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गुरुवार, 17 जून 2021

ज्यादातर भारतीय, 50 की आयु आते-आते

*उम्र पचास कि खल्लास !*
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ज्यादातर भारतीय,  50 की आयु आते-आते अपना स्वास्थ्य खो बैठते हैं !
वे अपने शरीर की गाड़ी को इतना रफ़ चलाते हैं  कि आधे रास्ते में ही उनके रिंग, पिस्टन, प्लग, वॉल्व  सब घिस जाते हैं !
..क्योंकि इस गाड़ी का ड्राइवर महत्वाकांक्षा की शराब में धुत्त होता है !
उसका एक पैर नुमाइश के क्लच पर होता है,  और दूसरा,  प्रतिस्पर्धा के एक्सीलेटर पर  !!
..और दोनों एकसाथ दबे रहते हैं !
फिर वह एक ही गेयर पर  पूरी गाड़ी को  घसीटे रहता है !
बहुधा यह गेयर,  धन कमाने  या सामाजिक हैसियत प्राप्त करने का होता है !

स्वाभाविक है.. ऐसा चालक बहुत जल्दी गाड़ी को ख़राब कर देगा !
यही होता भी है !

*सौ में नब्बे भारतीय, पचास  की आयु* आते-आते बीमारियों का पैकेज़ लिए घूमते हैं !
और यह प्रक्रिया 35 से ही शुरू हो जाती है !

मुझे हैरानी होती है कि जब 30-35 ,उम्र के विवाहित युगल भी, ज्योतिष परामर्श के दौरान यह बताते हैँ कि अब लव लाईफ में कोई एक्साइटमेंट नही रहा !

90 फीसदी बॉयज कुंठित हैं कि 'वे' तैयार ही नही हो पाते.. अथवा चुटकियों में फ़ारिग हो जाते हैं !
कारण साफ है...भागमभाग की प्रतिस्पर्धी जीवन शैली.. शरीर से अपना शुल्क वसूल रही है !
बहुत कम उम्र में बी.पी. ,  शुगर,  मोटापा,  हार्ट डिज़ीज़  कॉमन बातें हो गई हैं !
इसके इतर,  ज्वाइंट्स पेन ,  थॉयरॉइड,  सर्वाइकल, टेंशन हेडेक,  हाइपर एसिडिटी,  अल्सर,  स्टमक अपसेट,  पाईल्स आदि  तो इतनी सामान्य बातें हो गई हैं.. कि इनकी तो गिनती ही रोग में नही की जाती !
...फिर body ache, स्टिफनेस,  मोटा चश्मा  तो श्वास-प्रश्वास की तरह सहज स्वीकार्य हैं  !

चूंकि बी.पी.,  शुगर,  हार्ट का पेशेंट सेक्सुअली काबिल नही रह जाता.. लिहाजा,  सेक्स लाईफ बिगड़ने से उसमें मानसिक अस्वास्थ्य के अन्य लक्षण  भी प्रकट होने लगते हैं.. मसलन - चिड़चिड़ापन,  आकस्मिक क्रोध,  बात बात पर हाइपर हो जाना ,  शंकालुपन,  दोषदर्शी होना..,  देश.., समाज हर  बात के प्रति नकार से भर उठना और इनफीरिआरिटी कॉम्प्लेक्स,  जिसका बाय प्रोडक्ट है.. सुपीरियरिटी कॉम्प्लेक्स !

