देसी फ्रिज
मिट्टी के पात्रों का इतिहास हमारी मानव सभ्यता से जुड़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक मिट्टी के बर्तन मिले थे। पुराने समय से कुम्हार लोग मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है। कुम्भ मटके को कहा जाता है, इसलिए कुम्हार का अर्थ हुआ-मटके बनाने वाला। पानी भरने के साथ-साथ हमारे पूर्वज भोजन पकाने और दही जमाने जैसे कार्यों में भी मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल करते थे। वे इन बर्तनों के गुणों से भी अच्छी तरह परिचित थे। चलिए जानते हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से लाभ....
हमारे यहां सदियों से प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का इस्तेमाल होता आया है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में भोजन या पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। मिट्टी की छोटी-सी मटकी में दही जमाया गया दही गाढ़ा और बेहद स्वादिष्ट होता है। मटके या सुराही के पानी की ठंडक और सौंधापन के तो क्या कहने!!!!!!!!!!!!!
गर्भवती स्त्रियों को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ हमारी सेहत के हिसाब से ठंडा होता है, बल्कि उसमें सौंधापन भी बस जाता है, जो काफी अच्छा लगता है।
गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पिते है ,इसकी तासीर गर्म होती है.यह वात भी बढाता है |
बर्फीला पानी पीने से कब्ज हो जाती है तथा अक्सर गला खराब हो जाता है |
मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता ,इसका पानी संतुष्टि देता है.
मिटटी सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी ज़रूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है.
मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है |मटके के पानी से कब्ज ,गला ख़राब होना आदि रोग नहीं होते |
सावधानी
सुराही और घड़े को साफ रखें, ढककर रखें तथा जिस बर्तन से पानी निकालें, वह साफ तरह से रखा जाता हो। मटकों और सुराही का इस्तेमाल करने के भी कुछ नियम होते हैं। इनके छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों को हाथ लगाकर साफ नहीं किया जाता। बर्तन को ताजे पानी से भरकर, जांच लेने के बाद केवल साधारण तरीके से धोकर तुंरत इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में कभी धोना हो, तो स्क्रब आदि से भीतर की सतह को साफ कर लें। मटकों और सुराही के पानी को रोज बदलना चाहिए। लम्बे समय तक भरे रहने से छिद्र बंद हो जाते हैं।
मिट्टी के पात्रों का इतिहास हमारी मानव सभ्यता से जुड़ा है। सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में अनेक मिट्टी के बर्तन मिले थे। पुराने समय से कुम्हार लोग मिट्टी के बर्तन बनाते आ रहे हैं। कुम्हार शब्द कुम्भकार का अपभ्रंश है। कुम्भ मटके को कहा जाता है, इसलिए कुम्हार का अर्थ हुआ-मटके बनाने वाला। पानी भरने के साथ-साथ हमारे पूर्वज भोजन पकाने और दही जमाने जैसे कार्यों में भी मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल करते थे। वे इन बर्तनों के गुणों से भी अच्छी तरह परिचित थे। चलिए जानते हैं कि इन बर्तनों के इस्तेमाल से लाभ....
हमारे यहां सदियों से प्राकृतिक चिकित्सा में मिट्टी का इस्तेमाल होता आया है। दरअसल, मिट्टी में कई प्रकार के रोगों से लड़ने की क्षमता पाई जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार मिट्टी के बर्तनों में भोजन या पानी रखा जाए, तो उसमें मिट्टी के गुण आ जाते हैं। इसलिए मिट्टी के बर्तनों में रखा पानी व भोजन हमें स्वस्थ बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। मिट्टी की छोटी-सी मटकी में दही जमाया गया दही गाढ़ा और बेहद स्वादिष्ट होता है। मटके या सुराही के पानी की ठंडक और सौंधापन के तो क्या कहने!!!!!!!!!!!!!
गर्भवती स्त्रियों को फ्रिज में रखे, बेहद ठंडे पानी को पीने की सलाह नहीं दी जाती। उनसे कहा जाता है कि वे घड़े या सुराही का पानी पिएं। इनमें रखा पानी न सिर्फ हमारी सेहत के हिसाब से ठंडा होता है, बल्कि उसमें सौंधापन भी बस जाता है, जो काफी अच्छा लगता है।
गर्मियों में लोग फ्रिज का या बर्फ का पानी पिते है ,इसकी तासीर गर्म होती है.यह वात भी बढाता है |
बर्फीला पानी पीने से कब्ज हो जाती है तथा अक्सर गला खराब हो जाता है |
मटके का पानी बहुत अधिक ठंडा ना होने से वात नहीं बढाता ,इसका पानी संतुष्टि देता है.
मिटटी सभी विषैले पदार्थ सोख लेती है तथा पानी में सभी ज़रूरी सूक्ष्म पोषक तत्व मिलाती है.
मटके को रंगने के लिए गेरू का इस्तेमाल होता है जो गर्मी में शीतलता प्रदान करता है |मटके के पानी से कब्ज ,गला ख़राब होना आदि रोग नहीं होते |
सावधानी
सुराही और घड़े को साफ रखें, ढककर रखें तथा जिस बर्तन से पानी निकालें, वह साफ तरह से रखा जाता हो। मटकों और सुराही का इस्तेमाल करने के भी कुछ नियम होते हैं। इनके छोटे-छोटे असंख्य छिद्रों को हाथ लगाकर साफ नहीं किया जाता। बर्तन को ताजे पानी से भरकर, जांच लेने के बाद केवल साधारण तरीके से धोकर तुंरत इस्तेमाल किया जा सकता है। बाद में कभी धोना हो, तो स्क्रब आदि से भीतर की सतह को साफ कर लें। मटकों और सुराही के पानी को रोज बदलना चाहिए। लम्बे समय तक भरे रहने से छिद्र बंद हो जाते हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करें
टिप्पणी: केवल इस ब्लॉग का सदस्य टिप्पणी भेज सकता है.