जय श्री कृष्णा, ब्लॉग में आपका स्वागत है यह ब्लॉग मैंने अपनी रूची के अनुसार बनाया है इसमें जो भी सामग्री दी जा रही है कहीं न कहीं से ली गई है। अगर किसी के कॉपी राइट का उल्लघन होता है तो मुझे क्षमा करें। मैं हर इंसान के लिए ज्ञान के प्रसार के बारे में सोच कर इस ब्लॉग को बनाए रख रहा हूँ। धन्यवाद, "साँवरिया " #organic #sanwariya #latest #india www.sanwariya.org/
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रविवार, 1 जनवरी 2023
1 जनवरी से अपनी टीम में बहुत बड़ा परिवर्तन होंगा। सर्दी का मौसम है गलत तो बढ़ ही रही है *जलन* भी बढ़ने वाली है😄
गुरुवार, 29 दिसंबर 2022
कार में ब्रेक क्यों लगाते हैं...?
सोमवार, 26 दिसंबर 2022
क्या बॉयकॉट बॉलीवुड ट्रेंड के पीछे राजनैतिक कारण हैं ?
उन लोगों के लिए जो सोचते हैं कि बहिष्कार के पीछे बीजेपी है:
- देखिए, अगर 100 रुपये टिकट की कीमत पर 1 करोड़ लोग फिल्म देखने जाते हैं, तो फिल्म 100 करोड़ रुपये कमाती है।
- अब भारत की 18 साल से ऊपर की आबादी 95 करोड़ है!
- अब, 2019 के चुनावों के अनुसार, भाजपा का वोट प्रतिशत लगभग 37 प्रतिशत था।
- 18 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 60 प्रतिशत लोग बचे हैं, साथ ही किशोर भी हैं जिनके लिए टिकट अनिवार्य है।
- अब बीजेपी के ये सारे वोटर भले ही फिल्म का बहिष्कार कर रहे हों, लेकिन फिल्म को सुपरहिट करने वाले भी काफी से ज्यादा लोग बचे हैं!
मैं जो समझाने की कोशिश कर रहा हूं वह यह है कि बहिष्कार सभी पार्टी लाइनों में है! अलग-अलग राजनीतिक विचारधारा वाले लोग बॉलीवुड का बहिष्कार कर रहे हैं।
यह कोई रहस्य नहीं है कि एक विशेष समुदाय कभी बीजेपी को वोट नहीं देता है, वह समुदाय अब लगभग 30-35 प्रतिशत है! यहां तक कि अगर इस समुदाय के 1 करोड़ लोग भी एक फिल्म देखने जाते हैं, तो यह 100 करोड़ रुपये कमा सकती है। फिर फिल्में क्यों नहीं चल रही हैं?
इसलिए, मुझे नहीं लगता कि बॉलीवुड के बहिष्कार के पीछे कोई राजनीतिक कारण है। यदि यह राजनीतिक बहिष्कार होता तो मुझे नहीं लगता कि यह सफल होता।
अगर इस प्रकार पोलिटिकल पार्टियां फ़िल्में हिट या फ्लॉप करा पातीं तो न नरेंद्र मोदी जी के ऊपर बानी फिल्म फ्लॉप होती न राहुल गाँधी के !
एकता कपूर जिस तरह के एडल्ट वेब सीरीज बनाती है तो क्या उनकी मानसिकता भी ऐसी ही है?
मैंने कहीं पढ़ा था , कि एकता कपूर छोटी उम्र में ही अपने ड्राइवर के साथ भाग गई थी ,
अगर ये सच है तो आप ही सोच लीजिये उनकी सोच और परवरिश कैसी होगी ?
बाकी उनके किये काम से पता चलता है।
टीवी पर जो गंद मचा हुआ है आजकल वो सब इसी के देन है ।
एक पत्नी के 4 -6 पति ,
एक पति की 4 -5 पत्नियां ,
दादी बनने वाली की शादी ,
और सास और बहु एक समय में गर्भवती ,
घर के बच्चों का भी कहीं ना कहीं चक्कर वो भी स्कूल वाली ऐज में ,
घर में हमेशा कलेश होना ,
घर के मर्द सारा दिन कुर्ता पायजामा / 3 पीस सूट पहन के घर में बैठे रहते हैं।
सारा घर कोई न कोई षड़यंत्र करता रहता है ,
दुखियारी माँ / बहु / बेटी
बेचारा बाप / बेटा/ भाई
तो ऐसी है एकता कपूर
क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?