फिज़िकल डिसऐबेलिटी,  उसके हर रस को मानसिक कर देती है !
लिहाजा उसका रस प्रेम से अधिक पैसे में हो जाता है,  रोमांस से अधिक संस्थान.  में,  और सेक्स से अधिक टेक्स में !
...क्योंकि उसे पता है कि  उसका मोटा पेट,  डबल चिन, पसरा चेहरा और बुझा शरीर.. किसी स्त्री के दिल में,  उसके लिये रोमांटिक प्रेमी का ख्वाब नही पैदा करने वाला !
..जिस स्त्री को पाने के लिए वह जवानी में पैसा या सामाजिक हैसियत जुटा रहा था....वह उसकी हैसियत से आकर्षित हो भी गई.. तो अब असली मैदान में उसका फीता ढीला पड़ने ही वाला है.. क्योंकि इस जुगत में वह  अपना शरीर गवा बैठा है !
यानि लक्ष्य सिद्ध होने तक  उद्देश्य  ही ढह जाता है  !
..फिर ऐसे पुरुष के साथ रहते रहते, भारतीय स्त्री तो  और  भी जल्दी, लगभग 40 आते -आते खत्म हो जाती है ! क्योंकि उसकी भी वही गत हो जाती है.. जो पुरुष की है.. यानि मोटापा और बहुत सी शारीरिक व्याधियों का पैकेज़ !
.. फिर उसके बाद का जीवन सिर्फ कटता ही है , जिया नही जाता !

फिर एक बात और है, जो 50 में रोगग्रस्त है.. वह एकाएक नही होता !
35-40 से ही उसके स्वास्थ्य में गिरावट प्रारम्भ हो जाती है !
देखा जाए तो भारतीय स्त्री /पुरुष , ठीक ठाक स्वास्थ्य में बहुत कम ही जी पाते हैं !
क्योंकि ठीक ठाक स्वास्थ्य,  महज़ शारीरिक मामला ही नही है ! 
स्वस्थ होने के लिए प्राण भी स्वस्थ होना ज़रूरी है, 
मानसिक स्वास्थ्य भी ज़रूरी है, 
भावनात्मक और सोशली स्वस्थ होना भी ज़रूरी है, 
अध्यात्मिक स्वास्थ्य तो बहुत दूर की बात है !

50 वह उम्र नही,  कि जहाँ तक आते आते शरीर को ख़राब कर लिया जाए !
उम्र का आना स्वाभाविक है,  रोग का आना स्वाभाविक नही है !

रोग हमारी वासना से पैदा होता है ! हमारी कमअक्ली, हमारी असजगता और जीवन के प्रति गलत दृष्टिकोण से पैदा होता है !!
और इसकी वजहें,  हमारे पूर्वाग्रह ग्रसित मानस और अहंजनित सामाजिक ताने बाने में छिपी हैं !

हमने जीवन की समस्त धाराओं को एकमुखी कर दिया है !
और वह है - धन या सामाजिक हैसियत की प्राप्ति !
हम प्रत्येक व्यक्ति का मूल्यांकन इन्हीं दो बिंदुओं के आधार पर करते हैं !
और हमें पता होता है कि हमारा मूल्यांकन भी इन्हीं दो बिंदुओं के आधार पर होने वाला है,  लिहाजा.., 
हम जीवन की सारी ऊर्जा और शक्ति इन्हीं की  प्राप्ति में झोंक देते हैं !
हम धन और हैसियत से इतर जीवन कभी देख ही नही पाते !

हम प्रेम नही कर पाते,  
क्योंकि हमें ख़तरा होता है कि जब तक हम प्रेम करेंगे.. दूसरा हमसे आगे निकल जाएगा !
फिर प्रेम आता भी है जीवन में,  तो उससे भी हम वस्तु संग्रहण की तरह बर्ताव करते हैं ! 
हम शीघ्र ही शादी कर उसे अपने शो केस में सजा लेते हैं... और किसी मैराथन धावक की तरह दो घूंट पानी गटक कर पुनः दौड़ में लग जाते हैं !
..और प्रेम वहीं छूट जाता है !

फिर ..यही बर्ताव हम कलात्मक संवेग या अज्ञात का  निमंत्रण आने पर भी करते हैं !
..हम उसे जीने के बजाए, उसे किसी भौतिक वस्तु की तरह संगृहीत कर लेना चाहते हैं !
और दिव्यता का वह क्षण हमारे हाथ से फिसल जाता है !

