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सोमवार, 19 अगस्त 2024

श्रावणी उपाकर्म विशेष

श्रावणी उपाकर्म विशेष 

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उपाकर्म इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व...!!
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उपाकर्म का अर्थ है प्रारंभ करना। उपाकरण का अर्थ है आरंभ करने के लिए निमंत्रण या निकट लाना। वैदिक काल में यह वेदों के अध्ययन के लिए विद्यार्थियों का गुरु के पास एकत्रित होने का काल था। इसके आयोजन काल के बारे में धर्मगंथों में लिखा गया है कि - जब वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं, श्रावण मास के श्रवण व चंद्र के मिलन (पूर्णिमा) या हस्त नक्षत्र में श्रावण पंचमी को उपाकर्म होता है। इस अध्ययन सत्र का समापन, उत्सर्जन या उत्सर्ग कहलाता था। यह सत्र माघ शुक्ल प्रतिपदा या पौष पूर्णिमा तक चलता था। 

यह पुण्य दिन ब्राह्मण समुदाय के लिए बहुत महत्व रखता है। जीवन की वैज्ञानिक प्रक्रिया:- जीवन के विज्ञान की यह एक सहज, किन्तु अति महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। जन्मदात्री माँ चाहती है कि हर अण्डा विकसित हो । इसके लिए वह उसे अपने उदर की ऊर्जा से ऊर्जित करती है, अण्डे को सेती है। माँ की छाती की गर्मी
पाकर उस संकीर्ण खोल में बंद जीव पुष्ट होने लगता है। उसके अंदर उस संकीर्णता को तोड़कर विराट् प्रकृति, विराट् विश्व के साक्षात्कार का संकल्प उभरता है। उसे फिर उस सुरक्षित संकीर्ण खोल को तोड़कर बाहर निकलने में भय नहीं लगता । वह दूसरा-नया जन्म ले लेता है । यह प्रक्रिया प्रकृति की सहज प्रक्रिया है, किन्तु पुरुषार्थसाध्य है। पोषक और पोषित; दोनों को इसके अंतर्गत प्रबल पुरुषार्थ करना पड़ता है। इसीलिए युगऋषि ने लिखा है- 'मनुष्य जन्म तो सहजता से हो जाता है, किन्तु मनुष्यता विकसित करने के लिए कठोर पुरुषार्थ
करना पड़ता है।' जैसे अण्डा माता की छाती की ऊष्मा से पकता है, वैसे ही मनुष्यता गुरु-अनुशासन में वेदमाता की गर्मी (शुद्ध ज्ञान की ऊर्जा) से धीरे-धीरे परिपक्व होती है। परिपक्व होने पर साधक अपने संकल्प से उस संकीर्णता के घेरे को तोड़ डालता है। तब उसे अपने तथा जन्मदात्री माता के स्वरूप का बोध होता है। तब वह भी माँ की तरह विराट् आकाश में उड़ने की चेष्टा करता है । तब माँ ऊँची उड़ानें भरने के उसके प्रयासों को शुद्ध-सही बनाती है। यही मर्म है-
'पावमानी द्विजानाम्' का । जो संकीर्णता के खोल में बंद है, उसे माँ विकसित करने के लिए अपनी ऊर्जा तो देती रहती है, किन्तु नया जन्म लेने के पहले उसके लिए अपने अन्य कौशलों का प्रयोग नहीं कर सकती । जिसने दूसरा जन्म ले लिया, वह 'द्विज' । नये दुर्लभ जन्म की प्रक्रिया को पूरा करने की प्रवृत्ति-साधना है 'द्विजत्व' । जब द्विज के चिंतन, चरित्र, व्यवहार पवित्र हो जाते हैं, तो वह ब्रह्म के अनुशासन में सिद्ध ब्राह्मण हो जाता है । जब उसकी कामनाएँ ब्रह्म के अनुरूप ही हो जाती हैं, तो ब्राह्मी चेतना-आदिशक्ति उसके लिए कामधेनु बन जाती है। जिसकी कामनाएँ-प्रवृत्तियों अनगढ़हैं, उन्हें पूरा करने से तो संसार में अनगढ़ता ही बढ़ेगी। इसलिए माता सुगढ़-शुद्ध कामना वालों के लिए ही कामधेनु का रूप धारण करती है । भारतीय संस्कृति में द्विजत्व और ब्राह्मणत्व का संबंध किसी जाति या वर्ग विशेष में जन्म लेने से नहीं है, बल्कि वह साधना की उच्च कक्षा से जुड़े सम्बोधन हैं ।

इसीलिए संस्कारों से द्विजत्व की प्राप्ति की बात कही जाती रही है । संगीत के द्वार सभी के लिए खुले हैं, किन्तु संगीताचार्य अपनी बारीकियाँ उन्हीं के सामने खोलते हैं, जिनकी संगीत साधना उच्च स्तरीय हो गई है। खेल सभी खेल सकते हैं, किन्तु खेल प्रशिक्षक खेल तकनीक की बारीकियाँ उसी को समझाता है, जिनके कौशल और दमखम की साधना उच्च स्तरीय है । जिसकी साधना विकसित नहीं हुई है, उसे आगे की बात बताने से बतलाने वाले का प्रयास निरर्थक तो जाता ही है, कई बार उसका विपरीत प्रभाव भी भोगना पड़ जाता है ।

तिथि:- श्रावण पूर्णिमा में यदि ग्रहण या संक्रांति हो तो श्रावणी उपाकर्म श्रावण शुक्ल पंचमी को करना चाहिये।

'भद्रायां ग्रहणं वापि पोर्णिमास्या यदा भवेत। उपाकृतिस्तु पंचम्याम कार्या वाजसेनयिभः'

संक्रांति व पूर्णिमा युति या ग्रहण पूर्णिमा युति में वाजसेनी आदि सभी शाखा के ब्राह्मणों को उपाकर्म (श्रावणी) पंचमी को कर लेनी चाहिये। शास्त्र सम्मत श्रावण उपाकर्म भद्रा दोष, ग्रहण युक्त पूर्णिमा, संक्राति युक्त पूर्णिमा में नहीं किया जाता तब उससे पूर्व श्रावण शुक्ल पंचमी नागपंचमी में श्रावणी स्नान उपाकर्म करने के शास्त्रोत्त निर्देश हैं। हेमाद्रिकल्प, स्कंद पुराण, स्मृति महार्णव, निर्णय सिंधु, धर्म सिंधु आदि योतिष व धर्म के निर्णय ग्रंथों में इसके प्रमाण हैं। कुछ ग्रंथों के प्रमाण इस प्रकार हैं-

 'श्रावण शुक्लया: पूर्णिमायां ग्रहणं संक्रांति वा भवेतदा।
यजुर्वेदिभिः श्रावण शुक्ल पंचम्यामुपाकर्म कर्तव्यं॥' 

अर्थात श्रावण पूर्णिमा में यदि ग्रहण या संक्रांति हो तो श्रावणी उपाकर्म श्रावण शुक्ल पंचमी को करना चाहिये। एक अन्य श्लोक के उल्लेख के अनुसार भद्रा में दो कार्य नहीं करना चाहिये एक श्रावणी अर्थात उपाकर्म, रक्षाबंधन, श्रवण पूजन आदि और दूसरा फाल्गुनि होलिका दहन। भद्रा में श्रावणी करने से राजा की मृत्यु होती है तथा फाल्गुनी करने से नगर ग्राम में आग लगती है तथा उपद्रव होते हैं। श्रावणी अर्थात उपाकर्म रक्षाबंधन, श्रवण पूजन भद्रा के उपरांत ही की जा सकती है। लेकिन ग्रहण युक्त पूर्णिमा भी श्रावणी उपाकर्म में निषिध्द है|ब्राह्मणों का यह
अतिमहत्वपूर्ण कर्म हैं। 