क्या पठान मूवी का बॉयकॉर्ट होना चाहिए या नहीं?
यदि आप सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या(?) से दुखी है
यदि आप सोनू निगम जैसे प्रतिभाशाली गायकों के करियर खतम करने से दुखी है
यदि आप सनी देओल बॉबी देओल विवेक ओबेरॉय अभय देओल विद्युत जामवाल जैसे कई प्रतिभाशाली लेकिन राष्ट्रवादी नायकों के कैरियर को तबाह करने से दुखी है
यदि आप कंगना राणावत जैसी राष्ट्रवादी अभिनेत्री को परेशान करने से दुखी है
तो आपको उस पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड को तबाह करने के लिए और राष्ट्रवादी सिनेमा को मजबूत करने के लिए बिना तर्क वितर्क के इस फिल्म पठान का बॉयकॉट करना ही पड़ेगा!! यही लोकतांत्रिक विरोध है और लोकतांत्रिक तरीका है भारत में राष्ट्रवादी शक्तियों को मजबूत करने का।
आज सिर्फ चुनावों में वोटिंग से सरकार नहीं बनती है । सिर्फ सरकार और सेना देश की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकती है जनता को भी अंदरूनी राष्ट्रविरोधी शक्तियों को लोकतांत्रिक तरीके से कमजोर करने में पूरा सहयोग देना होगा।
हर वेब सीरीज और फिल्म में पाकिस्तान नियंत्रित बॉलीवुड कुछ ना कुछ एजेंडा घुसा ही देता है देश को कमजोर करने का या युवाओं को दिग्भ्रमित करके नशे या कु–संस्कृति की तरफ ले जाने का।
तुनिषा आत्महत्या हो , श्रद्धा वाकर हत्याकांड हो या उर्मि वैष्णव या शांतिदेवी हत्याकांड हो उसकी शुरुआत बॉलीवुड की बनाई संस्कृति से ही होती है । जिसमें लड़कियों के दिमाग में भरा जाता है कि किसी भी मनुष्य से शादी करो सब एक हैं। लेकिन पर्दे की पीछे की बातों को बॉलीवुड ने कभी नहीं दिखाया। कभी नहीं बताया की किसी संस्कृति में लड़की से छुटकारा पाने का उपाय तलाक या मायके भेजना है । और किसी संस्कृति में पत्नी से छुटकारा पाने का उपाय हत्या करके शव के टुकड़े करना है।
भारत पर हमले हमेशा कई तरीके से हुए हैं।
अप्रत्यक्ष हमले कविताओं, कहानियों , पत्रिकाओं, समाचारपत्रों, धार्मिक सभाओं, फिल्मों धारावाहिकों वेब सीरीज के माध्यम से ज्यादा हुए हैं।
आज सोशल मीडिया पर बॉलीवुड और राष्ट्रविरोधी शक्तियां मुखर हैं जो सिर्फ मनोरंजन के नाम पर मजाक मजाक में आपके और बच्चो के दिमाग में कचरा भर रहे हैं। हमको पता ही नहीं पड़ रहा है कि अनजाने में हमारे दिमाग में क्या भर दिया गया है।
आप अंदर ही अंदर करोड़ो लोगों को आसानी से पहले संस्कृति से दूर करो , फिर धर्मनिरपेक्षता सहिष्णुता के नाम पर भीरू कायर बना दो, राष्ट्रवाद से दूर कर दो।
लाल बहादुर शास्त्री जी के एक आव्हान पर अमीर गरीब सबने अपना सहयोग दिया था सेना को।
आज कितने लोगों वैसा करेंगे??
उल्टे सेना के मरने पर हारने पर देश में तालियां बजाने वालों की फौज खड़ी हो गई है।
सोचिए !! तर्क , निष्पक्षता और बुद्धिजीवी का चोला उतार कर फेंकिए और शतरंजी चालों को समझने में निपुण बनिए।
वरना आपको पता भी नहीं पड़ेगा और आप खुद अनजाने में अपने देश को तोड़ देंगे संस्कृति को नष्ट कर देंगे।
फन मनोरंजन आवश्यक है जीवन में लेकिन जरूरी नहीं की उसके नाम पर हम किसी भी व्यक्ति को अपने दिमाग में कचरा भरने दें!
