदेश (नाभि के पास) तथा भग प्रदेश (योनि के आस-पास) लेप देने से प्रसव सुखपूर्वक होता है।"

27 प्रदर :- *पित्त प्रदर में अडूसे के 10-15 मिलीलीटर स्वरस में अथवा गिलोय के रस में 5 ग्राम खांड तथा एक चम्मच शहद मिलाकर दिन में सुबह और शाम सेवन करना चाहिए।
*अडूसा के 10 ग्राम पत्तों के स्वरस में एक चम्मच शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से पित्त प्रदर मिटता है।"

28 बाइटें (अंगों का सुन्न पड़ जाना) :- 10 ग्राम वासा के फूलों को 2 ग्राम सोंठ के साथ 100 ग्राम जल में पकाकर पिलाने से बाइटों में आराम मिलता है।

29 ऐंठन :- अडूसे के पत्ते के रस में तिल के तेल मिलाकर गर्म कर लें। इसकी मालिश से आक्षेप (लकवा), उदरस्थ वात वेदना तथा हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।

30 वातरोग :- वासा के पके हुए पत्तों को गर्म करके सिंकाई करने से जोड़ों का दर्द, लकवा और दर्दयुक्त चुभन में आराम पहुंचाता है।

31 रक्तार्श (खूनी बवासीर) :- अडूसे के पत्ते और सफेद चंदन इनको बार-बार मात्रा में लेकर महीन चूर्ण बना लेना चाहिए। इस चूर्ण की 4 ग्राम मात्रा प्रतिदिन, दिन में सुबह-शाम सेवन करने से रक्तार्श में बहुत लाभ होता है और खून का बहना बंद हो जाता है। बवासीर के अंकुरों में यदि सूजन हो तो इसके पत्तों के काढ़ा का बफारा देना चाहिए।

32 रक्त पित्त :- *ताजे हरे अडूसे के पत्तों का रस निकालकर 10-20 ग्राम रस में शहद तथा खांड को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से भयंकर रक्तपित्त शांत हो जाता है। उर्ध्व रक्तपित्त में इसका प्रयोग होता है।
*अडूसा का 10-20 ग्राम स्वरस, तालीस पत्र का 2 ग्राम चूर्ण तथा शहद मिलाकर सुबह-शाम पीने से कफ विकार, पित्त विकार, तमक श्वास, स्वरभेद (गले की आवाज का बैठ जाना) तथा रक्तपित्त का नाश होता है।
*अडूसे की जड़, मुनक्का, हरड़ इन तीनो को बराबर मिलाकर 20 ग्राम की मात्रा में लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें। चौथाई भाग शेष रह जाने पर उस काढ़े में चीनी और शहद डालकर पीने से खांसी, श्वांस तथा रक्तपित्त रोग शांत होते हैं।"

33 कफ-ज्वर :- हरड़, बहेड़ा, आंवला, पटोल पत्र, वासा, गिलोय, कटुकी, पिपली की जड़ को मिलाकर इसका काढ़ा तैयार कर लें। इस काढ़े में 20 ग्राम शहद मिलाकर सेवन करने से कफ ज्वर में लाभ होता है।

34 कामला :- *त्रिफला, गिलोय, कुटकी, चिरायता, नीम की छाल तथा अडूसा 20 ग्राम लेकर 320 ग्राम पानी पकायें, जब चौथाई भाग शेष रह जाये तो इस काढे़ में शहद मिलाकर 20 मिलीलीटर सुबह-शाम सेवन कराने से कामला तथा पांडु रोग नष्ट होता है।
*इसके पंचाग के 10 मिलीलीटर रस में शहद और मिश्री बराबर मिलाकर पिलाने से कामला रोग नष्ट हो जाता है।"

35 दाद, खाज-खुजली :- अडूसे के 10-12 कोमल पत्ते तथा 2-5 ग्राम हल्दी को एकत्रकर गाय के पेशाब के साथ पीसकर लेप करने से खुजली और सूजन शीघ्र नष्ट हो जाती है। इससे दाद, खाज-खुजली में भी लाभ होता है।

