बहुत ध्यान से पढ़िएगा।
भारतीय न्याय व्यवस्था के ऊपर इससे अच्छा सम सामयिक लेख नही मिलेगा।
सुप्रीम कोर्ट के जज मतलब राष्ट्रपति के बराबर का दर्जा।
सुप्रिप कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील याने दो दो कौड़ी के आतंकियों के लिए उनके आकाओं के निर्देश पर में रात भर भागदौड़ करने वाले कठपुतलियां।
फिर भी कहते है न कि ....
"दबी बिल्ली चूहें से....GAAAA& ????"
अब पढ़िए पूरा लेख।
कुछ महीने पहले एक टीवी चैनल पर कार्यक्रम था उस कार्यक्रम में भारत के पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई जो उस वक्त राज्यसभा सांसद बन चुके थे साथ में तृणमूल कांग्रेस के सांसद महुआ मोइत्रा और कई लोग थे।
एंकर ने जब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई से भारत की न्याय व्यवस्था के बारे में सवाल पूछा तब पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि मैं चाह कर भी भारत की न्यायपालिका को सुधार नहीं सकता क्योंकि हमारा अदालती सिस्टम कुछ बड़े फिक्सरों (दलालो) के कब्जे में है और यह बड़े फिक्सर जब चाहे जो चाहे जैसा चाहे उस तरह से हमारी न्याय व्यवस्था को चला देते हैं।
इस कार्यक्रम में आगे जस्टिस रंजन गोगोई ने न्यायपालिका पर और भी बड़े सवाल उठाए जैसे कि यदि भारत को 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनना है तो जब तक भारत अपने न्याय व्यवस्था को नही बदलेगा तब तक वह 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था नहीं बन सकता क्योकि भारत की न्याय व्यवस्था इतनी बर्बाद हो गई है और वह घुन की तरह न सिर्फ इस देश को बल्कि इस देश की अर्थव्यवस्था और इस देश के ताने-बाने को छेद छेद कर कमजोर कर रही है।
उन्होंने आगे कहा कि एक मध्यम वर्ग जाए गरीब को भारत की न्याय व्यवस्था कभी भी न्याय नहीं दे सकती और यह एक कड़वा सच है यदि आप बहुत बड़े पैसे वाले हैं अरबपति हैं तब आप को न्याय मिलेगा और आपके वकील लोग ही हमारे जज लोगों को यह बताएंगे कि आपको क्या फैसला देना है और यह चंद बड़े वकील ही आज सुप्रीम कोर्ट के सबसे बड़े फिक्सर बन चुके हैं।
जस्टिस रंजन गोगोई के इस कथन पर सुप्रीम कोर्ट ने चाह कर भी कुछ नहीं किया क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के हर एक जज को पता है कि वह बड़े-बड़े फिक्सरो (दलालो) जैसे दुष्यंत दवे कपिल सिब्बल अभिषेक मनु सिंघवी प्रशांत भूषण के चंगुल में फंसे हुए हैं और यह लोग जब चाहे जैसा चाहे उस तरह से भारत के सुप्रीम कोर्ट को चलाते हैं।
अब आप कुछ उदाहरण समझिए कि जस्टिस रंजन गोगोई ने कितनी कड़वी बात कही थी काश वह कुछ उदाहरण भी और कुछ नाम भी देते तो बहुत अच्छा होता।
दो मामले हैं दोनो बिल्कुल एक जैसे हैं।
