माखन के औषधीय प्रयोग
बच्चों के ब्रम्हचर्य की रक्षा के लिए सबसे उत्तम है मक्खन।आजकल लोग बच्चों को च्यवनप्राश खिलाते है। च्यवनप्राश का सेवन तो च्यवन ऋषि ने वृद्धावस्था में पुनः यौवन प्राप्त कर बच्चें पैदा करने के लिए किया था।बच्चों को समय से पहले यौवन नहीं देना है।वो तो आज का दूषित माहौल पहले से ही कर रहा है।आज ज़रुरत है इनके ब्रम्हचर्य को बचाने की।
मक्खन के लिए देशी गाय के दूध की मलाई इकट्ठा कर उसे दही लगा दीजिये।अब उस दही को मथे ताकि उसमे प्राण शक्ति आ जाये। इसे मथते समय बाल कृष्ण का ध्यान करे तो और भी उत्तम है।
गाय के दूध से निकाला हुआ मक्खन हितकारी, वृष्य, वर्ण को उत्तम करने वाला, बलकारी, अग्नि प्रदीपक, ग्राही और वातपित्त, रक्त विकार, क्षय, बवासीर, लकवा तथा खाँसी को नष्ट करता है।भैंस के दूध का मक्खन वात तथा कफ कारक, भारी और दाह, पित्त तथा थकावट को दूर करने वाला है और मेद तथा वीर्य बढ़ाने वाला होता है।
मक्खन बालक और वृद्ध के लिए हितकारी है। बच्चों के लिए तो मक्खन अमृत की तरह है।ताजा मक्खन मधुर, ग्राही, शीतल, हलका, नेत्रों को हितकारी, रक्त पित्त नाशक, तनिक कसैला और तनिक अम्ल रसयुक्त (खट्टा) होता है।मक्खन का उपयोग किसी खाद्य पदार्थ पर लगाकर खाने में किया जाता है या आयुर्वेदिक औषधियों में वाजीकारक और उष्ण प्रकृति की औषधियों के विकल्प के रूप में किया जाता है।
ताजे मक्खन के शिशु के शरीर पर मालिश करके आधा घण्टा सुबह की धूप में लिटाने से उसे सूखा रोग नहीं होता।
मुख पर रोजाना मक्खन लगाकर मालिश करने और आधे घण्टे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालने से चेहरे की त्वचा का रंग साफ होता है, फुंसी मुँहासे या झाइयाँ हो गई हों तो ठीक हो जाती हैं।
दुबले बच्चों, युवक-युवतियों को प्रतिदिन मक्खन-मिश्री 1-1 चम्मच या अपनी पाचन शक्ति के अनुसार सुबह खाली पेट खाना चाहिए। देर का रखा हुआ, खट्टा और दुर्गन्धित मक्खन सेवन योग्य नहीं होता।
बच्चों के ब्रम्हचर्य की रक्षा के लिए सबसे उत्तम है मक्खन।आजकल लोग बच्चों को च्यवनप्राश खिलाते है। च्यवनप्राश का सेवन तो च्यवन ऋषि ने वृद्धावस्था में पुनः यौवन प्राप्त कर बच्चें पैदा करने के लिए किया था।बच्चों को समय से पहले यौवन नहीं देना है।वो तो आज का दूषित माहौल पहले से ही कर रहा है।आज ज़रुरत है इनके ब्रम्हचर्य को बचाने की।
मक्खन के लिए देशी गाय के दूध की मलाई इकट्ठा कर उसे दही लगा दीजिये।अब उस दही को मथे ताकि उसमे प्राण शक्ति आ जाये। इसे मथते समय बाल कृष्ण का ध्यान करे तो और भी उत्तम है।
गाय के दूध से निकाला हुआ मक्खन हितकारी, वृष्य, वर्ण को उत्तम करने वाला, बलकारी, अग्नि प्रदीपक, ग्राही और वातपित्त, रक्त विकार, क्षय, बवासीर, लकवा तथा खाँसी को नष्ट करता है।भैंस के दूध का मक्खन वात तथा कफ कारक, भारी और दाह, पित्त तथा थकावट को दूर करने वाला है और मेद तथा वीर्य बढ़ाने वाला होता है।
मक्खन बालक और वृद्ध के लिए हितकारी है। बच्चों के लिए तो मक्खन अमृत की तरह है।ताजा मक्खन मधुर, ग्राही, शीतल, हलका, नेत्रों को हितकारी, रक्त पित्त नाशक, तनिक कसैला और तनिक अम्ल रसयुक्त (खट्टा) होता है।मक्खन का उपयोग किसी खाद्य पदार्थ पर लगाकर खाने में किया जाता है या आयुर्वेदिक औषधियों में वाजीकारक और उष्ण प्रकृति की औषधियों के विकल्प के रूप में किया जाता है।
ताजे मक्खन के शिशु के शरीर पर मालिश करके आधा घण्टा सुबह की धूप में लिटाने से उसे सूखा रोग नहीं होता।
मुख पर रोजाना मक्खन लगाकर मालिश करने और आधे घण्टे बाद कुनकुने गर्म पानी से धो डालने से चेहरे की त्वचा का रंग साफ होता है, फुंसी मुँहासे या झाइयाँ हो गई हों तो ठीक हो जाती हैं।
दुबले बच्चों, युवक-युवतियों को प्रतिदिन मक्खन-मिश्री 1-1 चम्मच या अपनी पाचन शक्ति के अनुसार सुबह खाली पेट खाना चाहिए। देर का रखा हुआ, खट्टा और दुर्गन्धित मक्खन सेवन योग्य नहीं होता।
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