उपवास (फ़ास्टिंग) क्यों और कैसे करें?
विधि पूर्वक उपवास के माध्यम से शरीर की स्वयं का ईलाज करने की आंतरिक शक्ति को अधिकतम कार्यक्छम बनाया जा सकता है।
संपूर्ण विश्राम अवस्था में शरीर में पानी अथवा फ़लों के रस के अलावा कुछ नहीं लेना उपवास कहलाता है।
गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति को जीवन शैली में वांछित बदलाव करना जरूरी होता है।
उपवास करने के बाद जीवन शैली में बदलाव करना आसान हो जाता है। उपवास की सबसे उत्तम और सुरक्छित विधि फ़लों के रस पर आधारित उपवास है। केवल पानी पर आधारित उपवास भी प्रचलित है और बहुत वर्षों पुराना उपवास का विधान है। लेकिन उपवास संबंधी विशिष्ट चिकित्सकों का मत है कि फ़लों के रस पर आधारित उपवास बनिस्बत सुरक्छित और अधिक कारगर रहता है।
उपवास के दौरान शरीर में एकत्रित विजातीय पदार्थ( टाक्सिक मेटर) भस्म होने लगते हैं और शरीर से बाहर निकलने लगते हैं। इस निष्कासन की प्रक्रिया को सहारा देने के लिये हम पानी के बजाय फ़लों का क्छारीय( अल्केलाईन) रस इस्तेमाल करते हैं। इससे यूरिक एसीड व अन्य विजातीय पदार्थ आसानी से निष्काशित होंगे। हां ,ज्यूस में जो शर्करा होती है उससे हृदय को भी शक्ति मिलती रहेगी। हरी सजियों के रस में और फ़लों के रस में जो विटामिन, मिनरल्सऔर सूक्छ्म पौषक तत्व होते हैं वे हमारे शरीर की प्रणालियों को चुस्त-दुरुस्त बनाने में जुट जाते हैं। सभी ज्यूस ताजे फ़लों और सब्जियों से निकालकर तुरंत पीना चाहिए।फ़्रीज में रखे ज्यूस लाभदायक नहीं होते हैं।
उपवास शुरू करने के पहिले एनीमा लगाकर आंतों की भली प्रकार सफ़ाई कर लेना चाहिये।अवशिष्ट पदार्थ आंतों में जमे रहेंगे तो पेट में गेस बनने से तकलीफ़ होगी। बाद में उपवास की अवधि में एक दिन छोडकर एनीमा व्यवहार में लाना चाहिये।जब प्यास लगे तो मामूली गरम जल पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिये। आप चाहें तो ज्यूस में पानी मिलाकर डायलुट करके पी सकते हैं। दिन भर में कुल तरल ६ से ८ गिलास (ज्यूस और पानी) पीना उत्तम है
उपवास के दौरान शरीर में उपस्थित विजातीय पदार्थों को बाहर निकालने में काफ़ी ऊर्जा खर्च होती है। इसलिये रोगी को संपूर्ण विश्राम की सलाह दी जाती है। मानसिक तनाव तो बिल्कुल भी नहीं रहना चाहिये। केवल चहल कदमी करने की अनुमति रहती है।
कितने दिन का उपवास करें?
उपवास कम से कम ५ दिन और अधिकतम ४० दिन का किया जा सकता है। उपवास के अवधि में आपको थकावट ,मितली,उल्टी होना,दस्त लगना, पेट में दर्द होना,पेट फ़ूलना,जोडों में दर्द,सिर दर्द,चमडी में खुल्जली होना, घबराहट आदि सामान्य लक्छणों का अनुभव होगा। यह इसलिये होता है कि विजातीय पदार्थ बाहर निकलने की प्रक्रिया में ज्यादा मात्रा में रक्त प्रवाह में आ जाते हैं। रक्त में इनकी मात्रा ज्यादा होने से ऊपरोक्त लक्छण प्रकट होते हैं।
उपवास विधि का प्रयोग करके शराब ,धूम्रपान,कोकेन गांजा आदि मादक द्रव्य सेवन करने की आदत से मुक्ति पाई जा सकती है। साधारण अवस्था में इन पदार्थों का सेवन बंद करने पर जो विथड्राल सिम्पटम पैदा होते हैं वे उपवास करने पर नहीं होते हैं। बहुत से लोगों को आश्चर्य होता है कि उपवास विधि से शराब और धूम्रपान बडी आसानी से छोडा जा सकता है। मोटापा दूर करने के लिये उपवास विधि का सहारा लेना सर्वोत्तम उपाय है। एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि उपवास के जरिये केन्सर रोग में भी लाभ उठाया जा सकता है।