श्रावणी पर्व👉 श्रावणी पर्व द्विजत्व की साधना को जीवन्त, प्रखर बनाने का पर्व है । जो इस पर्व के प्राण-प्रवाह के साथ जुड़ते हैं, उनका द्विजत्व-ब्राह्मणत्व जाग्रत् होता जाता है तथा वे आदिशक्ति, गुरुसत्ता के विशिष्ठ अनुदानों के प्रामाणिक पात्र बन जाते हैं। द्विजत्व की साधना को इस पर्व के साथ विशेष कारण से जोड़ा गया है । युगऋषि ने श्रावणी पर्व के सम्बन्ध में लिखा है कि यह वह पर्व है जब ब्रह्म का 'एकोहं बहुस्यामि' का संकल्प फलित हुआ। पौराणिक उपाख्यान सबको पता है। भगवान की नाभि से कमलनाल निकली, उसमें से कमल पुष्प विकसित हुआ। उस पर स्रष्टा ब्रह्मा प्रकट हुए, उन्होंने सृष्टि की रचना की । युगऋषि इस अंलकारिक आख्यान का मर्म स्पष्ट करते हुए लिखते हैं- "संकल्पशक्ति क्रिया में परिणित होती है और उसी का स्थूल रूप वैभव एवं घटनाक्रम बनकर सामने आता है । नाभि (संकल्प) में से अन्तरंग बहिरंग बनकर
विकसित होने वाली कर्म-वर्लरी को ही पौराणिक अलंकरण में कमलबेल कहा गया है । पुष्प इसी बेल का परिपक्व परिणाम है। सृष्टि का सृजन हुआ, इसमें दो तत्व प्रयुक्त हुए-१ ज्ञान, २ कर्म । 

इन दोनों के संयोग से सूक्ष्म चेतना, संकल्प शक्ति स्थूल वैभव में परिणत हो गई और संसार का विशाल कलेवर बनकर खड़ा हो गया। उसमें ऋद्धि-सिद्धियों का आनन्द-उल्लास भर गया । यही कमल-पुष्प की पखुड़ियाँ हैं । इसका मूल है ज्ञान और कर्म, जो ब्रह्म की इच्छा और प्रत्यावर्तन प्रक्रिया द्वारा सम्भव हुआ । ज्ञान और कर्म के आधार पर ही मनुष्य की गरिमा का विकास हुआ है ।" मनुष्य की महान गरिमा के
अनुरूप जीवन जीने के अभ्यास को द्विजत्व की साधना कहा गया है । द्विजत्व की साधना सहज नहीं है । मन की कमजोरियों और परिस्थितियों की विषमताओं के कारण प्रयास करने पर भी साधकों से चूकें हो जाती हैं । समय-समय पर आत्म समीक्षा द्वारा उन भूल-चूकों को चिन्हित करके उन्हें ठीक करना, अपने अन्दर सन्निहित महान सम्भावनाओं को जाग्रत्-साकार करने के प्रयास करना जरूरी होता है। इस सदाशयतापूर्ण संकल्प को पूरा करने के लिए श्रावणी पर्व-ब्राह्मी संकल्प के फलित होने वाले पर्व से श्रेष्ठ और कौन-सा समय हो सकता है? इसलिए ऋषियों ने द्विजत्व के परिमार्जन-विकास के लिए श्रावणी
पर्व को ही चुना है।
 
विधि👉 श्रावणी उपाकर्म के तीन पक्ष है- प्रायश्चित्त संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय। सर्वप्रथम होता है।

प्रायश्चित्त रूप में हेमाद्रि स्नान संकल्प। गुरु के सान्निध्य में ब्रह्मचारी गोदुग्ध, दही, घृत, गोबर और गोमूत्र तथा पवित्र कुशा से स्नानकर वर्ष भर में जाने- अनजाने में हुए पापकर्मों का प्रायश्चित्त कर जीवन को सकारात्मकता से भरते हैं। स्नान के बाद ऋषिपूजन, सूर्योपस्थान एवं यज्ञोपवीत
पूजन तथा नवीन यज्ञोपवीत धारण करते हैं। यज्ञोपवीत या जनेऊ आत्म संयम का संस्कार है। आज के दिन जिनका यज्ञोपवित संस्कार हो चुका होता है, वह पुराना यज्ञोपवित उतारकर नया धारण करते हैं। और पुराने यज्ञोपवित का पूजन भी करते हैं । इस संस्कार से व्यक्ति का दूसरा जन्म हुआ माना जाता है। इसका अर्थ यह है कि जो व्यक्ति आत्म संयमी है, वही संस्कार से दूसरा जन्म पाता है और द्विज कहलाता है। 

उपाकर्म का तीसरा पक्ष स्वाध्याय का है। इसकी शुरुआत सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, स्मृति, सदसस्पति, अनुमति, छंद और ऋषि को घृत की आहुति से होती है। जौ के आटे में दही मिलाकर ऋग्वेद के मंत्रों से आहुतियां दी जाती हैं। इस यज्ञ के बाद वेद-वेदांग का अध्ययन आरंभ होता है। इस सत्र का अवकाश समापन से होता है। इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है। वर्तमान में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों विधान कर दिए जाते हैं। प्रतीक रूप में किया जाने वाला यह विधान हमें स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करता है। यह जीवन शोधन की एक अति महत्वपूर्ण
मनोवैज्ञानिक-आध्यात्मिक प्रक्रिया है । उसे पूरी गम्भीरता के साथ किया जाना चाहिए । श्रावणी पर्व वैदिक काल से शरीर, मन और इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता है । इस पर्व पर की जाने वाली सभी क्रियाओं का यह मूल भाव है कि बीते समय में मनुष्य
से हुए ज्ञात-अज्ञात बुरे कर्म का प्रायश्चित करना और भविष्य में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देना। 

द्विज और द्विजत्व👉 द्विज सम्बोधन यहाँ किसी जाति-वर्ग विशेष के लिए नहीं है, यह एक गुणवाचक सम्बोधन है । जीवन साधना की उच्चतम कक्षा के सफल साधक का पर्याय है। द्विज का अर्थ होता है-दुबारा जन्म लेने वाला । संस्कृत साहित्य में पक्षियों को भी द्विज कहा जाता है । माँ जन्म देती है अण्डे को । माँ के गर्भ से जन्म ले लेने की प्रक्रिया पूरी हो जाने पर भी बच्चे का स्वरूप जन्मदात्री के स्वरूप के अनुरूप नहीं होता । परन्तु अण्डे के अंदर जो जीव है, उसमें जन्मदात्री के अनुरूप विकसित होने की सभी संभावनाएँ होती हैं । प्रकृति के अनुशासन का पालन किये जाने पर उसका समुचित विकास हो जाता है और वह अण्डे में बँधी अपनी संकीर्ण सीमा को तोड़कर अपने नये स्वरूप में प्रकट हो जाता है । इस प्रक्रिया को उसका दूसरा जन्म कहना हर तरह से उचित है । यह
प्रक्रिया पूरी होने पर ही उसे प्रकृति की विराटता का बोध होता है। तभी माँ उसे उड़ने का प्रशिक्षण देती है । ऋषियों ने अनुभव किया कि मनुष्य स्रष्टा की अद्भुत कृति है । उसमें दिव्य शक्तियों, क्षमताओं के विकास की अनंत सँभावनाएँ हैं । सामान्य रूप से तो माँ के गर्भ से जन्म लेने के बाद भी वह पशुओं जैसी आहार, निद्रा, भय, मैथुन की संकीर्ण प्रवृत्तियों के घेरे में ही कैद रहता है। मनुष्य की अंतःचेतना जब पुष्ट होकर संकीर्णता के उस अण्डे जैसे घेरे को तोड़कर बाहर आने का पुरुषार्थ करती है, तब उसका दूसरा जन्म होता है। तभी माता (आदिरशक्ति) उसे सदाशयता और सत्पुरुषार्थ (सद्ज्ञान एवं सत्कर्म) के पंख फैलाकर जीवन की ऊँचाइयों में उड़ने का प्रशिक्षण देती है । 