36 आन्त्र-ज्वर (टायफाइड) :- 3 से 6 ग्राम अडूसे की जड़ के चूर्ण की फंकी देने से आन्त्र ज्वर ठीक हो जाता है।

37 शरीर की दुर्गन्ध :- अडूसे के पत्ते के रस में थोड़ा-सा शंखचूर्ण मिलाकर लगाने से शरीर की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।

38 जंतुध्न (छोटे-मोटे जीव-जतुंओं के द्धारा होने वाले जल के दोषों) को दूर करने के लिए :- अडूसा जलीय कीड़ों तथा जंतुओं के लिए विषैला है। इससे मेंढक इत्यादि छोटे जीव-जंतु मर जाते हैं। इसलिए पानी को शुद्ध करने के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता है।

39 पशुओं के रोग :- गाय तथा बैलों को यदि कोई पेट का विकार हो तो उनके चारे में इसके पत्तों की कुटी मिला देने से लाभ होता है। इससे पशुओं के पेट के कीड़े भी नष्ट हो जाते हैं।

40 कीड़ों के लिए :- अडूसे के सूखे पत्ते पुस्तकों में रखने से उनमें कीडें नहीं लगते हैं।

"41 वायुप्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) :- * नये वायु प्रणाली के शोथ (ब्रोंकाइटिस) में अड़ूसा, कंटकारी, जवासा, नागरमोथा और सोंठ का काढ़ा उपयोगी होता है।
* वासावलेह 6 से 10 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में बहुत लाभ मिलता है।

42 सान्निपात ज्वर :- *अडूसा, पित्तपापड़ा, नीम, मुलहठी, धनिया, सोंठ, देवदारू, बच, इन्द्रजौ, गोखरू और पीपल की जड़ का काढ़ा बना लें। इस काढ़े के सेवन से सिन्नपात बुखार, श्वास (दमा), खांसी, अतिसार, शूल और अरुचि (भूख का न लगना) आदि रोग समाप्त होते हैं।
*सिन्नपातिक ज्वर में पुटपाक विधि से निकाला अडूसा का रस 10 ग्राम तथा थोड़ा अदरक का रस और तुलसी के पत्ते मिलाकर उसमें मुलहठी को घिसें। फिर इसे शहद में मिलाकर सुबह, दोपहर तथा शाम पिलाना चाहिए।
*सिन्नपात ज्वर में इसकी जड़ की छाल 20 ग्राम, सोंठ 3 ग्राम, कालीमिर्च एक ग्राम का काढ़ा बनाकर उसमें शहद मिलाकर पिलाना चाहिए।"

43 वात-पित्त का बुखार :- अडूसा, छोटी कटेरी और गिलोय को मिलाकर पीस लें, इस मिश्रण को 8-8 ग्राम की मात्रा में लेकर पकाकर काढ़ा बनाकर पिलाने से कफ के बुखार और खांसी के रोग में लाभ मिलता है।

44 बुखार :- *वासा (अडूसे) के पत्ते और आंवला 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर कूटकर पीस लें और किसी बर्तन में पानी में डालकर रख दें। सुबह थोड़ा-सा मसलकर 10 ग्राम मिश्री मिलाकर पीने से पैत्तिक बुखार समाप्त हो जाता है।
*10 ग्राम अडूसे का रस, अदरक का रस 5 ग्राम, थोड़ा-सा शहद मिलाकर दिन में कई बार चाटने से बहुत लाभ होता है।
*अडूसे का रस, अदरक का रस और तुलसी के पत्तों का रस 5-5 ग्राम मिलाकर उसमें 5 ग्राम मुलहठी का चूर्ण डालकर सेवन करने से श्लैष्मिक बुखार समाप्त होता है।

45 गीली खांसी :- 7 से 14 मिलीमीटर वासा के ताजा पत्तों का रस शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करने से गीली खांसी नष्ट हो जाती है

