सृष्टि के आरम्भ का स्क्रीनशॉट संलग्न है ।
इसमें दिन=२२, मास=१२ और ईस्वी = −1955929993 है । ईस्वी पर ध्यान न दें,अहर्गण = −714402296627 अर्थात् वर्तमान कलियुग−आरम्भ से 714402296627 दिन पहले वर्तमान सृष्टि का आरम्भ था,रविवार के दिन ।
संलग्न स्क्रीनशाटॅ में उससे दो दिन पहले से आरम्भ है जिस कारण अहर्गण दो दिन पहले ⋅⋅⋅२७ के बदले ⋅⋅⋅२९ है क्योंकि अहर्गण ऋणात्मक है ।
सामान्य सनातनी वर्ष में ३६० तिथियाँ एवं मलमास (अधिमास) वाले सनातनी वर्ष में ३९० तिथियाँ होती हैं ।
जिस वर्ष में क्षयमास होता है उसमें दो अधिमास होते हैं जिस कारण उस वर्ष में भी ३९० तिथियाँ होती हैं ।
हर सनातनी वर्ष का आरम्भ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही होता है जिसकी १५वीं तिथि को पूर्णमासी होता है जब चन्द्रमा चित्रा में अथवा बगल में होते हैं और अगले दिन वैशाख का आरम्भ होता है । इस नियम का अनुसरण करते हुए “कुण्डली−सॉफ्टवेयर” के पञ्चाङ्ग बटन द्वारा एवं पृथक “अधिमास” सॉफ्टवेयर की उसमें सहायता लेते हुए समूची सृष्टि का विस्तृत पञ्चाङ्ग बनाया जा सकता है ।
आजकल पण्डितों की परिपाटी है कि जिस वर्ष में क्षयमास होता है उसमें दो अधिमास होने के कारण क्षयमास और एक अधिमास का लोप मानकर केवल एक अधिमास को पञ्चाङ्ग में दिखाया जाता है किन्तु यह शास्त्रविरुद्ध है क्योंकि ऐसा करने पर क्षयमास और उस तथाकथित लुप्त मलमास में सामान्य धार्मिक मास वाले धर्मकर्म करने पड़ेंगे जो अनुचित है । ऐसा योग बहुत दिनों पर आता है,लाहिड़ी जी की पुस्तक Advance Ephemeris के पृष्ठ ९२ में १९१३−२०२६ ईस्वी के ११४ वर्षों के मलमासों की सूची है जिसमें उनके दृग्ग्णितीय सारिणी की मलमास−सूची है किन्तु नीचे पादटिप्पणी में उसी सारिणी को सूर्यसिद्धान्तीय बनाने के सुझाव हैं । यह सारिणी बंगाल की है,अतः दूरस्थ स्थलों के लिए गलत हो जायगी । बंगाल के लिए भी उनकी सारिणी की जाँच “अधिमास” सॉफ्टवेयर द्वारा कर लें ।
एक सौरवर्ष (सूर्यसिद्धान्तीय वर्ष) में 365.25875648148148148148148148148 सावनदिन होते हैं जिसका प्रमाण यह है कि सूर्यसिद्धान्त के अनुसार एक महायुग में 1577917828 सावनदिन होते हैं,और सूर्यसिद्धान्त एवं पुराणों के अनुसार एक महायुग में ४३२०००० सौरवर्ष होते हैं । सूर्योदय से अगले सूर्योदय को सूर्य−सावनदिन कहते हैं,बुध के पूर्वी क्षितिज पर दैनिक उदय से अगले उदय तक को बुधसावनदिन कहते हैं,आदि⋅⋅⋅ । केवल “सावनदिन” का अर्थ सूर्य−सावनदिन होता है । सूर्य के एक अंश भ्रमण को सौरदिन कहते हैं,संक्रान्ति से ३० सौरदिनों तक अर्थात् अगली संक्रान्ति तक के काल को सौरमास कहते हैं । संक्रान्ति के धार्मिक कर्म सौरदिन के अनुसार होते हैं,वरना समूचे वर्ष के समस्त धार्मिक कर्म सूर्योदयकालीन तिथि के अनुसार होते हैं । जन्माष्टमी,दीपावली जैसे कुछ विशिष्ट पर्वों के विशिष्ट नियम होते हैं किन्तु निम्न विधि ध्यान से पढ़ेंगे तो उनका निर्णय भी सही तरीके से कर सकेंगे ।