तैयारी करें:- जो साधक वास्तव में इसका यथेष्ट लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें इसके लिए कम से कम एक दिन पूर्व से विचार मंथन करना चाहिए । गुरुदीक्षा के समय अथवा अगले चरण के साधना प्रयोगों में जो नियम-अनुशासन स्वीकार किये गये थे, उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए । भूलों को समझे और स्वीकार किए बिना उनका शोधन संभव नहीं । आत्मसाधना में समीक्षा के बाद ही शोधन, निर्माण एवं विकास के कदम बढ़ाये जा सकते हैं । जो भुल-चूकें हुई हों, उन्हें गुरुसत्ता के सामने सच्चे मन से स्वीकार किया जाना चाहिए । क्षति पूर्ति के लिए अपने कत्तव्य निश्चित करके गुरुसत्ता से उसमें समुचित सहायता की प्रार्थना करनी चाहिए । श्रावणी उपाकर्म के सामूहिक क्रम में जो शामिल हों, उन्हें सामूहिक कर्मकाण्ड का लाभ तभी मिलेगा, जब वे उसके लिए व्यक्तिगत मंथन कर चुके होंगे । उसके बाद शिखा सिंचन उच्च विचार-ज्ञान साधना को तेजस्वी बनने के लिए किया जाता है । यज्ञोपवीत परिवर्तन यज्ञीय कर्म अनुशासन को अधिक प्रखर-प्रामाणिक बनाने के लिए किया जाता है । ब्रह्मा का, वेद का और ऋषियों का आवाहन, पूजन उनकी साक्षी में संकल्प करने तथा उनके सहयोग से आगे बढ़ते रहने के भाव से किया जाता है। रक्षाबंधन प्रगति के श्रेष्ठ संकल्पों को पूरा करने के भाव से किया-कराया जाता है । प्रकृति के अनुदानों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने के साथ उसके ऋण से यथाशक्ति उऋण होने के भाव से वृक्षारोपण करने का नियम है । श्रावणी पर हर दीक्षित साधक को साधना का परिमार्जन करने के साथ उसको श्रेष्ठतर स्तरों पर ले जाने के संकल्प करने चाहिए । ऐसा करने वाले साधक ही इष्ट, गुरु या मातृसत्ता के उच्च स्तरीय अनुदानों को प्राप्त करने की पात्रता अर्जित कर सकते हैं। यदि सामूहिक पर्व क्रम में शामिल होने का सुयोग न बने तथा विशेष कर्मकाण्डों का करना-कराना संभव न हो, तो भी अपने साधना स्थल पर भावनापूर्वक पर्व के आवश्यक उपचारों द्वारा श्रावणी के प्राण-
प्रवाह से जुड़कर उसका पर्याप्त लाभ प्राप्त किया जा सकता है । इसके लिए सभी को एक दिन पहले से ही जागरूकतापूर्वक प्रयास
करने-कराने चाहिए। भूलों के सुधार तथा विकास के लिए निर्धारित नियमों को लिखकर पूजा स्थल पर रख लेना चाहिए । उपासना के समय उन पर दृष्टि पड़ने से होने वाली भूलों, विसंगतियों से बचना
संभव होता है । हमारे सार्थक प्रयास हमें उच्च स्तरीय प्रगति का अधिकारी बना सकते हैं।

उपाकर्म के लिये सामग्री
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1 हल्दी
2 कलावा (मौली)
3 अगरबत्ती
4 कपूर
5 तिल
6 जो
7 यज्ञोपवीत 
8 चावल
9 अबीर
10 गुलाल
11 माचिस
12 सिंदूर 
13 रोली
14 सुपारी, (बड़ी)
15 नारियल 
16 सरसो
17 हवन सामग्री
18 शहद (मधु)
19 शक्कर
20 घृत (शुद्ध घी)
21 अगरबत्ती
22धुप बत्ती
23 सप्तमृत्तिका
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हाथी के स्थान की मिट्टि, घोड़ा बांधने के स्थान की मिट्टी, बॉबी की मिट्टी, दीमक की मिट्टी, नदी संगम की मिट्टी, तालाब की मिट्टी, गौ शाला की मिट्टी, राज द्वार की मिटटी

24 पंचगव्य
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गाय का गोबर , गौ मूत्र, गौ घृत, गाय का दूध, गाय का दही 

25 सप्त धान्य
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कुलबजन-100ग्राम, जौ, गेहूँ, चावल, तिल, काँगनी, उड़द, मूँग

26कुशा
27दूर्वा
28 पुष्प कई प्रकार के
29 गंगाजल
30 ऋतुफल
39ल1 स्वेतवस्त्र

ब्राह्मण को अपने लिए उपयोगी सामग्री
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धोती, दुपट्टा, आंगोछा, आसन, माला, गौमुखी, लोटा, पंचपात्र, चमची, तष्टा, अर्घा, डाभ अंगूठी, जनेऊ गांठ लगा हुआ।

श्रावणी रक्षाबंधन के दिन उपाकर्म के अंतर्गत पाप कर्म की मुक्ति के लिए इन 10 चीजों से एक एक करके स्नान किया जाता हैं- मिट्टी, गाय का गोबर, गाय का दूध, गाय का घी, गाय का पंचगव्य, भस्म, अपामार्ग, कुशा+दूर्वा, शहद एवं गंगाजल, आदि 10 पदार्थो के द्वारा स्नान किया जाता है । इस स्नान से शारीरिक शुद्धि होती है और ऋषिपूजन, देवपूजन, द्वारा आध्यात्मिक शांति प्राप्त होती है। इस क्रम को करने के बाद नये यज्ञोपवित का पूजन कर पहनने के बाद पुराने को बदला जाता हैं, बाद में हवन करके सूर्य भगवान को अर्घ्य चढ़ाया जाता है । साथ इस दिन आत्मशुद्धि के बाद वेद शास्त्रों के अध्यन का भी नियम होता है ।

संकलित 

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शनिवार, 17 अगस्त 2024

संदिग्ध पर्व (#रक्षाबंधन) शंका समाधान _ रक्षा बन्धन का शास्त्रीय निर्णय 👉

संदिग्ध पर्व (रक्षाबंधन) शंका समाधान
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रक्षा बन्धन का शास्त्रीय निर्णय 👉

गतवर्ष की भांति इस वर्ष भी रक्षाबन्धन
पर्व अल्पकालिन होगा। शास्त्रानुसार यह पर्व भद्रा रहित अपराह्न व्यापिनी पूर्णिमा में करना चाहिए। भारत के कुछ प्रदेशों में यह पर्व उदय व्यापिनी पूर्णिमा में मनाने का प्रचलन है। इस वर्ष 19 अगस्त को प्रातः कॉल से दोपहर 01 बजकर 31 मिनट तक भद्रा दोष पाताल में व्याप्त है। अत: शास्त्र निर्णय अनुसार 19 अगस्त सोमवार को ही भद्रा के बाद दोपहर 1 बजकर 32 मिनट से अथवा प्रदोष काल के समय भद्रा रहित काल में सायं 06 बजकर 53 मिनट से रात्रि 09 बजकर 03 मिनट तक रक्षाबन्धन पर्व मनाया जायेगा। अति आवश्यक परिस्थिति में परिहार स्वरूप प्रातः 10:51 से 12:36 तक के समय को छोड़कर भद्रा पुच्छकाल प्रातः 09 बजकर 50 मिनट से 10 बजकर 52 मिनट तक में भी रक्षाबन्धन करना कुछ मर्यादा तक ग्राह्य रहेगा।

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ 👉 अगस्त 18, को अंतरात्रि 03:03 बजे से.

पूर्णिमा तिथि समाप्त अगस्त 19 को रात्रि 11:55 पर।

भद्रा अन्त समय 👉 दिन 01:31
भद्रा पूँछ 👉 प्रातः 09:51 से 10:52
भद्रा मुख 👉 प्रातः 10:51 से 12:36

मुहूर्त प्रकाश में स्पष्ट ही कहा है कि पाताल की भद्रा शुभ फलदायक ही होती है है लेकिन फिर भी पर्व त्यौहार आदि में इसका त्याग कर सके तो अवश्य करें इसलिए अतिआवश्यक कार्य में मुख मात्र को छोड़कर सम्पूर्ण भद्रा में शुभ कार्य कर सकते हैं। रक्षाबंधन से पहले इस दिन प्रातः अथवा दोपहर के समय अपने घर के मुख्य द्वार पर गेरू (खड़िया) अथवा अन्य रूप से रक्षाबंधन का पूजन करते है वो लोग भद्रा पूँछ के समय प्रातः 09:51 से 10:52 तक देहरी पूजन संपन्न कर सकते है।

रक्षा बन्धन के लिये दोपहर का मुहूर्त👉 दिन 01 बजकर 32 मिनट से सायं 04 बजकर 16 मिनट तक।

रक्षा बन्धन के लिये प्रदोष काल का मुहूर्त 👉 सायं 06 बजकर 53 मिनट से रात्रि 09 बजकर 03 मिनट तक।

रक्षाबंधन के विशेष उपाय 
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यदि आप बहनो का कोई भाई ज्यादा बीमार रहता हो या किसी अन्य परेशानी में हो तो निम्न उपाय करना चाहिए।

रक्षा बंधन के दिन राखी बांधने से ठीक पहले अपनी दायीं मुट्ठी में पीली सरसों (1चम्मच) व 7 लोंग लेवे।

उस सामग्री को भाई के ऊपर से एन्टी क्लॉक वाइज 27 बार लगातार उल्टा उसार देवे। फिर उसी वक्त उस सामग्री को गर्म तवे पर डाल कर ऊपर से कटोरी उल्टी रखे। जब सारी सामग्री काले रंग की हो जाये तब नीचे उतार लेवे व चौराहे पर किसी से फिकवां देवे। खुद नही फेके।

