☘️ *_गौ सेवा परमोधर्मः जानिये सनातन में गाय को मां क़हा गया और क्यूँ भारतीय गाय विश्व में सर्वश्रेष्ट मानी जाती है_*
भारतीय गायें विदेशी तथाकथित गायों की तरह बहुत समय तक जंगलों में हिंसक पशु के रूप में घूमते रहने के बाद घरों में आकर नहीं पलीं, वे तो शुरु से ही मनुष्यों द्वारा पाली गयी हैं। भारतीय गायों के लक्षण हैं- उनका गल कम्बल (गले के नीचे झालर सा भाग), पीठ का कूबड़, चौड़ा माथा, सुंदर आँखें तथा बड़े मुड़े हुए सींग। भारतीय गोवंश की कुछ नस्लें हैं, गिर, थारपारकर, साहीवाल, लाल सिंधी आदि।
भारतीय गायों पर करनाल की 'नेशनल ब्यूरो ऑफ जेनेटिक रिसोर्सेस' (एनबीएजीआर) संस्था ने अध्ययन कर पाया कि इनमें उन्नत ए-2 एलील जीन पाया जाता है, जो इन्हें स्वास्थ्यवर्धक दूध उत्पन्न करने में मदद करता है। भारतीय नस्लों में इस जीन की आवृत्ति (फ्रीक्वेंसी) 100 प्रतिशत तक पायी जाती है, जबकि विदेशी नस्लों में यह 60 प्रतिशत से भी कम होती है।
भारतीय गायों में सूर्यकेतु नाड़ी होती है। गायें अपने लम्बे सींगों के द्वारा सूर्य की किरणों को इस सूर्यकेतु नाड़ी तक पहुँचाती हैं। इससे सूर्यकेतु नाड़ी स्वर्णक्षार बनाती है, जिसका बड़ा अंश दूध में और अल्पांश में गोमूत्र में आता है।
भारतीय गाय के दूध में ओमेगा-6 फैटी ऐसिड होता है, जिसकी कैंसर नियंत्रण में महत्त्वपूर्ण भूमिका है। विदेशी नस्ल की गायों के दूध में इसका नामोनिशान तक नहीं है। भारतीय गाय के दूध में अनसैचुरेटेड फैट होता है, इससे धमनियों में वसा नहीं जमती और यह हृदय को भी पुष्ट करता है।
भारतीय गाय चरते समय यदि कोई विषैला पदार्थ खा लेती है तो दूसरे प्राणियों की तरह वह विषैला तत्त्व दूध में मिश्रित नहीं होता। भारतीय गाय संसार का एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसके मल-मूत्र का औषधि तथा यज्ञ पूजा आदि में उपयोग होता है।
परमाणु विकिरण से बचने में गाय का गोबर उपयोगी होता है। भारतीय गाय के गोबर-गोमूत्र में रेडियोधर्मिता को सोखने का गुण होता है।
भारतीय गोवंश का पंचगव्य निकट भविष्य में प्रमुख जैव-औषधि बनने की सीमा पर खड़ा है। अमेरिका ने पेटेंट देकर स्वीकार किया है कि कैंसर नियंत्रण में गोमूत्र सहायक है।
संतों ने तो यहाँ तक बताया है कि "कोई बीमार आदमी हो और डॉक्टर, वैद्य बोले, 'यह नहीं बचेगा' तो वह आदमी गाय को अपने हाथ से कुछ खिलाया करे और गाय की पीठ पर हाथ घुमाये तो गाय की प्रसन्नता की तरंगें हाथों की उंगलियों के अग्रभाग से उसके शरीर के भीतर प्रवेश करेगी, रोग-प्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी और वह आदमी तंदुरुस्त हो जायेगा, 6 से 12 महीने लगते हैं लेकिन असाध्य रोग भी गाय की प्रसन्नता से मिट जाते हैं।"
भारतीय गाय की पीठ पर, गलमाला पर प्रतिदिन आधा घंटा हाथ फेरने से रक्तचाप नियंत्रण में रहता है। गोबर को शरीर पर मलकर स्नान करने से बहुत से चर्मरोग दूर हो जाते हैं। गोमय स्नान को पवित्रता और स्वास्थ्य की दृष्टि से सर्वोत्तम माना गया है। इस प्रकार भारतीय गाय की अनेक अदभुत विशेषताएँ हैं। धनभागी हैं वे लोग, जिनको भारतीय गाय का दूध, दूध के पदार्थ आदि मिलते हैं और जो उनकी कद्र करते हैं।
भारत में प्राचीन काल से ही गाय की पूजा होती रही है क्योंकि गाय में 33कोटि देवताओं का वास माना गया है इसलिए गाय को माता का दर्जा भी दिया है, कहते है कि बच्चा जन्मे और किसी कारणवश उसकी माता का निधन हो जाये तो बच्चे को गाय का दूध पिलाने पर जिंदा रह सकता है । कहते है कि जननी दूध पिलाती, केवल साल छमाही भर ! गोमाता पय-सुधा पिलाती, रक्षा करती जीवन भर !!
गौ-माता भारत देश की रीढ की हड्डी है। जो सभी को स्वस्थ-सुखी जीवन जीने में मदद रूप बनती है । सभी को आजीवन गौ-माता की रक्षा के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए ।
गौमाता की इतनी उपयोगीता और उसकी हत्या हो रही है उससे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि सभी को मिलकर गौ-माता को राष्ट्रमाता का दर्जा दिलाकर तन-मन-धन से इसकी रक्षा करनी चाहिए ।
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