भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की बारहवीं तिथि को वामन द्वादशी मनाई जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु ने इसी दिन वामन अवतार लिया था। भागवत पुराण के अनुसार वामन भगवान विष्णु के दशावतार में से पांचवें अवतार थे जिन्होंने त्रेता युग में जन्म लिया था। यह अवतार उन्होंने राजा बाली से तीन लोकों का अधिकार पुनः प्राप्त करने के लिए लिया था।
वामन द्वादशी को भगवान विष्णु के वामन अवतार की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन मुख्य रूप से भगवान विष्णु के अवतार वामन भगवान की पूजा की जाती है।
वामन द्वादशी की तिथि
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द्वादशी तिथि का प्रारम्भ 26 सितम्बर 2023, मंगलवार के दिन सुबह 05 बजे से हो रहा है जिसका समापन 27 सितंबर, बुधवार के दिन सुबह 01 बजकर 45 मिनट पर हो रहा है। ऐसे में वामन द्वादशी 26 सितंबर को मनाई जाएगी।
वामन द्वादशी का महत्व
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वामन द्वादशी के दिन भगवान श्री हरि का पूजन करने से मनुष्य के अंदर से अहंकार की भावना समाप्त हो जाती है। साथ ही लोगों के आत्मबल में वृद्धि होती है। साथ ही यह भी मान्यता है कि वामन द्वादशी के दिन भगवान के वामन रूप की पूजा करने से बुरे कर्मों से छुटकारा मिल सकता है।
वामन जयंती की पूजा विधि
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वामन जयंती के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होने के बाद पूजा की तैयारी करें। इसके बाद चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की तस्वीर स्थापित करें। यदि वामन अवतार की तस्वीर न हो तो आप भगवान विष्णु के तस्वीर को भी स्थापित कर सकते हैं। इस दिन श्रवण नक्षत्र में पूजा करना सबसे उत्तम माना जाता है।
ऐसे में आप श्रवण नक्षत्र में वामन भगवान की पूजा करें, उन्हें रोली, पीले फूल, नैवेद्य आदि अर्पित करें। साथ ही भगवान को दही और मिश्री का भोग लगाएं। पूजा के बाद वामन अवतार की कथा का पाठ अवश्य करें। आरती करने के बाद आसपास के लोगों में प्रसाद बांटे। इस दिन किसी जरूरतमंद को भोजन करवाने से साधक को शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
वामन अवतार की कथा
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भागवत पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने देवराज इंद्र को स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्रदान करने के लिए वामन अवतार लिया। ऋषि कश्यप और देव माता अदिति के पुत्र के रूप में भगवान विष्णु ने एक बौने ब्रह्मण के रूप में जन्म लिया। इन्हें ही वामन अवतार के नाम से जाना जाता है, ये विष्णु जी का पांचवा अवतार थे। कथा के अनुसार जब असुरराज बलि ने अपने तपोबल और पराक्रम से तीनों लोक पर अधिकार कर लिया। तो हारे हुए देवराज इंद्र ने स्वर्ग पर पुनः अधिकार प्राप्त करने के लिए विष्णु जी से प्रार्थना की। विष्णु जी ने इंद्र की प्रार्थना स्वीकार करके वामन अवतार लिया और बटुक वामन के रूप में राजा बलि के पास दान मांगने के लिए प्रस्तुत हुए।
राजा बलि का उद्धार
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असुर राज बलि, विष्णु भक्त प्रहलाद के पौत्र थे और अपनी वचनबद्धता तथा दान प्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। इसलिए भगवान विष्णु ने असुर राज से बटुक वामन के रूप में तीन पग भूमि का दान मांगा। असुरों के गुरू शुक्राचार्य को इसमें छल का आभास था, उन्होंने राजा बलि को दान देने से मना किया। लेकिन अपने दान के प्रति कर्तव्य को देखते हुए असुर राज ने तीन पग भूमि दान देना स्वीकार कर लिया। तब वामन देव ने अपना विराट रूप दिखाते हुए दो पग में ही तीनों लोक की भूमि नाप ली और असुर राज से तीसरा पग रखने के लिए भूमि की मांग की। राजा बलि ने वचन निभाते हुए वामन देव को तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर प्रस्तुत कर दिया। वामन देव का पग सिर पर पड़ते ही राजा बलि पाताल लोक में चले गए। वामन देव ने असुर राज की दान प्रियता से प्रसन्न होकर उन्हें पाताल लोक पर अनंत काल तक राज करने आशीर्वाद प्रदान किया।
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