ध्यान रहे सरसो व लोंग आपको अपने घर से लेकर जाने है यदि आप शादी सुदा है तो । अन्यथा खुद ही बाजार से नए खरीदे। घर के काम मे नही लेवे। उपाय के बाद तवे को भी अच्छे से धो लें सरसो उसरने के बाद ज्यादा देर घर मे ना रखें तुरंत बाहर ले जाएं। इस उपाय को राखी के दिन ही करना है। पुनरावृत्ति न करे।
〰️〰️🌼〰️ साभार 〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️

रविवार, 11 अगस्त 2024

आजकल सोशल मीडिया पर और कुछ मित्रों के मन में एक बात जोरों से चल रही है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की ऐसी दुर्दशा हो रही है तो इसमें मोदी जी क्या कर रहे हैं...!*

*👇🏽इसे समझें आपके आधे भ्रम दूर हो*


*🔥आजकल सोशल मीडिया पर और कुछ मित्रों के मन में एक बात जोरों से चल रही है कि बांग्लादेश में हिंदुओं की ऐसी दुर्दशा हो रही है तो इसमें मोदी जी क्या कर रहे हैं...!*

____वे बयानबाजी छोड़ कर बांग्लादेश में हिंदुओं को बचाने के लिए अपनी सेना क्यों नहीं भेज रहे हैं ???

*साथ-ही-साथ ही...* पुच्छले के तौर पर वे ये भी जोड़ दे रहे हैं कि *मोदी जी ने तो बंगाल में भी हिंदुओं के मरने पर भी कुछ नहीं किया था और सिर्फ चिट्ठियां ही लिखते रह गए थे.*

जबकि, चाहते तो उसी समय बंगाल में सेना भेज कर इसे रुकवा सकते थे अथवा वहाँ की सरकार को ही बर्खास्त कर सकते थे.

लेकिन, मोदी जी ने ऐसा कुछ नहीं किया क्योंकि उन्हें तो लाशों जुटा कर वोट हासिल करना है..!

*🛑वास्तव में ऐसे पोस्ट और विचार पढ़़कर एक बारगी मन में आता है कि... पता नहीं भगवान ने हम हिंदुओं को ऐसा लोटा जैसा क्यों बनाया है जिन्हें कोई भी बरगला ले जाता है.*

*👉🏽〰️शायद इसका कारण ये है कि... हम हिन्दू अपना कमाने-खाने में इतना मगन रहते हैं कि हमें शासन-प्रशासन की बेसिक जानकारी तक नहीं होती है.*

इसीलिए, कोई भी धूर्त उनकी भावनाओं को भड़का कर उन्हें कुछ भी सिखा पढ़ा देता है.

और, वे अपनी उसी बात का रट हर समय लगाए रहते हैं.

*जबकि, वास्तविकता कुछ और ही होती है.*

*🔥सबसे पहले बंगाल ....*

भारत एक राज्य नहीं है बल्कि ये राज्यों का एक समूह है अर्थात यहाँ फेडरल स्ट्रक्चर है.
जहाँ केंद्र और राज्य सरकार के अधिकार स्पष्ट रूप से परिभाषित हैं.

*यहाँ...* विदेशनीति, पड़ोसी देशों से संबंध, युद्ध, सीमा सुरक्षा, केंद्रीय टैक्स, बैंक, आयात-निर्यात, नागरिकता लेना-देना, रेलवे आदि केंद्र सरकार के कार्य हैं..

*वहीं,* राज्य की सुरक्षा व्यवस्था, कानून अनुपालन, शिक्षा, स्वास्थ्य, लैंड एंड रेवेन्यू राज्य सरकार के अधीन आते हैं.

*अतः...* राज्यों में किसी तरह के उपद्रव की स्थिति में ये पूर्णतया राज्य सरकार का काम होता है कि वो उस उपद्रव को कंट्रोल करे.

*लेकिन,* अगर किसी कारण राज्य सरकार ऐसा करने में खुद को असमर्थ पाती है तो फिर वो पड़ोसी राज्यों अथवा केंद्र से मदद मांगती है.

*फिर,* केंद्र सरकार जरूरत के अनुसार उसे केंद्रीय पुलिस बल (CRPF) , अर्धसैनिक बल (BSF) या फिर सेना उपलब्ध करवाती है.

*⭕यहाँ ध्यान रहे कि...* किसी भी राज्य में केंद्रीय बल राज्य सरकार की अनुशंसा पर ही डिप्लॉय की जा सकती है यूँ ही मनमाने तरीके से नहीं.

और, मांगने के बाद भी केंद्रीय बल सीधे उपद्रव की जगह पर नहीं पहुंच जाते हैं बल्कि इसके लिए एक प्रॉपर प्रोटोकॉल होता है.

उपद्रव की स्थिति में राज्य सरकार के होम सेक्रेटरी अपने संबंधित जिले के SP और कलेक्टर से चर्चा कर अपनी डिमांड बनाते हैं और उसे केंद्र सरकार को भेज देते हैं.

फिर, केंद्र उपर्युक्त सेना या पारा मिलिट्री फोर्स वहाँ भेज देती है.

वो केंद्रीय फोर्स संबंधित राज्य में जाकर वहां के होम सेक्रेटरी को रिपोर्ट करती है.

जहाँ से उन्हें संबंधित जिले में भेज दिया जाता है.

फिर, उस संबंधित जिले के SP और कलेक्टर जरूरत के अनुसार उस फोर्स को संबंधित थाने /ताल्लुक/तहसील में भेज देते हैं... जहाँ उपद्रव हो रहा होता है.

*अब इस परिस्थिति में क्या हो जब कोई राज्य सरकार अपने यहाँ उपद्रव होने से ही इंकार कर दे...???*

ऐसे में तो अगर आप जबरदस्ती केंद्रीय फोर्स भेज भी दोगे तो वो उस संबंधित जिले में जाकर बैरक में पड़ी रहेगी..
क्योंकि, केंद्रीय फोर्स को न तो उपद्रव वाले इलाके की जानकारी होती है और न ही वे उस एरिया के भौगोलिक संरचना से परिचित होते हैं.

*★ इसीलिए, ये निहायत ही बेवकूफाना बात है कि फलाने जगह बिना राज्य सरकार की मर्जी के बिना सेना/CRPF काहे नहीं भेज दिए.*

*⁉️अब यहाँ सवाल उठता है कि... फिर वहाँ की सरकार को ही क्यों नहीं हटाते हुए राष्ट्रपति शासन लगा दिए क्योंकि खांग्रेस तो ऐसा ही करती थी.*

*⭕तो, ध्यान रखें कि...* 1994 में एस.आर बोमई vs भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट निर्देश है कि... *कोई भी चुनी हुई राज्य सरकार को आर्टिकल 356 के तहत बर्खास्त नहीं किया जा सकता है जबतक कि वैसा करना बिल्कुल ""अंतिम उपाय"" न हो.*

और, छिटपुट हिंसा जाहिर सी बात है कि न तो गृहयुद्ध की श्रेणी में आता है और न ही अंतिम उपाय की श्रेणी में.

*इसीलिए, वहाँ चाह कर भी जबरदस्ती राष्ट्रपति शासन नहीं लगाया जा सकता है.*

और, अगर आवेश में आकर आपने ऐसा कर भी दिया तो अगले ही महीने सुप्रीम कोर्ट आपको लताड़ते हुए राज्य सरकार को बहाल कर देगी.

*इसीलिए,* ऐसी स्थिति में ज्यादा से ज्यादा आप राज्य सरकार को उपद्रव कंट्रोल करने ही बोल सकते हैं, उस पर चिंता जता सकते हैं या फिर उन्हें केंद्रीय मदद की पेशकश कर सकते हैं.

*रही बात कि खांग्रेस सरकार ऐसा कर देती तो आप भ्रम में हैं*

*____क्योंकि, आपको याद रखना चाहिए कि* 2002 के बाद अगले 12 साल तक खांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार भी सिर्फ फड़फड़ाने और बयानबाजी के अलावा मोदी जी अथवा गुजरात सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ पाई थी.

*🔥अब रही बात बांग्लादेश की...*

तो, बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र है और अंतरराष्ट्रीय नियम के तहत किसी भी राष्ट्र में जबरदस्ती सेना भेजना उस राष्ट्र के खिलाफ युद्ध माना जाता है.

