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मंगलवार, 26 सितंबर 2023

प्रदोष व्रत व प्रदोषम व्रत एक प्रसिद्ध हिन्दू व्रत है जो कि भगवान शिव का आर्शीवाद पाने के लिए किया जाता है।

प्रदोष व्रत आज - प्रदोष व्रत में पूजा का समय
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प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा शाम के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होती हैं।

शुक्ल पक्ष प्रदोष व्रत
बुधवार, 27 सितंबर 2023
प्रदोष व्रत प्रारंभ: 27 सितंबर 2023 प्रातः 01:46 बजे
प्रदोष व्रत समाप्त: 27 सितंबर 2023 रात 10:19 बजे

प्रदोष व्रत व प्रदोषम व्रत एक प्रसिद्ध हिन्दू व्रत है जो कि भगवान शिव का आर्शीवाद पाने के लिए किया जाता है। प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने में दो बार आता है, कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में। यह व्रत दोनों पक्षों के त्रयोदशी के दिन मनाया जाता है। प्रदोष व्रत अगर सोमबार के दिन आता है तो उसे सोम प्रदोषम कहा जाता है। मंगलवार के दिन आता है तो उसे भूमा प्रदोषम कहा जाता है और शनिवार के दिन आता है तो उसे शनि प्रदोषम कहा जाता है। यह व्रत सूर्यास्त के समय पर निर्भर करता है।

इस दिन निराहार रहकर सायंकाल स्नान करने के बाद सफ़ेद वस्त्रों में संध्या आदि करके शिव का पूजन किया जाता है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।
तिथि प्रत्येक महीने के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी
अनुष्ठान प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेलपत्र, गंगाजल, अक्षत, धूप, दीप सहित पूजा करें। संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए।
अन्य जानकारी सप्ताह के सातों दिन के प्रदोष व्रत का अपना विशेष महत्त्व है।

प्रदोष व्रत अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करने वाला है। यह व्रत प्रत्येक महीने के कृष्ण व शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को रखा जाता है, इसलिए इसे वार के अनुसार पूजन करने का विधान शास्त्र सम्मत माना गया है। प्रत्येक वार के प्रदोष व्रत की पूजन विधि अलग-अलग मानी गई है। व्रती ब्रह्मा मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर श्रद्धा और विश्वास के साथ भगवान का ध्यान करते हुए व्रत आरंभ करते हैं। इस व्रत के मुख्य देवता शिव माने गए हैं। उनके साथ पार्वती जी की भी पूजा की जाती है। इस दिन निराहार रहकर सायंकाल स्नान करने के बाद सफ़ेद वस्त्रों में संध्या आदि करके शिव का पूजन किया जाता है। प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है।

व्रत महात्म्य
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इस व्रत के महात्म्य को गंगा नदी के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त श्री सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को सुनाया था। सूत जी ने कहा है कि कलि युग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा, हर तरफ अन्याय और अत्याचार का बोलबाला होगा। मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोक को प्राप्त होगा। त्रयोदशी की रात्रि के प्रथम प्रहर में जो व्यक्ति किसी भेंट के साथ शिव प्रतिमा का दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है।

सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे। यह व्रत अति कल्याणकारी है, इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी। इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत से क्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया। सूत जी ने सौनकादि ऋषियों को बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था। मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैने आपको सुनाया है।

प्रदोष व्रत रखने के लाभ
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- स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करना चाहते हैं तो आप रविवार के दिन आने वाले प्रदोष का व्रत रखें।

- सोमवार के दिन जो प्रदोष का व्रत आता है उसे कुछ लोग सोम प्रदोषम या चन्द्र प्रदोषम भी कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से आपको सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

- भौम प्रदोषम ये व्रत मंगलवार के दिन आता है। किसी भी महीने की त्रयोदशी अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो ये व्रत रखा जाता है. इस दिन व्रत करने वाले जातकों को रोगों से मुक्ति मिलती है।

- सिद्धि कामना के लिए बुधवार के दिन आने वाले प्रदोष व्रत को रखा जाता है।

- शत्रुओं से परेशान हैं तो उनसे छुटकारा पाने के लिए आप बृहस्पति वार को आने वाले प्रदोष का व्रत रखें।

- सौभाग्य वृद्धि और घर परिवार में सुख शांति के लिए शुक्रवार का प्रदोष व्रत रखा जाता है।

- जो लोग संचान सुख से वंछित हैं उन्हें शनि प्रदोषम का व्रत रखना चाहिए। अगर आप पूरे विधि विधान के साथ ये व्रत करते हैं तो इससे आपको लाभ मिलता है।

प्रदोष व्रत के नियम और विधि
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अगर आप प्रदोष का व्रत रख रहे हैं तो किसी भी दिन आने वाले इस व्रत के लिए आप सुबह सुर्योदय से पहले आप उठकर स्नान कर साफ कपड़े धारण करें।

शिव की पूजा के लिए बेलपत्र, अक्षत, दीप, धूप, गंगाजल आदि लेकर इससे मंदिर में पूजा करें।

पूजा के बाद इस व्रत का संकल्प करें और जिस भी मनोकामना से ये व्रत रख रहे हैं वो मन में धारण करें।

प्रदोष का व्रत रखने वाले लोग अन्न ग्रहण ना करें। पूरे दिन का उपवास रखने के बाद सूर्यास्त से कुछ देर पहले दोबारा स्नान कर लें और सफ़ेद रंग का वस्त्र धारण करें।

मंदिर में स्वच्छ जल या गंगा जल का छिड़काव करें और फिर गाय के गोबर से मंडप बनाएं। जिस पर 5 अलग-अलग रंगों की रंगोली बनाएं।

जब ये सब काम हो जाए तब आप उतर-पूर्व दिशा में मुंह करके कुशा के आसन पर बैठ जाएं। भगवान शिव के मंत्र ऊँ नम: शिवाय का जाप करें। जाप करते हुए आप भगवान शिव को जल चढ़ाएं। 

वैसे तो ये व्रत मनचाह वरदान पाने के लिए रखा जाता है। जो भी व्यक्ति 11 या 26 प्रदोष व्रत रखते हैं उन्हें इसका विधिवत उद्यापन भी करवाना चाहिए। हिंदू धर्म में हर व्रत की विशेषता होती है। आप अपनी समस्या के हिसाब से भी प्रदोष का व्रत रख कष्टों से मुक्ति पा सकते हैं। अगर आप व्रत के दिन सभी नियमों का पालन करते हैं तो इससे आपको लाभ भी मिलता है।

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