संलग्न स्क्रीनशॉट में सृष्टि के प्रथम सावनदिन का विस्तृत पञ्चाङ्ग भी है जिसका आरम्भ है ग्रहस्पष्ट से और नीचे “पर्वादि” के आगे “तिथ्यन्त = निशीथोत्तर” लिखा है । किसी भी सावनदिन के चार खण्ड होते हैं,(१) सूर्योदय से स्पष्ट मध्याह्न तक,(२) स्पष्ट मध्याह्न से सूर्यास्त तक,(३) सूर्यास्त से स्पष्ट मध्यरात्रि अथवा निशीथ तक,(४) और वहाँ से सूर्योदय तक । वाञ्छित सावनदिन के किस खण्ड में सूर्योदयकालीन तिथि का अन्त है वह सॉफ्टवेयर से देख लें,जैसा कि सृष्टि के प्रथम सावनदिन की सूर्योदयकालीन तिथि का अन्त “निशीथोत्तर” है । तब अपने स्थान के सर्वाधिक प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग की ११४ वर्षों अथवा १९ के गुणक वर्षों के सारे पिछले पञ्चाङ्ग इकट्ठे करके उसमें देखें कि वाञ्छित मास के उसी पक्ष की उसी तिथि का अन्त उसी खण्ड,जैसे कि निशीथोत्तर,में किन−किन वर्षों में है,और तब उनमें जो जो सूर्योदयकालीन तिथि पर आधारित धार्मिक व्रत−पर्व आदि हैं उसकी नकल उतार लें । धर्मशास्त्र पढ़कर व्रत−पर्व बनाने पर कभी कभार गलती भी हो सकती है किन्तु बिना धर्मशास्त्र पढ़े उक्त विधि द्वारा आप अपने क्षेत्र का सर्वमान्य शास्त्रीय पञ्चाङ्ग बना सकते हैं — पूरी सृष्टि और पूरे संसार के किसी भी स्थान का । इस विधि की सटीकता का कारण यह है कि सर्वाधिक प्रचलित पारम्परिक स्थानीय पञ्चाङ्ग,जैसे कि काशी के लिए हृषीकेश पञ्चाङ्ग, में स्थानीय पण्डित समुदाय के सामूहिक निर्णय के अनुसार व्रतपर्व होते हैं । दृग्गणित और सूटबूट वाले पण्डितों के पञ्चाङ्ग का उपयोग इस कार्य में न करें,वे पक्के नास्तिक होते हैं किन्तु सच्चे आस्तिकों से कई गुणे तेज “जय श्री राम” के उद्घोष लगाते हैं । हाल के कुछ दशकों के पञ्चाङ्ग अल्प विश्वसनीय हैं क्योंकि उनपर आधुनिकतावादियों का वर्चस्व है,पुराने पण्डितों की धर्म में अधिक आस्था रहती थी,अतः पुराने पञ्चाङ्गों का सङ्कलन करके उपरोक्त तिथिखण्ड−सारिणी बना लेंगे तो स्वयं पञ्चाङ्गकार बन जायेंगे ।
प्रथम Row में सभी वर्षों की संख्या भरें,शेष Rows में १ से १५ तक तिथियाँ भरें,कभी कभी तिथिवृद्धि होने से एक संख्या बढ़ जाती है जिस कारण कुल १६ तिथियों सहित वर्ष को मिलाकर कुल १७ Rows हैं । पत्र का शीर्षक “मास पक्ष” रखें, जैसे कि “चैत्र शुक्लपक्ष” ।
इससे भी अधिक पाण्डित्य चाहिए तो चौखम्बा की पुस्तक “वर्षकृत्य” पढ़ें,दुर्भाग्यवश वह केवल संस्कृत में है,उसमें वर्ष के सभी धार्मिक कर्मों का विस्तार से वर्णन है किन्तु पूजन में उसकी आवश्यकता पड़ेगी,पञ्चाङ्ग बनाने में नहीं ।
स्वयं पञ्चाङ्गकार बनना सीख ही लें,क्योंकि अब अच्छे स्थानीय पञ्चाङ्ग भी व्यवसायवादियों के आधिपत्य में जा रहे हैं जिनकी रुचि केवल धन में है,धर्म में नहीं;और संस्कृत विषविद्यालयों में भी प्रोफेसर्पों का वर्चस्व होता जा रहा है ।