*इसका मतलब हुआ कि* अगर हम बांग्लादेश में जबरदस्ती अपनी सेना भेज देते हैं तो इसका मतलब हुआ कि हमने बांग्लादेश के खिलाफ ऑफिशियली युद्ध की घोषणा कर दी.

*और चलो.... एक बारगी हमने ऐसा कर भी दिया तो ये बताओ कि* हमारी सेना... बांग्लादेश की सेना से युद्ध करेगी *या बंगलादेश में घुसकर हिंदुओं को बचाएगी ???*

इसीलिए, बिना मदद मांगे हम बांग्लादेश या बर्मा... या फिर, नेपाल तक में अपनी सेना नहीं भेज सकते हैं.

🔘 ज्यादा से ज्यादा... हम वहाँ की वर्तमान सरकार/सत्ताधीश को चेतावनी दे सकते हैं या ऑफर दे सकते हैं कि उपद्रव कंट्रोल करने में यदि आपको हमारी जरूरत हो बोलना..
हम अपनी सेना भेज देंगे.

*इससे ज्यादा हम कुछ नहीं कर सकते हैं.*

इसीलिए, बिना किसी चीज के तकनीकी पहलू को जाने... घर में हल्ला मचाना कहीं से भी बुद्धिमानी नहीं कही जा सकती है.

*भला इससे बड़ी मूर्खता क्या होगी कि.... वहाँ उपद्रव कर रहे हैं मिएँ..*
*और, आप मियों पर गुस्सा दिखाने की जगह गुस्सा दिखा रहे हो अपने नेता पर जो इस परिदृश्य में कहीं है ही नहीं.*

*क्या ये बहुत कुछ वैसा ही नहीं है कि*  सारे अडोस-पड़ोस से पिट कर आने के बाद कोई अपने बीबी-बच्चे को पीटने लगे कि वो काहे कमजोर है ??

*🔴इसीलिए, दुश्मनों के टूलकिट को पहचानें...*
जिसने आपको इतना *भ्रमित* कर रखा है कि आपको सामने दिखता दुश्मन भी नजर नहीं आ रहा है..
*और, आप अपने लोगों को ही दुश्मन मान कर उससे लड़-मरने पर उतारू हैं.*
🙏
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सोमवार, 5 अगस्त 2024

पैसे कमाने के लिए सोशल मीडिया पर छोटे-छोटे बच्चों से अश्लील reels बनवाना जरूरी है क्या ?

 

सोशल मीडिया ने समाज मे कितना जहर घोल रखा है की इस बात का अंदाजा इसी से चल रहा है की मात्र 10 वर्ष के बच्चे - बच्चिया अब गंदे वीडियो के गानों पर रील बना रहे हैं....!!

और आश्चर्य तो तब अजीब हो जाता है की सामने से उसके ही माँ बाप उसका तारीफ करने लगे हैं....!!

मात्र 10 साल से कम उम्र की बच्चे बच्चिया एकदम से कम कपड़े पहने हुवे भोजपुरी गाने पर रील बना रहे हैँ और उनके ही माता पिता उसके वीडियो को शूट कर रहे थे....!!

भोजपुरी गाने तो पहले से ही बदनाम हैं और इसके बोल इतने गंदे होते हैं की क्या बताऊं.... शायद ही अभी के कोई ऐसे गाने हैं जिसे आप अपने माँ बहन या परिवार के साथ देख या सुन पायें....!!

रील बनाने के चक्कर मे लोग ये भूल जा रहे हैँ की ये मेरा भाई है और ये बहन है। ये मेरा बेटा है ये मेरी मां है।... दोनों मिल कर भोजपुरी गाने के तर्ज पर पति पत्नी का रोल कर रहे हैँ और ड्रेस मेकप के ऊपर गंदे-गंदे इसारे करके दिखा रहे हैँ....!!

विचार करें और अपने बच्चे को संस्कार दें...!!

रील बनाना कोई गलत मैं नही मानता... अवश्य बनाये मगर उसमे भी मर्यादा होती हैं उनके ऊपर बनायें...!!

इस विषय पर आप सब क्या कहना चाहेंगे... कुछ लिखिए ताकि कुछ और लोगों को इस परिस्थिति से निकलने मे सहायता मिल पाये...!!

भारतीय इतिहास की कुछ दुर्लभ तस्वीरें :

 

भारतीय इतिहास की कुछ दुर्लभ तस्वीरें :

  1. मिस वर्ल्ड 1994 की विजेता ऐश्वर्या राय।

2. पोस्टर गर्ल के रूप में ज़ीनत अमान द्वारा एयर इंडिया का विज्ञापन।

3. पीएम नरेंद्र मोदी।

4. महारानी गायत्री देवी, वोग पत्रिका द्वारा सभी समय की सबसे सुंदर भारतीय महिला।

5. तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता।

6. टाटा एयरलाइंस (अब एयर इंडिया) की पहली उड़ान।

7. लाल बहादुर शास्त्री फ्लाइट में रहने के दौरान और यहां तक ​​कि एक पोट्रेट पेंटिंग के लिए भी काम करते हुए ऑफिस का काम करते थे।

8. 1976 में आपातकाल के दौरान दिल्ली में नसबंदी क्लिनिक।

9. पाकिस्तान भारत विभाजन 1947।

10. अनिश्चित भविष्य केबारे में सोचता, एक युवा शरणार्थी पुराने किले (शरणार्थी शिविर में तब्दील) के बुर्ज पर बैठा हुआ ।

11. 1991 में, मोदी जी, आडवाणी को गांधीनगर से नामांकन दाखिल करने में मदद करते हुए और अमित शाह पीछे से खड़े हो कर ये सब देखते हुए ।

12. लंच ब्रेक के दौरान भारत की पहली कैबिनेट ...

13. गांधी जी की एक दुर्लभ तस्वीर अपने वजन की जांच करते हुए ।

14. डॉ। राजेंद्र प्रसाद, 26 जनवरी 1950 को पहली बार राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने वाले भारत के पहले राष्ट्रपति।

15. माता वैष्णो देवी, जम्मू की पवित्र गुफा में इंदिरा गांधी।

16. डॉ। विक्रम साराभाई के साथ युवा डॉ। कलाम।

17. 1974 में तत्कालीन छात्र नेता नीतीश कुमार के साथ जेपी।

18. 15 में से 11 महिलाएं जिन्होंने संविधान सभा के सदस्यों के रूप में भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने में मदद की।

19. वर्ष 1978 में मोरारजी देसाई ने उच्च मूल्यवर्ग के नोटों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। के नोट रु। 1000, 5,000 और 10,000।

20. भारत का पहला रॉकेट एक साइकिल पर ले जाया जा रहा है।

21. गांधी जी के अंतिम संस्कार को देखने के लिए एक व्यक्ति बिजली/टेलीफोन के खंभे पर चढ़ गया।

22. लाल बहादुर शास्त्री ने यह कार ऋण पर खरीदी थी, आप इसे दिल्ली में उनके स्मारक पर देख सकते हैं।

23. राजेश खन्ना ने सोनिया गांधी को नई दिल्ली से अपना वोट डालने में मदद की, जहां वह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे थे।

24. अंडमान सेलुलर जेल में वी डी सावरकर का कक्ष और कमरा।

25. रुपये का मुद्रा नोट। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बैंक ऑफ इंडिपेंडेंस द्वारा जारी किए गए 1,00,000।

26. भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ। एपीजे अब्दुल कलाम, राष्ट्रपति भवन में ।

27. 1953 में, दिल्ली में प्रधानमंत्री की XI और राष्ट्रपति की XI टीमों के बीच एक क्रिकेट मैच हुआ था। पं नेहरू को अपने मौके का इंतजार था।

28. छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर काम करते हुए बाल ठाकरे, पीछे आप धीरू भाई अम्बानी भी देख सकते हैं।

29. आईआईटी कानपुर में नारायण मूर्ति, 1969।

30. रवींद्रनाथ टैगोर का स्वागत हेलेन केलर द्वारा किया जाता है।

धन्यवाद।

चन्द औरतों की इन हरकतों के कारण हो रहे समस्त नारी जाति के अपमान को रोकने के लिए भी कोई नारी संरक्षण संस्था मुहिम छेड़ेगी..

 

फेसबुक और इंस्टाग्राम पर चल रही इन reels को देखकर अहसास हो रहा है कि आखिर क्यों हमारे बजुर्गों ने औरत को पर्दे में रखा था....