कुछ लोग 300 या 500 लोगों के रोजगार की खातिर मूवी देखने की बात कर रहे हैं तो ऐसे में आपको साल में आने वाली सभी 800–900 फिल्में देखनी चाहिए।
पठान तो मूवी राइट्स सैटेलाइट राइट्स म्यूजिक राइट से अपना खर्च निकाल लेगी।
शाहरुख और दीपिका के पास पैसे की कोई कमी नहीं है वो इन 500 लोगों के लिए अपना मेहनताना छोड़ सकते हैं।
ऐसे जीव जिनकी कभी मृत्यु ही नहीं होती
हाइड्रा
इसे आप बहुत सिरों वाला जीव समझ सकते हैं। इसकी कभी भी प्राकृतिक मृत्यु नहीं होती। हाइड़ा अपने शरीर को अनेक भाग में विभाजित करके प्रत्येक भाग से ग्रोथ करके नए हाइड़ा में विकसित हो जाता है। देखने में यह आपको ऑक्टोपस जैसा लग सकता है। लेकिन पूर्णतः इसका अंत नहीं होता है।
टार्डीग्रेड
पानी में रहने वाला आठ पैरों और 4 एमएम लंबा जीव 30 वर्षों तक बिना, खाए पीए रह सकता है और इसमें अंतरिक्ष में भी जिंदा रहने की क्षमता है। यह लगभग माइनस 272 डिग्री में बिना किसी परेशानी के रह सकता है। वहीं, करीब 150 डीग्री की गर्मी भी आराम से सह लेता है।
प्लेनरियन फ्लेटवर्म
यह प्राणी अमर है। आप इसके लगभग दो सौ टुकड़े कर दें, तो भी हर टुकड़े से एक जीव बन जाएगा। यहीं नहीं, इसके सिर और नर्वस सिस्टम को भी टुकड़ों में काट दें, तो भी यह फिर से बनने लगता है। इसके सेल्स डेड भी हो जाते हैं तो भी ये नए जीवों को अपने आप से निर्माण कर सकता है।
लम्बी लंगफिश
कहा जाता है कि यह मछली पांच साल तक बिना कुछ खाए पीये जीवित रह सकती है। विशेषकर अफ्रीका में पाई जाने वाली यह मछली सूखा पड़ने पर खुद को जमीन में दफन कर लेती है। सूखे के मौसम के दौरान जब यह जमीन के अंदर- होती है, तब अपने शरीर के मेटाबोलिज्म को 60 गुना तक कम कर लेती है।
जेलफिश
यह अपने ही सेल्स को बदल कर फिर से युवा अवस्था में पहुंच जाती है और यह चक्र चलता ही रहता है।
अलास्कन वुड फ्रॉग
यह मेढक भी अमर है। अलास्का में जब तापमान माइनस 20 डिग्री गिर जाता है, तब इस मेढक का शरीर लगभग फ्रीज हो जाता है और यह शीतनिद्रा में सो जाता है। तब यह लगभग 80 प्रतिशत तक बर्फ में जम जाता है। इस दौरान उसका सांस लेना भी बंद हो जाता है। हृदय की धड़कन भी बंद हो जाती है। डॉक्टरी भाषा में यह मर चुका होता है, लेकिन जब वसंत की शुरुआत होती है और इसके ऊपर से बर्फ हटती है तो इसके हृदय में अचानक से इलेक्ट्रिक चार्ज उत्पन्न होता है और उसका हृदय फिर से धड़कने लगता है। इसे फ्रोजन फोग भी कहते हैं।
संघ क्यों चुप है ??
मंगलवार, 20 दिसंबर 2022
साइकिल चलाने वाले दुष्ट हैं। यूरो एक्ज़िम बैंक लिमिटेड के जनरल डायरेक्टर ने अर्थशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने कहा:
साइकिल चलाने वाले दुष्ट हैं।
यूरो एक्ज़िम बैंक लिमिटेड के जनरल डायरेक्टर ने अर्थशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर कर दिया जब उन्होंने कहा:
"एक साइकिल चालक देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक आपदा है:
वे कार नहीं खरीदते हैं और खरीदने के लिए पैसे उधार नहीं लेते हैं।
वे बीमा पॉलिसियों के लिए भुगतान नहीं करते हैं।
वे ईंधन नहीं खरीदते हैं, आवश्यक रखरखाव और मरम्मत के लिए भुगतान नहीं करते हैं।
वे सशुल्क पार्किंग का उपयोग नहीं करते हैं।
न ही गंभीर दुर्घटना का कारण बनता है।
उन्हें बहु-लेन राजमार्गों की आवश्यकता नहीं है।
वे मोटे नहीं होते।
स्वस्थ लोगों की न तो जरूरत है और न ही अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी।
वे दवा नहीं खरीदते हैं। वे अस्पतालों या डॉक्टरों के पास नहीं जाते हैं।
देश की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में कुछ भी नहीं जोड़ा जाता है।
इसके विपरीत, हर नया मैकडॉनल्ड्स रेस्तरां कम से कम 30 नौकरियां पैदा करता है: 10 हृदय रोग विशेषज्ञ, 10 दंत चिकित्सक, 10 आहार विशेषज्ञ और पोषण विशेषज्ञ, और जाहिर है, जो लोग रेस्तरां में ही काम करते हैं।
सावधानी से चुनें:
साइकिल चालक या मैकडॉनल्ड्स?