46 टी.बी. युक्त खांसी :- *वासा के ताजे पत्तों के स्वरस को शहद के साथ चाटने से पुरानी खांसी, श्वास और क्षय रोग (टी.बी.) में बहुत फायदा होता है।
*वासा के पत्तों का रस 1 चम्मच, 1 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सभी प्रकार की खांसी से आराम हो जाता है।
*क्षय रोग (टी.बी.) में अडूसे के पत्तों के 20-30 ग्राम काढ़े में छोटी पीपल का 1 ग्राम चूर्ण बुरककर पिलाने से पुरानी खांसी, श्वांस और क्षय रोग में फायदा होता है।"

47 काली खांसी (कुकर खांसी) :- अड़ूसा के सूखे पत्तों को मिट्टी के बर्तन में रखकर, आग पर गर्म करके उसकी राख को तैयार कर लेते हैं। उस राख को 24 से 36 ग्राम तक की मात्रा में लेकर शहद के साथ रोगी को चटाने से काली खांसी दूर हो जाती है।

48 खांसी :- *अड़ू़सा के रस को शहद के साथ मिलाकर चाटने से नयी और पुरानी खांसी में लाभ होता है। इससे कफ के साथ आने वाला खून भी बंद हो जाता है।
*लगभग एक किलो अड़ूसा के रस में 320 ग्राम सफेद शर्करा, 80-80 ग्राम छोटी पीपल का चूर्ण और गाय का घी मिलाकर धीमी आग पर पकाने के लिए रख दें। पकने के बाद इसे गाढ़ा होने पर उतारकर ठंडा होने के लिए रख देते हैं। अब इसमें 320 ग्राम शहद मिलाकर रख देते हैं। यह राज्ययक्ष्मा (टी.बी.) खांसी, श्वास, पीठ का दर्द, हृदय के शूल, रक्तपित्त तथा ज्वर को भी दूर करता है। इसकी मात्रा एक चम्मच अथवा रोग की स्थिति के अनुसार रोगी को देनी चाहिए।
*अड़ूसा के सूखे पत्तों को जलाकर राख तैयार कर लेते हैं। यह राख और मुलहठी का चूर्ण 50-50 ग्राम काकड़ासिंगी, कुलिंजन और नागरमोथा 10-10 ग्राम सभी को खरल करके एक साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में लाभ मिलता है।
* 40 ग्राम अड़ूसा, 20 ग्राम मुलहठी और 10 ग्राम बड़ी इलायची को लेकर चौगुने पानी के साथ काढ़ा बना लें। इसके आधा बाकी रहने पर उतार लें और उसमें थोड़ा सा छोटी पीपल का चूर्ण और शहद मिलाकर सुबह-शाम पिलाने से सभी प्रकार की खांसी जैसे कुकर खांसी, श्वास कफ के साथ खून का जाना आदि में बहुत लाभ मिलता है।
*कफयुक्त बुखार में अडू़सा (बाकस) के पत्तों को पीसकर निकाला गया रस 5 से 15 ग्राम, अदरक का रस या छोटी पीपल, सेंधानमक और शहद के साथ सुबह-शाम देने से लाभ मिलता है।
*बच्चों के कफ विकार में 5-10 ग्राम अड़ूसा (बाकस) का रस सुहागे की खीर के साथ रोजाना 2-3 बार देने से आराम आता है।
*अड़ूसा और तुलसी के पत्तों का रस बराबर मात्रा में मिलाकर पीने से खांसी मिट जाती है।
*अड़ूसा और कालीमिर्च का काढ़ा बनाकर ठंडा करके पीने से सूखी खांसी नष्ट हो जाती है।*अड़ूसा के वृक्ष के पंचांग को छाया में सुखाकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को रोजाना 10 ग्राम सेवन करने से खांसी और कफ में लाभ मिलता है।
*अड़ूसा के पत्ते और पोहकर की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने श्वांस (सांस) की खांसी में लाभ मिलता है।
*अड़ूसा की सूखी छाल को चिलम में भरकर पीने से श्वांस (सांस) की खांसी दूर हो जाती है।
*अड़ूसा, तुलसी के पत्ते और मुनक्का तीनों को बराबर की मात्रा में लेकर काढ़ा बना लेते हैं। इस काढे़ को सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।
*अड़ूसा, मुनक्का, सोंठ, लाल इलायची तथा कालीमिर्च सभी को बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीसकर चूर्ण बना लेते हैं। इस चूर्ण को सुबह और शाम सेवन करने से खांसी में लाभ होता है।"