अरे ये माँस के लोथड़े हैं जो पुरुषों को कम और स्त्री को थोड़े ज्यादा दे दिए गए हैं।

नीचता कि इतनी हद कि तुम चंद likes और views पाने के लिए कभी वक्षस्थलों और नितंबों को हिला रही हो तो कभी जांघों को खोलकर अपने जननांग की तरफ भद्दा इशारा कर रही हो....

तुम्हारी इन reels को देखकर कुछ युवा उन reels को तुम्हारे व्यक्तित्व के साथ जोड़ कर देखने लगते हैं जिसके चलते कई बार तुम्हारे साथ दुराचार हो जाता है ।

और फिर किसी टेलीविजन चैनल पर उस मुद्दे पर चर्चा में कुछ तथाकथित नारी संरक्षण संस्थाएं समस्त पुरुष जाति की मानसिकता और चरित्र को लेकर उल जलूल शब्दावली का इस्तेमाल करती हैं तो यकीन मानिए हम अपनी ही लाड़ी और बेटी के सामने खुद को उस गुनाह के लिए शर्मिंदा महसूस करते हैं जो हमने किया ही नहीं......

चलो ठीक है...आपने कैसे कपड़े पहनने हैं हमें इससे कोई वास्ता नहीं लेकिन अमार्धनग्न वस्त्र आप अपने वक्षस्थलों और नितंबों को हिला-हिला कर reels डालोगे तो हमें आपत्ति है क्योंकि यदा-कदा हमारा फोन हमारे बच्चों के पास भी होता है और आपकी इन कामुक reels से उनके दिमाग पर नकरात्मक प्रभाव पड़ सकता है .....

मुझे उम्मीद नहीं है कि चन्द औरतों की इन हरकतों के कारण हो रहे समस्त नारी जाति के अपमान को रोकने के लिए भी कोई नारी संरक्षण संस्था मुहिम छेड़ेगी..

जाकूँ तो नन्द कौ पूत लगौ है

*जाकूँ तो नन्द कौ पूत लगौ है*
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एक गोपी ब्याह कर बरसाने आयी। 
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अपने घर-परिवार के संस्कार और परंपरा बताते हुए उसकी सास यह कहना न भूली कि वह अकेली कहीं न जाये
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क्योकि यहाँ नन्दगाँव के नन्दजी का बेटा घूमता रहता है और छोटी सी उम्र में ही उसे "इन्द्रजाल" का ऐसा ज्ञान है कि जो उसे देख ले, सुध-बुध खो बैठे सो तू विशेष सावधानी रखना।
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गोपी बोली - " मैया ! मैं उसे पहिचानूंगी कैसे" ? 
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सास ने कहा कि सिर पर मोर मुकुट पहिनता है, घुंघराली अलकावलियाँ हैं, कानों में कुन्डल हैं, रक्त- चंदन का तिलक और मुख पर चंदन का ही श्रंगार उसकी मैया करती है। 
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बड़े-बड़े सम्मोहित करने वाले नेत्रों में काजल की शोभ अनुपम है, माथे के बायीं ओर बुरी नजर से बचने के लिये डिठौना लगा होता है, 
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काँधे तक फ़ैली उसकी केशराशि पवन का साथ पाकर जब फ़हराती है तो वह अपने सुन्दर कोमल हाथों से उसे ठीक करते हैं। 
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गले में एक स्वर्ण-हार और एक मोतियों का हार है परन्तु उसे गहवर-वन के पुष्प सर्वाधिक प्रिय हैं 