यद्यपि गणित में दक्ष न होने के कारण अधिकांश संस्कृत प्रोफेसर मुझे गरियाते हुए मिलेंगे किन्तु अभीतक उनमें से भारी बहुमत की आस्था धर्मशास्त्र में है और उनमें ऐसे बहुत से विद्वान हैं जो धर्मशास्त्र का अच्छा ज्ञान भी रखते हैं किन्तु दुर्भाग्य है कि मेरा विरोध करते हैं जिस कारण मेरे सॉफ्टवेयर का लाभ नहीं उठा पाते । इसका कारण है भ्रष्ट अधिकारियों से मिलीभगत के फलस्वरूप कई भ्रष्ट प्रोफेसर्पों का वर्चस्व फण्ड में घोटाला करने के उद्देश्य से स्थापित है । राजधन का प्रवेश होगा तो धर्म का क्षय होगा ही,क्योंकि राजधन में निरीह जनता के आँसू और कभी−कभार रक्त भी मिश्रित रहता है । सच्चे ब्राह्मण राजधन से दूर रहते थे,अग्रहार आदि दान लेने की परिपाटी कुषाण काल से आरम्भ हुई जिसे गुप्त राजाओं ने बढ़ाया,और धनलोलुपों का बाहुल्य होने के ही कारण समाज धर्मच्युत हुआ तो दासता झेलनी पड़ी ।
धर्म की स्थापना का नारा बहुत लोग लगाते हैं,किन्तु सही पञ्चाङ्ग के बिना धर्म की स्थापना असम्भव है । अतः स्वयं पञ्चाङ्गकार बनना सीख ही लें । इसकी पद्धति निम्न है ।
एक पन्ने पर आड़ी तिरछी रेखाओं की ऐसी सारिणी बनायें जिसमें १७ क्षैतिज Rows एवं यथासम्भव उर्ध्व Columns हों । वेदाङ्ग ज्योतिष की परम्परा के अनुसार Columns के गुणक में होनी चाहिए,न्यूनतम ५७ और अधिकतम ११४ अथवा अधिक वर्षों के पुराने पञ्चाङ्ग उपलब्ध रहेंगे तो उतने ही Columns बनेंगे,एक पन्ने में न बनें तो अधिक पन्ने उसी में गोन्द द्वारा चिपका दे । वर्ष के हर पक्ष के लिए ऐसा एक पत्र चाहिए । उसकी हर तिथि के आगे ५७−११४ वर्षों की उसी मास पक्ष तिथि के तिथिखण्डों की संख्या १ से ४ तक भर दें,जैसे कि चौथे खण्ड निशीथोत्तर की संख्या ४ है । ऐसी सारिणी बन जायगी तो सृष्टि के आरम्भ से अन्त तक किसी भी वर्ष का शुद्ध पञ्चाङ्ग उस स्थान के लिए आप आसानी से बना सकेंगे जहाँ के पारम्परिक पञ्चाङ्ग की सहायता से आपने उक्त सारिणी बनायी थी । मैंने मिथिला के डेढ़ सौ वर्षों के पञ्चाङ्गों द्वारा सारिणी बनायी थी किन्तु मेरे तथाकथित शिष्य ने मेरे समूचे पुस्तकालय को नष्ट कर डाला । उससे अच्छा चुरा ही लेता,उसके घर में तो रहता!उस सारिणी के फोटोस्टैट के कुछ पन्ने कहीं बचे हैं,मिल गये तो स्क्रीनशॉट पोस्ट कर दूँगा ।
बहुत पुराने मिथिला पञ्चाङ्गों का एक बण्डल भी बचा है,किन्तु अब उनता श्रम करना दूभर है । हृषीकेश पञ्चाङ्ग का प्रभावक्षेत्र अधिक है,अतः इसके सारे पुराने पञ्चाङ्गों का सङ्कलन करें और सारिणी बनायें । आपस में सहयोग की भावना से कुछ लोग जुट जायें तो सम्भव है । तब यदि उसे “कुण्डली सॉफ्टवेयर” में जोड़ दिया जाय तो ४३० करोड़ वर्षों का पूरे संसार का विस्तृत पञ्चाङ्ग तैयार हो जायगा जिसकी सत्यता का खण्डन कोई पण्डित नहीं कर सकेगा ।
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विश्व इतिहास में पहली बार पञ्चाङृग बनाने की सही और सुगम पद्धति सार्वजनिक की जा रही है जिसके नीचे कई टिप्पणियों को देखकर लगता हे कि जिनलोगों की इस विषय में रुचि नहीं है वे चुप भी नही रह सकते,अनजाने में विषयान्तर करके लोगों का ध्यान भटकाना चाहते हैं ।
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