यह विचार करने योग्य है।
चलना और भी अच्छा है। पैदल चलने वाले तो साइकिल भी नहीं खरीदते।
तस्वीर गूगल
धन्यवाद 🥰
रिसोर्ट मे शादियां ! नई सामाजिक बीमारी
📌 रिसोर्ट मे शादियां !
नई सामाजिक बीमारी
कौन जिम्मेदार !
क्या निवारण सम्भव है
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मर्ज बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा करी
समाज प्रमुख चिल्ला चिल्ला कर थक गए
चिंतन करने वाले अभी भी चिंतन में लगे हैं
किस तरह समाज को राह दिखाई जाए
किस तरह समाज को दिखावे के दंश से मुक्त किया जाए
हम बात करेंगे शादी समारोहो में होने वाली भारी-भरकम व्यवस्थाओं
और उसमें खर्च होने वाले अथाह धन राशि के दुरुपयोग की
सामाजिक भवन अब उपयोग में नहीं लाए जाते हे
शादी समारोह हेतु यह सब बेकार हो चुके हैं
कुछ समय पहले तक शहर के अंदर मैरिज हॉल मैं शादियां होने की परंपरा चली परंतु वह दौर भी अब समाप्ति की ओर है
अब शहर से दूर महंगे रिसोर्ट में शादीया होने लगी है
शादी के 2 दिन पूर्व ही ये रिसोर्ट बुक करा लिया जाते हैं और शादी वाला परिवार वहां शिफ्ट हो जाता है
आगंतुक और मेहमान सीधे वही आते हैं और वहीं से विदा हो जाते
इतनी दूर होने वाले समारोह में जिनके पास अपने चार पहिया वाहन होते हैं वहीं पहुंच पाते हैं
और सच मानिए समारोह के मेजबान की दिली इच्छा भी यही होती है कि
सिर्फ कार वाले मेहमान ही रिसेप्शन हॉल में आए
और वह निमंत्रण भी उसी श्रेणी के अनुसार देता है
दो तीन तरह की श्रेणियां आजकल रखी जाने लगी है
किसको सिर्फ लेडीस संगीत में बुलाना है
किसको सिर्फ रिसेप्शन में बुलाना है
किसको कॉकटेल पार्टी में बुलाना है
और किस वीआईपी परिवार को इन सभी कार्यक्रमों में बुलाना है
इस आमंत्रण में अपनापने की भावना खत्म हो चुकी है
सिर्फ मतलब के व्यक्तियों को या परिवारों को आमंत्रित किया जाता है
लेडीज संगीत कहने को तो महिलाओं के लिए ही होता है
परंतु इसमें भी डिनर की व्यवस्था
रिसेप्शन की तरह ही इतनी भारी-भरकम होती है कि
एक आम व्यक्ति अपने दो बच्चों की शादी का रिसेप्शन कर ले
महिला संगीत में पूरे परिवार को नाच गाना सिखाने के लिए महंगे कोरियोग्राफर 10-15 दिन ट्रेनिंग देते हैं
मेहंदी लगाने के लिए आर्टिस्ट बुलाए जाने लगे हैं
हल्दी लगाने के लिए भी एक्सपर्ट बुलाए जाते हैं
ब्यूटी पार्लर को दो-तीन दिन के लिए बुक कर दिया जाता है
प्रत्येक परिवार अलग-अलग कमरे में ठहरते हैं
दूरदराज से आए बरसों बाद रिश्तेदारों से मिलने की उत्सुकता कहीं खत्म सी हो गई है
क्योंकि सब अमीर हो गए हैं पैसे वाले हो गए हैं
मेल मिलाप और आपसी स्नेह खत्म हो चुका हे
रस्म अदायगी पर मोबाइलो से बुलाये जाने पर कमरों से बाहर निकलते हैं
सब अपने को एक दूसरे से रईस समझते हैं
और यही अमीरीयत का दंभ
उनके व्यवहार से भी झलकता है
कहने को तो रिश्तेदार की शादी में आए हुए होते हैं