सो उसके मित्रगण या यहाँ की गोपियाँ नित्य ही उसके लिये एक पुष्प-हार का सृजन करती है और वह उसे धारण कराती है...
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उस पुष्प-हार में बड़े ही सुगंधित दिव्य फ़ूलों का समावेश है जो उस छलिये के आने की पूर्व-सूचना देने में सक्षम है। 
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अनावृत वक्ष पर वह पटुका डाले रहता है। भुज- दंडों पर भी चंदन से बनी सुन्दर कलाकृतियाँ शोभायमान रहती हैं। 
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हाथों में मोटे-मोटेचाँदी के कड़ूले और कमर पर पीतांबर के साथ स्वर्ण करधनी शोभा पाती है। 
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हाथ में बंसी लिये बड़ी ही अलमस्त चाल से चलता है, कभी किसी गोपी को छेड़े तो कभी लता-पताओं से बातें भी करता है। 
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पक्षी भी उसे मुग्ध से देखते हैं और मोर तो टकटकी लगाकर इस अनुपम "सांवरे सौंन्दर्य" का रसपान करते हैं। 
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इससे अधिक मेरी भी स्मृति नहीं क्योकि जो उसे देख ले, उसे फ़िर उसकी वेश-भूषा की भी स्मृति रह पाये, यह संभव ही नहीं। 
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देखने वाले को तो केवल उसका मुख और उसके नेत्र ही स्मृति में रहते हैं और उन नेत्रों में ही मानो समस्त अस्तित्व डूबा जाता है। तुझे स्वस्थ, सानन्द रहना है तो सावधान रहियो। 
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तू सावधान रहेगी तब भी आशंका तो बनी ही रहेगी क्योंकि बरसाने में कुछ हो और वह न जाने, यह भी तो संभव नहीं। 
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वह स्वयं कहाँ मानने वाला है; न जाने उसे "बरसाने" वालों से ऐसी छेड़-छाड़ में क्या आनन्द आता है।
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सास न चेताती तो संभवत: नयी ब्याहता गोपी के मन में इतनी तीव्रता से उस "सांवरे" को देखने की इच्छा भी न जगती। 
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सास नहीं जानती कि उसने अपनी पुत्र-वधू को "सांवरे" से बचाने के स्थान पर"सांवरे" के साथ ही फ़ँसा दिया है। 
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अब तो एक ही उत्सुकता, लगन कि कब उसे देखूँ। 
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कोई भी पास- पड़ोस का कार्य हो तो वधू कहे कि आप बैठें, मैं करती हूँ। 
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यही आशा कि कब "घर" से निकलूँ और कब"वह" मिलें। कब "साध" पूरी होवे। 
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लक्ष्य के अतिरिक्त जब अन्य कुछ भी स्मृति में न रह जाये तो दैव और प्रकृति सभी आपके साथ हो जाते हैं।
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सारी परिस्थितियाँ आपके अनुकूल होने लगतीं हैं; अनायास ही "अघटन" घटने लगता है। तो भला कैसे न घटता ? 
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एक दिन "सांकरी खोर" से गुजर रही थी गोपी ।
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सांकरी खोर, पर्वत-श्रंखला के मध्य ऐसा स्थान है, जहाँ से एक ही व्यक्ति एक बार में गुजर सकता है। 
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सर पर दही की मटकी, मुख पर घूँघट का आवरण और झीने आवरण के भीतर से चमकते दो चंचल नेत्र । चंचल नेत्र ? 
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अतिशय सौंन्दर्य को देखने की अभिलाषा में नेत्र "चंचल" हो गये हैं, उन्हें तो अब वही देखना है जिसके बारे में सुना है कि उसे "नहीं" देखना। 
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नेत्र अब सब समय उसी को खोज रहे हैं, कई बार तो इनकी चंचलता पर "लाज" आ जाती है।
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गोपी सांकरी खोर के मध्य ही पहुँची थी कि सम्मोहित करने वाला वेणु-नाद उसके कानों में पड़ने लगा और कानों में ही नहीं वरन कर्ण-पूटों के माध्यम से ह्रदय में प्रवेश करने लगा। 
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वह रुकी और चलायमान नेत्रों ने अपना कार्य आरंभ किया कि कहाँ खोजें और क्षणार्ध में ही "सांकरी खोर" के दूसरे छोर पर, जहाँ से गोपी को जाना था, उसकी छवि प्रकट होने लगी।
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सामने से पड़ते सूर्य के प्रकाश के कारण वह स्पष्ट तो नहीं देख पा रही परन्तु अपनी सास की चेतावनी मस्तिष्क में कौंध गयी। 
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ह्रदय में संग्राम छिड़ गया। आत्मा-ह्रदय-नेत्र कह रहे हैं कि देखना है और बुद्धि कह रही है कि नहीं, सास ने मना किया है।
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यहाँ तो संग्राम छिड़ा है, उधर वह "जादूगर" क्रमश: पास आता जा रहा है। हाय रे ! कहाँ भागूँ ? 
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वहीं से जाना है और वहीं से "वह" आ रहा है। "वह" जब भी पकड़ता है तो "सांकरी खोर" में ही पकड़ता है, .
जब आप "अकेले" हों, उसे तब ही "पकड़ने" में आनन्द आता है। क्यों ? 
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क्योंकि यह संबध स्थापित ही तब होगा जब "कोई दूसरा" न हो। 
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उस नादान को नहीं मालूम कि "जहाँ जाना" है, वह "वहीं" तो है; वही तो लक्ष्य है, तुम जानो या न जानो, मानो या न मानो। 
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हाय ! कैसा सौंन्दर्य ! कैसे नेत्र ! कैसा दिव्य मुखमंडल ! वह "सांवरा" चुंबक की तरह अपनी ओर बलात ही खींच रहा है, चित्त अब वश में नहीं,
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सारी इन्द्रियों ने मानो विद्रोह कर दिया है। सब इस देह को छोड़कर उसमें समा जाना चाहती हैं। हे प्रभु !
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सास उचित ही कहतीं थीं। सत्य कहूँ तो कह ही न सकीं; इनके "आकर्षण" की क्षमता का वर्णन कहाँ संभव है। हे जगदीश ! अब तुम ही मुझे बचाओ !
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आज अच्छी फ़ँसी ! कन्हैया अब बहुत पास आ गये। जब कोई उपाय न रहा तो गोपी ने मुँह घुमाकर पर्वत-श्रंखला की ओर कर लिया। 
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*जब वह स्वयं ही सब कुछ देने को उतारु हों तो कोई बाधा भला रह सकती है।*
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गोपी छुपने की, न देखने की, बचने की निरर्थक चेष्टा कर रही है और वह मुस्करा रहे हैं। अब वे एकदम पास आकर खड़े हैं।
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गोपी घूँघट में से देख रही है कि वह इधर-उधर घूमकर उसका मुखड़ा देखना चाहते हैं और बात करना चाहते हैं।
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देह जड़ हो गयी है; सामने जो आवरण में से दिख रहा है, वह लौकिक नहीं है। 
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ज्ञान स्वत: ही प्रकट हो रहा हैं प्रेम का स्त्रोत जो न जाने कहाँ दबा पड़ा था, आज फ़ूट पड़ा है। 
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गोपी की आत्मा उस रस में स्नान कर रही है, पवित्र हो रही है, परम चेतन से जो मिलना है। सौन्दर्य दैहिक न होकर अलौकिक हो गया है।
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आत्मा में परमात्मा से मिलन की अभीप्सा जाग उठी है।
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"चौं री सखी ! तू तो बरसाने में कछु नयी सी लग रही है। तोकूँ पहलै कबहुँ नाँय देखो !" 
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यह कहते हुए नन्दनन्दन ने गोपी के कर का स्पर्श कर दिया।
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अचकचा गयी गोपी और उसने सिर पर रखी "मटकी" झट से हाथों से फ़ेंक दी , "मटकी" फ़ूट गयी [ देह संबध नष्ट हो गया], दही बिखर गया जिसे बड़े परिश्रम से "जमाया" था, अब वह किसी कार्य का नहीं रह गया था। दोनों हाथों से उसने अपने मुख को ढक लिया।
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वह कनखियों से देख रही है कि नन्दनन्दन मुस्करा रहे हैं। इतनी क्षमता भी नहीं बची कि भाग पाये, उन्होंने रास्ता ही तो रोक लिया है, 
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अब अन्य कोई मार्ग बचा ही नहीं है कि उनसे बिना मिले, बिना दृष्टि मिलाये, बिना अनुमति माँगे कहीं जाया जा सके।
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देर हो रही है और यह मानते नहीं, कुछ देर मौन खड़ी रहती हूँ, जब न बोलूँगी तो अपने-आप चले जावेंगे।
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कुछ देर मौन पसरा रहा। प्रतीत होता है कि वह किशोर जा चुका है, अच्छा, अब नेत्र खोलूँ। 
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अचानक ही खिलखिलाकर हँसने का शब्द हुआ और गोपी ने चौंककर, मुड़कर, नेत्र खोल सामने देखा। 
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अब जो देखा तो नेत्रों का होना सफ़ल हो गया ! नेत्र उस रस को पी रहे हैं और आत्मा तृप्त हो रही है ! देह तो जड़ हो ही चुकी है। 
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बूँद, सागर को पीना चाहती है, सागर बूँद को अपना रहा है ! रास ! नृत्य ! गोपी बेसुध हो रही है; नहीं जानती, वह कहाँ है ? है भी कि नहीं ! है कौन ?
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सुध आयी तो देखा कि घर में शय्या पर है और चारों ओर से उसके परिवारी जन और गोपियाँ घेरे हुए हैं।
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उसके सिर पर पानी के छींटे डाल रहे हैं। कोई बोली कि - "अम्मा ! तुमने नयी-नवेली बहू अकेली चौं भेजी, मोय तो लगे कि जाये भूत लग गयो है।"
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इतने में ही उसने सुना कि सास कह रही है कि - " मोय पतो है, जाये भूत-वूत कछु नाँय लगे, जाकूँ तो नन्द कौ पूत लगौ है।" उसने फ़िर आँखें बंद कर ली जिसने उसे देख लिया, वह फ़िर अब क्या देखे और क्यों ?

*जय जय*  

*🌹🌻श्री कृष्णं वन्दे 🌻🌹*

खोयी हुई,या गायब की हुई इतिहास की एक झलक

*शर्त ये है कि इसको पढ़ कर अपने ग्रुप में फारवर्ड जरूर करें*

 *खोयी हुई,या गायब की हुई इतिहास की एक झलक*🤔😮🤔
*622 ई से लेकर 634 ई तक मात्र 12 वर्ष में अरब के सभी मूर्तिपूजकों को 🐖🐖🐖 ने तलवार से जबरदस्ती मुसलमान बना दिया! (मक्का में महादेव काबळेश्वर (काबा) को छोड कर!)*

*634 ईस्वी से लेकर 651 तक, यानी मात्र 16 वर्ष में सभी पारसियों को तलवार की नोंक पर जबरदस्ती मुसलमान बना दिया!*

*640 में मिस्र में पहली बार इस्लाम ने पांँव रखे, और देखते ही देखते मात्र 15 वर्ष में, 655 तक इजिप्ट के लगभग सभी लोग जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*नार्थ अफ्रीकन देश जैसे अल्जीरिया, ट्यूनीशिया, मोरक्को आदि देशों को 640 से 711 ई तक पूर्ण रूप से इस्लाम धर्म में जबरदस्ती बदल दिया गया!*

*3 देशों का सम्पूर्ण सुख चैन जबरदस्ती छीन लेने में मुसलमानो ने मात्र 71 वर्ष लगाए!*

*711 ईस्वी में स्पेन पर आक्रमण हुआ, 730 ईस्वी तक स्पेन की 70% आबादी मुसलमान थी!*

*मात्र 19 वर्ष में तुर्क थोड़े से वीर निकले, तुर्कों के विरुद्ध जिहाद 651 ईस्वी में आरंभ हुआ, और 751 ईस्वी तक सारे तुर्क जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*इण्डोनेशिया के विरुद्ध जिहाद मात्र 40 वर्ष में पूरा हुआ! सन 1260 में मुसलमानों ने इण्डोनेशिया में मारकाट मचाई, और 1300 ईस्वी तक सारे इण्डोनेशियाई जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान, जॉर्डन आदि देशों को 634 से 650 के बीच जबरदस्ती मुसलमान बना दिये गए!*

*सीरिया की कहानी तो और दर्दनाक है! मुसलमानों ने इसाई सैनिकों के आगे अपनी महिलाओ को कर दिया! मुसलमान महिलाये गयीं इसाइयों के पास, कि मुसलमानों से हमारी रक्षा करो! बेचारे मूर्ख इसाइयों ने इन धूर्तो की बातों में आकर उन्हें शरण दे दी! फिर क्या था, सारी "सूर्पनखा" के रूप में आकर, सबने मिलकर रातों रात सभी सैनिकों को हलाल करवा दिया!*

*अब आप भारत की स्थिति देखिये!*

*उसके बाद 700 ईस्वी में भारत के विरुद्ध जिहाद आरंभ हुआ! वह अब तक चल रहा है!*

*जिस समय आक्रमणकारी ईरान तक पहुँचकर अपना बड़ा साम्राज्य स्थापित कर चुके थे, उस समय उनकी हिम्मत नहीं थी कि भारत के राजपूत साम्राज्य की ओर आंँख उठाकर भी देख सकें!*

