*पप्रोज डे (व्यंग्य)*
कल(07-02-22) की लेखनी से आगे ......
.... *बिना गुलाब की माला लिये घर पहुचा तो गुलाब की माला ना पाकर श्रीमतीजी थोड़ी रूष्ठ हुई, फिर बोली जब हमारी शादी हुई, उस समय तो तुम नभ से चांद तारे तोड़ लाने की बाते किया करते थे, आज कहा गया वो आनन्द जो मेरे लिये एक गुलाब की माला तक ना ला पाया .. रूष्ट हुई श्रीमतीजी को मनाने के जतन मैने खूब किए लेकिन पारा उनका सातवे आसमान पर था....वैसे भी नाराज भी उन्ही से हुवा जाता है जिनसे हमारा आपसी अधिक प्रेम हो, ओर जब पति-पत्नी की उम्र 55-60 के करीब हो जाती है तो पति-पत्नी में नोक-जोक आम बात होती है ....*
*उनको मनाने में दिन बीता , सांझ ढलने लगी , रात्री के चार प्रहर बीत गए , नवीन प्रभात हुई ....प्रातः पूजा के पश्चात अखबार पढ़ रहा था, तो ध्यान रीट की परीक्षा निरस्त होने वाली खबर पर गया, तो मन मेरा रोया ...सोचा कि आज का पढ़ने वाला युवा फिर से ठगा गया......*
*अखबार का दूसरा पन्ना ही पलटा था कि युवा पोता, मेरे पास प्रेम से पास आकर बैठा, मैं बोला बेटे क्या काम आन पड़ा... कि वृद्ध दादा की आज याद आई.... मुस्कराते हुवे पोता बोला, दादू 2 हजार रुपये चाहिए..... मैने पोते से कहा , पिछले सप्ताह ही तो स्कूल की फीस तेरी जमा करवाई थी, अब कहा जरूरत आन पडी, पोता बोला दादू आज "प्रपोज डे" है.....इसलिये .. बूढ़ी आँखे कुछ समझ पाती ......उससे पहले ही वो बोला, आप नही समझोगें ..…. मैं मन ही मन बुदबुदाया कि मैं नही समझता या आज का युवा बहुत ज्यादा समझता है .. वैसे भी सामान्यत आज के युवाओं की अवांछनीय बुरी आदतो का शुभारम्भ उनके घरो से ही होता है..... ओर मैने ना चाहते हुवे भी, मूल से ज्यादा ब्याज (दादा पोते का सम्बन्ध) के भाव को समझकर अपनी तिजोरी से 2000 रूपयें निकाल उसे दे दिया ।*
*युवा पोता फर्राटेदार बाईक लेकर ऐसा भागा मानो पुष्पक विमान को #रावण चला कर.... #सीता का हरण करने जा रहा हो .....पोते के बाहर निकलते ही मैने "प्रपोज डे" का अर्थ जानने का प्रयास करने लगा.... अंग्रेजी ज्यादा नही आने के कारण #प्रपोज शब्द का हिन्दी में संधि विच्छेद किया तो. अर्थ निकला पर+पोज* .
*मुझे "पर" का अर्थ ज्ञात था, पिछले वर्ष ही मुरारी बापु की रामकथा में सुना कि लंकापति अहंकारी रावण ने "पर" स्त्री का हरण किया ..... तो मर्यादा पुरूषोतम श्रीराम के हाथो मारा गया ..... अब मुझे अपने पोते की चिन्ता सताने लगी .... मैं सोचने लगा कि यह "पर" शब्द तो अच्छा नही ...... मेरा पोता न जाने किस "पर" का "पोज" लेने 2000 रू. का नोट लेकर घर से निकला है ... पूरा दिन ढल गया.... चिंता मेरी बढ़ने लगी ..... इस प्रप्रोज (पर+पोज) डे की सुबह से शाम हो गई ..... पर पोते का “प्रपोज डे” खत्म ना )हुआ ..... मैं व्यथित भाव से मन ही मन रामरक्षा स्त्रोत्र पढने लगा ओर प्रभु श्रीराम से प्रार्थना करने लगा कि.... हे मेरे राम ......मेरे पोते की रक्षा करना वो "पर" "पोज" डे मनाने गया*
...(शेष कल, अगर सोचने का समय मिला , तो लिखने का प्रयास करूंगा)
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