49 चतुर्थकज्वर (हर चौथे दिन पर आने वाला बुखार) :- वासा मूल, आमलकी और हरीतकी फल मिश्रण, शालपर्णी पंचांग (शालपर्णी की तना, पत्ती, जड़, फल और फूल), देवदारू की लकड़ी और शुंठी आदि को बराबर मात्रा में लेकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को 14 से 28 मिलीलीटर 5 से 10 ग्राम शर्करा और 5 ग्राम शहद के साथ दिन में 3 बार लें।

50 निमोनिया :- बच्चों के गले और सीने में घड़घड़ाहट होने पर 10 से 20 बूंद अड़ूसा लाल (लाल बाकस) के पत्तों के रस को सुहागा की खील के साथ या छोटी पीपल और शहद के साथ 4 से 6 घंटे के अंतराल पर देने से बच्चे को पूरा लाभ मिलता है।
*निमोनिया के रोग में 4 काले अड़ूसा (बाकस) के पत्तों का रस सहजने की छाल का रस और सामुद्रिक नमक शहद के साथ देने से लाभ होता है।"

51 पुरानी खांसी :- अड़ूसा के अवलेह का सेवन पुरानी खांसी में बहुत उपयोगी होता है

52 सूखी खांसी :- 14 मिलीमीटर वासा के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में घी और शर्करा को मिलाकर दिन में 2 बार लेने से खांसी ठीक हो जाती है।

53 मोतियाबिंद :- अडूसे के पत्तों को साफ पानी से धोकर पत्तों का रस निकाल लें। इस रस को अच्छे पत्थर की खल में डालकर (ताकि पत्थर घिसकर दवा में न मिले।) मूसल से खरल करते रहें। शुष्क हो जाने पर आंखों में काजल की तरह लगाएं। यह सब तरह के मोतियाबिंद में आराम आता है।

54 अफारा :- अडूसा (बाकस) के पत्तों का 5 ग्राम से लेकर 15 ग्राम को खुराक के रूप में देने से लाभ होता है।

55 उर:क्षत (हृदय में जख्म) होने पर :- वासा के ताजे पत्तों का रस 7 से 14 मिलीमीटर की मात्रा में शहद के साथ दिन में 2 बार सेवन करने से उर:क्षत में लाभ मिलता है।

56 जुएं :- *अडूसा के पत्तों से बने काढे़ से बालों को धोने से जूएं मर जाते हैं।
*अडूसा के पत्तों में फल बांधकर रखा जाए तो सड़ नहीं पाता, इसके (एलकोहलिक टिंचर) को छिड़कने से मक्खी, मच्छर एवं पिप्सू आदि भाग जाते हैं। अडूसा के पत्तों से बनी खाद को खेतों में डाला जाए तो फसलों में कीड़े नहीं लगते हैं। ऊनी कपड़ों के तह में पत्तों को रखने से कपड़ों में कीड़े नहीं आते हैं। इसी तरह इसके काढे़ से बालों को धोने से बालों के जूँ मर जाते हैं।."