हम सारा क़ीमती गवाए जाते हैं और सारा मूल्यहीन जुटाए चले जाते हैं !
क्योंकि .. हम प्रदर्शनप्रिय लोग हैं और  हम जानते हैं कि प्रदर्शन सिर्फ भौतिक का किया जा सकता है.. अभौतिक का नही !!
..लिहाजा, हम अपनी 90 फीसदी ऊर्जा भौतिक के संग्रहण में झोंके रहते हैं !
..फिर इच्छाओं की यह ओवर लोडेड गाड़ी, 
पचास की उम्र आते आते,  किसी टर्निंग पर पलट ही जाती है !
अनेकों का तो इंजन ही सीज़ हो जाता है.. और वे पचास आते-आते खेत रहते हैं !

फिर कुछ ऐसे भी हैं, जो स्वास्थ्य के लिए भी थोड़ा वक़्त निकाल लेते हैं ! 
किंतु वह भी स्वास्थ्य के लिए कम,  स्वास्थ्य की नुमाइश के लिए अधिक होता है !
.. वे सुबह गार्डन चले जाते हैं  या शाम को जिम !
हेल्थी डायट  भी शुरू कर देते हैं 
किंतु,  कोई उपाय काम नही कर पाता !
हज़ार रख रखाव के बाद भी,  वे रोग की चपेट में आ ही जाते हैं !

कारण क्या है?? 
कारण है.. समग्र स्वास्थ्य पे दृष्टि न होना !
हमारे स्वास्थ्य के अनेक तल हैं !
प्रत्येक तल की एक -दूसरे पर अन्तःक्रिया है ! 
सभी तल अन्योनाश्रित हैं !
सच्चा स्वास्थ्य..,  
शरीर,  मन,  प्राण,  बुद्धि और शुद्ध चेतना का संतुलित संयोजन है !
.. एकांगी उपाय काम नही करता !

अच्छे स्वास्थ्य को,  अच्छे मनोभावों की दरकार है !
हमारे मस्तिष्क की प्रत्येक गतिविधि और हृदय की भावना,  हमारे प्राण को आंदोलित करती है !
क्रोध में प्राण,  सिकुड़ जाता  है,  प्रेम में प्राण  फैल जाता है !
तनाव में,  चिंता में,  ईर्ष्या,  द्वेष,  डाह  में  प्राण उत्तेजित हो जाता है,  श्वास  उथली हो जाती है !
लिहाजा  प्राण जल जाता है.. क्षय हो जाता है !
किंतु, 
सुकून में, निश्चिंतता में,  भरोसे में,  गहन विश्रांति में   प्राण  संग्रहित होता है.. विस्तारित होता है !

ख्याल रखें..
रनिंग, जिमिंग, और योगा सेशन से भी जो प्राण मिलता है... उसे हमारी  चिंतित, भयभीत और कुंठित  मनोदशा.. चुटकियों में चट  कर जाती है !

प्रेमपूर्ण मनोदशा,  चौबीस घंटे का प्राणायाम है !

हमारा स्वास्थ्य,  हमारे रूटीन और खानपान पर कम,  किंतु  हमारी  मनोदशा पर अधिक निर्भर है !

क्षमा करें, ये लेख बड़ा हुआ जा रहा है... चलिए इसे जल्दी समेट देता हूं !
कुल मिलाकर यह है कि, 
ज़रा होशपूर्वक जिएं !
ऐसा बदहवास न जिएं !
ऐसा भागमभाग न जिएं !
स्वभाव में जिएं.. दूसरे को दिखाने के लिए न जिएं !
आज जो लोग दिखाई दे रहे हैँ.. वे सभी एक दिन मर जाएंगे !
किसको दिखा के क्या कर लीजिएगा !
..नही चेत रहे थे.. तो ##कोरोना  ने और चेता दिया है !
जितना ग़लत खेलेंगे.. उतनी जल्दी आउट होंगे !
अगर पचास आते आते आप अपना स्वास्थ्य खो दिए.. तो  जानिए आप बहुत कम स्कोर पर बहुत अधिक विकेट गवा दिए !

वहीं, अगर आप सही तरह से जिएं.. तो जीवन का सही मज़ा 40 के बाद शुरू होता है.. क्योंकि तब तक आप अनेक अनुभवों से गुज़र कर रिफाइंड हो चुके होते हैं !

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