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*नालायक बेटा*
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सत्तर साल के बिसन जी अपनी पत्नी के साथ मॉर्निंग वाक पे निकले थे की अचानक पीछे से आ रही एक कार
बिसन जी की पत्नी को टक्कर मार के आगे निकल जाती है. सर पे गहरी चोट लगने की वजह से खून बहुत तेजी से बहने लगता है.
जैसे तैसे हॉस्पिटल में भर्ती करके बिसन जी अपने बड़े इंजीनियर इंजीनियर बेटे को फोन करके बताते है.
बेटा तुम्हारे माँ की हालत गंभीर है. कुछ पैसो की जरूरत है.और तुम्हारी माँ को खून भी देना है.
बेटा फ़ोन पे कहता है......
पापा, मैं बहुत व्यस्त हूँ आजकल. मै नहीं आ पाउँगा.
मुझे विदेश मे नौकरी का पैकेज मिला है तो उसी की तैयारी कर रहा हूँ.आपका भी तो यही सपना था ना.....?
इसलिये हाथ भी तंग चल रहा है. पैसे की व्यवस्था कर लीजिए मैं बाद मे दे दुँगा.
अपने बड़े इंजिनियर बेटे के जबाब के बाद उन्होनें अपने दुसरे डाॅक्टर बेटे को फोन किया.
तो उसने भी आने से मना कर दिया. उसे अपनी ससुराल मे शादी मे जाना था.
हाँ इतना जरुर कहा कि पैसों की चिंता मत कीजिए मै भिजवा दूँगा.
यह अलग बात है कि उसने कभी पैसे नहीं भिजवाए......!
उन्होंने बहुत मायुसी से फोन रख दिया.अब उस नालालक को फोन करके क्या फायदा.....!
जब ये दो लायक बेटे कुछ नही कर रहे तो वो नालायक क्या कर लेगा.....?
ये सोचकर भारी मन से हॉस्पिटल में पत्नी के पास पहूँचे और बैठ गए. दुखी मन को पुरानी बातें याद आने लगी.
नालायक बेटा
दुसरो को सुखी देखकर खुद दुःख ना करे.....!
बिसन जी बैंक में बाबु थे. बिसन जी को तीन बेटे और एक बेटी थी. बडा इंजिनियर और मझला डाक्टर था.
दोनौ की शादी बडे घराने मे हुई थी. दोनो अपनी पत्नियों के साथ अलग अलग शहरों मे रहते थे.
बेटी की शादी भी उन्होंने खुब धुमधाम से की थी.
सबसे छोटा बेटा पढाई में कमजोर था. उसका मन पढाई में नहीं लगता था.
दसवी क्लास में अचानक से उसने स्कूल जाना बंद कर दिया.और घर पे ही रहने लगा.
बिसन जी बहोत नाराज हुवे तो कहने लगा की मै घर में रहकर आप दोनों की सेवा करूंगा.
नाराज होकर उन्होंने उसका नाम नालायक रख दिया.
दोनों बडे भाई पिता के आज्ञाकारी थे पर वह गलत बात पर उनसे भी बहस कर बैठता था....
इसलिये बिसन जी उसे पसंद नही करते थे.
जब बिसन जी रिटायर हुए तो जमा पुँजी कुछ भी नही थी.
सारी बचत दोनों बच्चों की उच्च शिक्षा और बेटी की शादी मे खर्च हो गई थी.
शहर मे एक घर और गाँव मे थोडी सी जमीन थी. घर का खर्च उनके पेंशन से चल रहा था.
बिसन जी को जब लगा कि छोटा सुधरने वाला नही तो उन्होंने बँटवारा कर दिया.
और उसके हिस्से की जमीन उसे देकर उसे गाँव मे ही रहने भेज दिया.
हालाँकि वह जाना नही चाहता था पर पिता की जिद के आगे झुक गया और गाँव मे ही झोपडी बनाकर रहने लगा.
बिसन जी कभी भी नालायक बेटे का जिक्र भी नहीं करते थे.
दोनों बेटों की खुप तारीफ करते. गर्व से अपना सिर ऊँचा करते.
बाबूजी बाबूजी सुन कर ध्यान टुटा तो देखा सामने वही नालायक खड़ा था. उन्होंने गुस्से से मुँह फेर लिया
पर उसने पापा के पैर छुए और रोते हुए बोला "बाबूजी आपने इस नालायक को क्यो नही बताया....?
खबर मिलते ही भागा आया हूँ.
बाबूजी के के विरोध के वावजुद उसने उनको एक बडे अस्पताल मे भरती कराया. डॉक्टर ने ब्रेन का आपरेशन बताया.
माँ का सारा इलाज किया. दिन रात उनकी सेवा मे लगा रहता कि एक दिन वह गायब हो गया.
वह उसके बारे मे फिर बुरा सोचने लगे थे कि तीसरे दिन वह वापस आ गया.
महीने भर मे ही माँ एकदम भली चंगी हो गई
वह अस्पताल से छुट्टी लेकर उनलोगों को घर ले आया. बिसन जी के पुछने पर बता दिया कि खैराती अस्पताल था.
पैसे नही लगे हैं. घर मे शंकर काका [ नौकरा ] थे. नालायक बेटा उन लोगों को छोड कर वापस गाँव चला गया.
धीरे धीरे सब कुछ सामान्य हो गया. एक दिन यूँ ही उनके मन मे आया कि उस नालायक की खबर ली जाए.
दोनों जब गाँव के खेत पर पहुँचे तो झोपडी मे ताला देख कर चौंके.
उनके खेत मे काम कर रहे आदमी से पुछा तो उसने कहा ....यह खेत अब मेरे हैं.
क्या...? पर यह खेत तो.... उन्हे बहुत आश्चर्य हुआ.
हाँ....!
उसकी माँ की तबीयत बहुत खराब थी. उसके पास पैसे नही थे तो उसने अपने सारे खेत बेच दिये.
वह रोजी रोटी की तलाश मे दुसरे शहर चला गया है.
बस यह झोपडी उसके पास रह गई है. यह रही उसकी चाबी. उस आदमी ने कहा.
वह झोपडी मे दाखिल हुये तो बरबस उस नालायक की याद आ गई.
टेबुल पर पडा लिफाफा खोल कर देखा तो उसमे रखा अस्पताल का ग्यारह लाख का बिल उनको मुँह चिढाने लगा.
अचानक उनकी आँखों से आँसू गिरने लगे और वह जोर से चिल्लाये - तु कहाँ चला गया नालायक.....
अपने पापा को छोड कर. एक बार वापस आ जा फिर मैं तुझे कहीं नही जाने दुँगा.
उनकी पत्नी के आँसू भी बहे जा रहे थे.
और बिसन जी को इंतजार था अपने नालायक बेटे को अपने गले से लगाने का.....
सचमुच बहुत नालायक था वो.....
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