बीजेपी नेता किरीट सोमैया पर महाराष्ट्र सरकार ने यह आरोप लगाया कि उन्होंने आई एन एस विराट को बचाने के लिए लोगों से चंदा लिया और उस चंदे का कोई हिसाब सरकार को नहीं दिया और उनके खिलाफ गिरफ्तारी के वारंट जारी कर दिए गए किरीट सोमैया निचली अदालत और फिर मुंबई हाई कोर्ट में सेशन कोर्ट में यानी तीन अदालतों में अग्रिम जमानत के लिए गए लेकिन उन्हें तीनों अदालत ने अग्रिम जमानत नहीं दिया।
अब आप दूसरा उदाहरण देखिए गुजरात दंगों पर अपनी रोटी सेकने वाली तीस्ता जावेद सीतलवाड़ ने खाड़ी के देशों अमेरिका ब्रिटेन सहित कई जगहों से लगभग 100 करोड़ रुपए डोनेशन लिया जांच में पता चला कि उसकी तमाम खरीदारी का बिल उसके ट्रस्ट के खाते से किया गया है यहां तक कि दुबई एयरपोर्ट पर सोने के गहने खरीदने का बिल या ब्रिटेन के एयरपोर्ट पर ड्यूटी फ्री लिकर यानी शराब खरीदने का बिल भी उसने ट्रस्ट के पैसे से किया था फिर उसी के ट्रस्ट सबरंग के एक दूसरे ट्रस्टी ने ही पुलिस में केस दर्ज करवाया।
पुलिस ने पहले 6 महीने जांच किया सारे सुबूत इकट्ठा किए उसके बाद तीस्ता जावेद को गिरफ्तार करने मुंबई गई।
तीस्ता जावेद ने अपने घर का दरवाजा नहीं खोला 10 मिनट में इलाके के एक पुलिस स्टेशन में सुप्रीम कोर्ट का फैसला मेल से जाता है कि तीस्ता को गिरफ्तारी से रोक का आदेश दे दिया गया है।
पता चला कि कपिल सिब्बल ने फोन पर सुप्रीम कोर्ट के एक जज को यह आदेश पारित करवा दिया मतलब भारत के इतिहास में यह पहली मौका है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने टेलीफोन पर सुनवाई किया था और सिर्फ 3 मिनट की टेलीफोनिक सुनवाई में आदेश दे दिया।
ठीक इसी तरह का काम राना अय्यूब ने किया उन्होंने भी गुजरात दंगों के नाम पर जो डोनेशन इकट्ठा किया उसका ऑडिट नहीं करवाया और उसमें से 5 करोड़ रुपये अपने पिताजी के नाम फिक्स डिपाजिट कर दिए उनके खिलाफ भी सारे सबूत हैं वह जब विदेश जा रही थी और उन्हें विदेश जाने से रोका गया तब मुंबई हाईकोर्ट ने कहा कि 5 करोड़ की रकम कोई इतनी बड़ी रकम नहीं है कि इसे बड़ा फ्रॉड माना जाए।
मुझे याद है एक बस कंडक्टर को 20 पैसे गबन करने के आरोप में 40 साल तक मुकदमा लड़ना पड़ा था तब हमारी अदालती सिस्टम ने यह नहीं कहा कि 20 पैसा कोई बड़ी रकम नहीं है।
अब कल जहांगीरपुरी का उदाहरण
देखिए....
10:30 बजे जैसे ही बुलडोजर जहांगीरपुरी पहुंचे 10:31 पर जमाते उलेमा के वकील कपिल सिब्बल दुष्यंत दवे और प्रशांत भूषण सीधे सुप्रीम कोर्ट में गए आनन-फानन में सुनवाई हुई और ठीक 10 बज कर 45 मिनट पर सुप्रीम कोर्ट अपना स्टे ऑर्डर दे दिया मैं तो आश्चर्यचकित हो गया कि ऐसे मामले मैं इतनी जल्दी सुनवाई और इतना जल्दी आदेश कैसे हो गया जबकि भारत की न्याय व्यवस्था का हायरकी यानी निचली अदालत में फिर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का भी ध्यान नहीं रखा गया।
यानी जस्टिस रंजन गोगोई ने बिल्कुल ठीक कहा था भारत का न्याय व्यवस्था भारत का हर एक अदालत कोर्ट फिक्सरो यानी दलालों के चंगुल में है।
साभार:-
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