57 खून की उल्टी :- अडूसे के पत्तों के रस में शहद को मिलाकर सेवन करने से खून की उल्टी होना बंद हो जाती है।

58 जुकाम :- *20 ग्राम अडूसे के पत्तों को 250 ग्राम पानी में डालकर उबालने के लिए रख दें। उबलने पर जब पानी 1 चौथाई बाकी रह जाये तो उसे उतारकर और पानी में ही मलकर अच्छी तरह से छान लें। इस काढ़े को पीने से जुकाम दूर हो जाता है।
*अडूसे के पत्तों का रस निकालकर पीने से जुकाम ठीक हो जाता है।"

59 दस्त आने पर :- अडूसे (बाकस) के पत्तों का रस 5 ग्राम से लेकर 15 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर दिन में 2 बार (सुबह और शाम) पीने से अतिसार की बीमारी समाप्त हो जाती है।

60 आमातिसार (दस्त में आंव आना) :- 5 से 15 ग्राम बाकस (अडूसे) के पत्तों का रस निकालकर रोजाना सुबह-शाम शहद के साथ मिलाकर रोगी को देने से आमातिसार में ठीक होता है।



61 खूनी अतिसार :- अडूसे के पत्तों का रस पिलाने से खूनी दस्त (रक्तातिसार) मिट जाता है।

62 कनफेड :- अडूसा के पत्तों को पीसकर लगाने से कनफेड में लाभ होता है।

63 भगन्दर :- अडूसे के पत्ते को पीसकर उसकी टिकिया बनाकर तथा उस पर सेंधानमक बुरककर बांधने से भगन्दर ठीक होता है।

64 दर्द व सूजन :- *बाकस के पत्ते की पट्टी बांधने से सूजन में आराम होता है।
*लाल बाकस के पत्तों को नारियल के पानी में पीसकर लेप करने से सूजन मिट जाती है। ऊपर से एरंड तेल लगे मदार के पत्ते बांधने और जल्द लाभ देता है।"

65 अम्लपित्त :- *अडूसा, गिलोय और छोटी कटेली को मिलाकर काढ़ा बना लें, फिर इस काढ़े को शहद के साथ सेवन करने से वमन (उल्टी), खांसी, श्वास (दमा) और बुखार आदि बीमारियों में लाभ मिलता है।
*अडूसा, गिलोय, पित्तपापड़ा, नीम की छाल, चिरायता, भांगरा, हरड़, बहेड़ा, आमला और कड़वे परवल के पत्तों को मिलाकर पीसकर पकाकर काढ़ा बनाकर शहद डालकर पीने से अम्लपित्त शांत हो जाती है।"

66 गिल्टी :- काले आडूसे (बाकस) के पत्तों के रस तेल में मिलाकर गांठों पर लगाने से गिल्टी रोग में लाभ होता है।

67 रक्तप्रदर :- *अडूसा के पत्तों के रस में शहद मिलाकर पीने से रक्त प्रदर मिट जाता है।
*वासा के पत्ते का रस लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग को शर्करा 5-10 ग्राम के साथ सुबह-शाम सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।

68 स्तनों की सूजन :- अडूसा (बाकस) के पत्ते, नारियल के रस को मिलाकर पीसकर स्तन पर लगायें और ऊपर से धतूरे के पत्तों को बांधे। इससे दूध की अधिकता के कारण होने वाली स्तन की सूजन समाप्त हो जाती है।

69 पेट के कीडे़ :- आडू के पत्तों को पीसकर प्राप्त 30 ग्राम रस में थोड़ी-सी मात्रा में हींग मिलाकर चाटने से पेट में उपस्थित कीड़े नष्ट हो जाते हैं।

70 घाव (व्रण) :- अमलतास, गिलोय और अडूसा का काढ़ा बना लें। इस काढ़े में अण्डी का तेल मिलाकर पीने से घाव ठीक हो जाता है।

71 उपदंश (सिफलिस) :- अडूसे की जड़ की छाल को पानी के साथ पीसकर जंगली बेर के बराबर गोलियां बना लें, सुबह के समय 1-1 गोली घी के साथ खायें इससे उपदंश दूर हो जाता है।

72 गठिया रोग :- अडूसा (वाकस) के पत्तों की पट्टी बांधने से इस रोग में लाभ मिलता है और हिड्डयों की कमजोरी दूर होती है।