*636 ईस्वी में खलीफा ने भारत पर पहला हमला बोला! एक भी आक्रान्ता जीवित वापस नहीं जा पाया!*

*कुछ वर्ष तक तो मुस्लिम आक्रान्ताओं की हिम्मत तक नहीं हुई भारत की ओर मुँह करके सोया भी जाए! लेकिन कुछ ही वर्षो में गिद्धों ने अपनी जात दिखा ही दी! दुबारा आक्रमण हुआ! इस समय खलीफा की गद्दी पर उस्मान आ चुका था! उसने हाकिम नाम के सेनापति के साथ विशाल इस्लामी टिड्डिदल भारत भेजा!*

*सेना का पूर्णतः सफाया हो गया, और सेनापति हाकिम बन्दी बना लिया गया! हाकिम को भारतीय राजपूतों ने मार भगाया और बड़ा बुरा हाल करके वापस अरब भेजा, जिससे उनकी सेना की दुर्गति का हाल, उस्मान तक पहुंँच जाए!*

*यह सिलसिला लगभग 700 ईस्वी तक चलता रहा! जितने भी मुसलमानों ने भारत की तरफ मुँह किया, राजपूत शासकों ने उनका सिर कन्धे से नीचे उतार दिया!*

*उसके बाद भी भारत के वीर जवानों ने पराजय नही मानी! जब 7 वीं सदी इस्लाम की आरंभ हुई, जिस समय अरब से लेकर अफ्रीका, ईरान, यूरोप, सीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया, तुर्की यह बड़े बड़े देश जब मुसलमान बन गए, भारत में महाराणा प्रताप के पूर्वज बप्पा रावल का जन्म हो चुका था!*

*वे अद्भुत योद्धा थे, इस्लाम के पञ्जे में जकड़ कर अफगानिस्तान तक से मुसलमानों को उस वीर ने मार भगाया! केवल यही नहीं, वह लड़ते लड़ते खलीफा की गद्दी तक जा पहुंँचे! जहाँ स्वयं खलीफा को अपनी प्राणों की भिक्षा माँगनी पड़ी!*

*उसके बाद भी यह सिलसिला रुका नहीं! नागभट्ट प्रतिहार द्वितीय जैसे योद्धा भारत को मिले! जिन्होंने अपने पूरे जीवन में राजपूती धर्म का पालन करते हुए, पूरे भारत की न केवल रक्षा की, बल्कि हमारी शक्ति का डङ्का विश्व में बजाए रखा!*

*पहले बप्पा रावल ने पुरवार किया था, कि अरब अपराजित नहीं है! लेकिन 836 ई के समय भारत में वह हुआ, कि जिससे विश्वविजेता मुसलमान थर्रा गए!*

*सम्राट मिहिरभोज प्रतिहार ने मुसलमानों को केवल 5 गुफाओं तक सीमित कर दिया! यह वही समय था, जिस समय मुसलमान किसी युद्ध में केवल विजय हासिल करते थे, और वहाँ की प्रजा को मुसलमान बना देते!*

*भारत वीर राजपूत मिहिरभोज ने इन आक्रांताओ को अरब तक थर्रा दिया!*

*पृथ्वीराज चौहान तक इस्लाम के उत्कर्ष के 400 वर्ष बाद तक राजपूतों ने इस्लाम नाम की बीमारी भारत को नहीं लगने दी! उस युद्ध काल में भी भारत की अर्थव्यवस्था अपने उत्कृष्ट स्थान पर थी! उसके बाद मुसलमान विजयी भी हुए, लेकिन राजपूतों ने सत्ता गंवाकर भी पराजय नही मानी, एक दिन भी वे चैन से नहीं बैठे!*

*अन्तिम वीर दुर्गादास जी राठौड़ ने दिल्ली को झुकाकर, जोधपुर का किला मुगलों के हाथो ने निकाल कर हिन्दू धर्म की गरिमा, को चार चाँद लगा दिए!*

*किसी भी देश को मुसलमान बनाने में मुसलमानों ने 20 वर्ष नहीं लिए, और भारत में 800 वर्ष राज करने के बाद भी मेवाड़ के शेर महाराणा राजसिंह ने अपने घोड़े पर भी इस्लाम की मुहर नहीं लगने दी!*

*महाराणा प्रताप, दुर्गादास राठौड़, मिहिरभोज, रानी दुर्गावती, अपनी मातृभूमि के लिए जान पर खेल गए!*

*एक समय ऐसा आ गया था, लड़ते लड़ते राजपूत केवल 2% पर आकर ठहर गए! एक बार पूरा विश्व देखें, और आज अपना वर्तमान देखें! जिन मुसलमानों ने 20 वर्ष में विश्व की आधी जनसंख्या को मुसलमान बना दिया, वह भारत में केवल पाकिस्तान बाङ्ग्लादेश तक सिमट कर ही क्यों रह गए?*

*राजा भोज, विक्रमादित्य, नागभट्ट प्रथम और नागभट्ट द्वितीय, चन्द्रगुप्त मौर्य, बिन्दुसार, समुद्रगुप्त, स्कन्द गुप्त, छत्रसाल बुन्देला, आल्हा उदल, राजा भाटी, भूपत भाटी, चाचादेव भाटी, सिद्ध श्री देवराज भाटी, कानड़ देव चौहान, वीरमदेव चौहान, हठी हम्मीर देव चौहान, विग्रह राज चौहान, मालदेव सिंह राठौड़, विजय राव लाँझा भाटी, भोजदेव भाटी, चूहड़ विजयराव भाटी, बलराज भाटी, घड़सी, रतनसिंह, राणा हमीर सिंह और अमर सिंह, अमर सिंह राठौड़, दुर्गादास राठौड़, जसवन्त सिंह राठौड़, मिर्जा राजा जयसिंह, राजा जयचंद, भीमदेव सोलङ्की, सिद्ध श्री राजा जय सिंह सोलङ्की, पुलकेशिन द्वितीय सोलङ्की, रानी दुर्गावती, रानी कर्णावती, राजकुमारी रतनबाई, रानी रुद्रा देवी, हाड़ी रानी, रानी पद्मावती, जैसी अनेको रानियों ने लड़ते-लड़ते अपने राज्य की रक्षा हेतु अपने प्राण न्योछावर कर दिए!*

*अन्य योद्धा तोगा जी वीरवर कल्लाजी जयमल जी जेता कुपा, गोरा बादल राणा रतन सिंह, पजबन राय जी कच्छावा, मोहन सिंह मँढाड़, राजा पोरस, हर्षवर्धन बेस, सुहेलदेव बेस, राव शेखाजी, राव चन्द्रसेन जी दोड़, राव चन्द्र सिंह जी राठौड़, कृष्ण कुमार सोलङ्की, ललितादित्य मुक्तापीड़, जनरल जोरावर सिंह कालुवारिया, धीर सिंह पुण्डीर, बल्लू जी चम्पावत, भीष्म रावत चुण्डा जी, रामसाह सिंह तोमर और उनका वंश, झाला राजा मान, महाराजा अनङ्गपाल सिंह तोमर, स्वतंत्रता सेनानी राव बख्तावर सिंह, अमझेरा वजीर सिंह पठानिया, राव राजा राम बक्श सिंह, व्हाट ठाकुर कुशाल सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, ठाकुर महावीर सिंह, राव बेनी माधव सिंह, डूङ्गजी, भुरजी, बलजी, जवाहर जी, छत्रपति शिवाजी!*

*ऐसे हिन्दू योद्धाओं का संदर्भ हमें हमारे इतिहास में तत्कालीन नेहरू-गाँधी सरकार के शासन काल में कभी नहीं पढ़ाया गया! पढ़ाया ये गया, कि अकबर महान बादशाह था! फिर हुमायूँ, बाबर, औरङ्गजेब, ताजमहल, कुतुब मीनार, चारमीनार आदि के बारे में ही पढ़ाया गया!*

*अगर हिन्दू सङ्गठित नहीं रहते, तो आज ये देश भी पूरी तरह सीरिया और अन्य देशों की तरह पूर्णतया मुस्लिम देश बन चुका होता!*

*ये सुंदर विश्लेषण जानकारी हिंदू समाज तक पहुंचना अनिवार्य है! हर वर्ग और समाज में वीरों की गाथाओं को बताकर उन्हें गर्व की अनुभूति करानी चाहिए!*
  

*कम से कम पांच ग्रुप मैं जरूर भेजे*

*कुछ लोग नही भेजेंगे*😡😡😡😡

*लेकिन मुझे भरोसा है,आप जरूर भेजेंगे*👍.......🇳🇪

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