विधि पूर्वक उपवास के माध्यम से शरीर की स्वयं का ईलाज करने की आंतरिक शक्ति को अधिकतम कार्यक्छम बनाया जा सकता है।
संपूर्ण विश्राम अवस्था में शरीर में पानी अथवा फ़लों के रस के अलावा कुछ नहीं लेना उपवास कहलाता है।
गंभीर रोगों से ग्रसित व्यक्ति को जीवन शैली में वांछित बदलाव करना जरूरी होता है।
उपवास करने के बाद जीवन शैली में बदलाव करना आसान हो जाता है। उपवास की सबसे उत्तम और सुरक्छित विधि फ़लों के रस पर आधारित उपवास है। केवल पानी पर आधारित उपवास भी प्रचलित है और बहुत वर्षों पुराना उपवास का विधान है। लेकिन उपवास संबंधी विशिष्ट चिकित्सकों का मत है कि फ़लों के रस पर आधारित उपवास बनिस्बत सुरक्छित और अधिक कारगर रहता है।
उपवास के दौरान शरीर में एकत्रित विजातीय पदार्थ( टाक्सिक मेटर) भस्म होने लगते हैं और शरीर से बाहर निकलने लगते हैं। इस निष्कासन की प्रक्रिया को सहारा देने के लिये हम पानी के बजाय फ़लों का क्छारीय( अल्केलाईन) रस इस्तेमाल करते हैं। इससे यूरिक एसीड व अन्य विजातीय पदार्थ आसानी से निष्काशित होंगे। हां ,ज्यूस में जो शर्करा होती है उससे हृदय को भी शक्ति मिलती रहेगी। हरी सजियों के रस में और फ़लों के रस में जो विटामिन, मिनरल्सऔर सूक्छ्म पौषक तत्व होते हैं वे हमारे शरीर की प्रणालियों को चुस्त-दुरुस्त बनाने में जुट जाते हैं। सभी ज्यूस ताजे फ़लों और सब्जियों से निकालकर तुरंत पीना चाहिए।फ़्रीज में रखे ज्यूस लाभदायक नहीं होते हैं।
उपवास शुरू करने के पहिले एनीमा लगाकर आंतों की भली प्रकार सफ़ाई कर लेना चाहिये।अवशिष्ट पदार्थ आंतों में जमे रहेंगे तो पेट में गेस बनने से तकलीफ़ होगी। बाद में उपवास की अवधि में एक दिन छोडकर एनीमा व्यवहार में लाना चाहिये।जब प्यास लगे तो मामूली गरम जल पर्याप्त मात्रा में पीना चाहिये। आप चाहें तो ज्यूस में पानी मिलाकर डायलुट करके पी सकते हैं। दिन भर में कुल तरल ६ से ८ गिलास (ज्यूस और पानी) पीना उत्तम है
उपवास के दौरान शरीर में उपस्थित विजातीय पदार्थों को बाहर निकालने में काफ़ी ऊर्जा खर्च होती है। इसलिये रोगी को संपूर्ण विश्राम की सलाह दी जाती है। मानसिक तनाव तो बिल्कुल भी नहीं रहना चाहिये। केवल चहल कदमी करने की अनुमति रहती है।
कितने दिन का उपवास करें?
उपवास कम से कम ५ दिन और अधिकतम ४० दिन का किया जा सकता है। उपवास के अवधि में आपको थकावट ,मितली,उल्टी होना,दस्त लगना, पेट में दर्द होना,पेट फ़ूलना,जोडों में दर्द,सिर दर्द,चमडी में खुल्जली होना, घबराहट आदि सामान्य लक्छणों का अनुभव होगा। यह इसलिये होता है कि विजातीय पदार्थ बाहर निकलने की प्रक्रिया में ज्यादा मात्रा में रक्त प्रवाह में आ जाते हैं। रक्त में इनकी मात्रा ज्यादा होने से ऊपरोक्त लक्छण प्रकट होते हैं।
उपवास विधि का प्रयोग करके शराब ,धूम्रपान,कोकेन गांजा आदि मादक द्रव्य सेवन करने की आदत से मुक्ति पाई जा सकती है। साधारण अवस्था में इन पदार्थों का सेवन बंद करने पर जो विथड्राल सिम्पटम पैदा होते हैं वे उपवास करने पर नहीं होते हैं। बहुत से लोगों को आश्चर्य होता है कि उपवास विधि से शराब और धूम्रपान बडी आसानी से छोडा जा सकता है। मोटापा दूर करने के लिये उपवास विधि का सहारा लेना सर्वोत्तम उपाय है। एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि उपवास के जरिये केन्सर रोग में भी लाभ उठाया जा सकता है।
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