73 योनि रोग :- अडूसा, कड़वे परवल, बच, फूलिप्रयंगु और नीम को लेकर अच्छी तरह से पीसकर चूर्ण बना लें, इसी प्रकार से अमलतास के काढ़े से योनि को धोकर योनि में इसी चूर्ण को रखने से योनि में से आने वाली बदबू और चिकनापन (लिबलिबापन) समाप्त हो जाता है

74 जोड़ों के दर्द :- जोड़ों के दर्द को दूर करने के लिए अडूसे के पत्ते को गर्म करके जोड़ों पर लगाने से दर्द दूर होते हैं।

75 शीतला (मसूरिका) :- *अडूसे के रस में शहद को मिलाकर पीने से कफज-मसूरिका ठीक हो जाती है।
*अडूसा, गिलोय, नागरमोथा, पटोलपत्र, धनिया, जवासा, चिरायता, नीम, कुटकी और पित्तपापड़ा को मिलाकर इसका काढ़ा बनाकर पीने से रुकी हुई मसूरिका (छोटी माता) में लाभ होता है।"

76 पांडु रोग (पीलिया) :- *अडूसे के रस में कलमीशोरा डालकर पीने से मूत्र-वृद्धि होकर पांडु रोग यानी पीलिया में लाभ होता है।
*आंवला, हरड़, बहेड़ा, चिरायता, अडूसा के पत्ते, कुटकी नीम की छाल को बराबर की मात्रा में बारीक से कूट-पीसकर इसकी पच्चीस ग्राम मात्रा को 250 ग्राम पानी में उबालें, जब 50 ग्राम शेष रह जाए तब उसे ठंडाकर पीएं। 10 दिनों में ही कमला रोग में लाभ हो जायेगा।"

77 हाथ-पैरों की ऐंठन :- *अडूसे की जड़, पत्ते और फूलों का गाढ़ा काढ़ा बनाकर चाटने से हाथ-पैरों में ऐंठन सा दर्द खत्म हो जाता है।
*अडूसे के फूलों को सोंठ के साथ काढ़ा बनाकर रोगी को पिलाने से हाथ-पैरों की ऐंठन मिट जाती है।
*अडूसे के फूल और फलों को सरसों के तेल में जलाकर छान लें। इस तेल की मालिश हाथ-पैरों पर करने से ऐंठन का दर्द ठीक होता है।"

78 कुष्ठ (कोढ़) :- *5 से 15 ग्राम अडूसा के पत्तों का रस कुष्ठ (कोढ़) के रोगी को सुबह और शाम पिलाने, पत्तों का रस लगाने और पत्तों के काढ़े से नहाने से लाभ होता है।
*अड़ूसा के कोमल पत्ते और हल्दी को पीसकर गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से `कच्छू-कुष्ठ´ रोग सिर्फ तीन दिन में ही ठीक हो जाता है।
*अडूसे के कोमल पत्तों को पीसकर हल्दी और गाय के पेशाब में मिलाकर लेप करने से तीन ही दिन में कच्छू-कोढ़ दूर हो जाता है"

79 खसरा :- 5-5 ग्राम पाद, पटोल, कुटकी, लाल चंदन सफेद चंदन, खस, आमला, अडूसा, जवासा, को बारीक पीसकर 3 पुड़िया बना लें फिर 1 पुड़िया को रात को 250 ग्राम पानी में भिगो लें और सुबह उबालने के लिए रख दें जब पानी 1 चौथाई रह जाये तो उसे छानकर उसमें एक चम्मच पिसी हुई मिश्री मिलाकर खाली पेट पिएं।

80 खून की कमी :- एक कप पके अड़ूसों का रस निकालकर 8 दिन तक पीने से शरीर में खून की मात्रा बढ़ जाती है।

81 नाड़ी का दर्द :- नाड़ी के दर्द में बाकस (अडूसे) के पत्तों की पट्टी बांधने से लाभ होता है।

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