परंतु अहंकार उनको यहां भी नहीं छोड़ता
वे अपना अधिकांश समय करीबियों से मिलने के बजाय अपने कमरो में ही गुजार देते हैं
रिसेप्शन हाल की पार्किंग और बाहर खड़ी गाड़ियों से अंदाजा लग जाता हे कि अंदर व्यवस्था कितनी आलीशान होगी
मुख्य स्वागत द्वार पर
नव दंपत्ति के विवाह पूर्व आलिंगन वाली तस्वीरें
हमारी विकृत हो चुकी संस्कृति पर
सीधा तमाचा मारते हुए दिखती हैं
मखमल के कालीनो पर चल कर आगे बढ़ते हैं
सुगंधित धुअे के मदहोश करने वाले गुब्बार स्पर्श करते हैं
ऐसा लगता है किसी पांच सितारा मधुशाला या नवाबी मुजरे मे पहुंच रहे हो
अंदर एंट्री गेट पर आदम कद स्क्रीन पर नव दंपति के विवाह पूर्व आउटडोर शूटिंग के दौरान फिल्माए गए फिल्मी तर्ज पर गीत संगीत और नृत्य चल रहे होते हैं
इच्छा होती है सिनेमाघरों की तरह कुछ खुले पैसे स्क्रीन की तरफ उछाल दे
क्योंकि इस तरह की शादिया, एंटरटेनमेंट स्पाट ज्यादा लगती हैं
आशीर्वाद समारोह तो कहीं से भी नहीं लगते है
स्क्रीन पर पूरा परिवार प्रसन्न होता है अपने बच्चों के इन करतूतों पर
पास में लगा मंच
जहां नव दंपत्ति लाइव
गल - बगियाँ करते हुए मदमस्त दोस्तों और मित्रों के साथ अपने
परिवार से मिले संस्कारों का प्रदर्शन करते हुए दिखते हैं
मंच पर वर-वधू के नाम का बैनर लगा हुआ था
अब वर वधू के नाम के आगे कहीं भी चि० और सौ०का० नहीं लिखा जाता
क्योंकि अब इन शब्दों का कोई सम्मान बचा ही नहीं
इसलिए अंग्रेजी में लिखे जाने लगे है
लेख को ज्यादा लंबा नहीं करूंगा
रिसेप्शन में क्या-क्या
वेराइटीया थी
बताना बेकार हे
क्योंकि वहा इतना कुछ होता है
उसमें किए गए खर्चे से
गरीब परिवार की 25 - 30 कन्याओं का विवाह हो सकता है
रिसोर्ट में होने वाले एक शादी समारोह का कम से कम 25 से 30 लाख खर्च आता है
हमारी संस्कृति को दूषित करने का बीड़ा एसे ही अति संपन्न वर्ग ने अपने कंधों पर उठाए रखा है
ओर ये किसी की सुनने या मानने वाले नहीं होते हे
हम कितने ही सामाजिक नियम बना ले, कितनी ही आचार संहिता बना ले
परंतु कुछ हल नहीं निकलने वाला
समाज में पैदा होने वाली
हर सामाजिक बुराई इन्हीं लोगों की देन है
इन लोगो के परिवार मे हमारी संस्कृति का कोई अंश बचा ही नहीं है
और यह लोग अब अपनी बुराइयां
मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग को देना चाहते हैं
मेरा अपने मध्यमवर्गीय समाज बंधुओं से अनुरोध है
आपका पैसा है , आपने कमाया है
आपके घर खुशी का अवसर है खुशियां मनाएं
पर किसी दूसरे की देखा देखी नही
कर्ज लेकर
अपने और परिवार के मान सम्मान को खत्म मत करिएगा
जितनी आप में क्षमता है उसी के अनुसार खर्चा करिएगा
4 - 5 घंटे के रिसेप्शन में लोगों की जीवन भर की पूंजी लग जाती है
और आप कितना ही बेहतर करें
लोग जब तक रिसेप्शन हॉल में है तब तक आप की तारीफ करेंगे
और लिफाफा दे कर
आपके द्वारा की गई आव भगत की कीमत अदा करके निकल जाएंगे
मेरा युवा वर्ग से भी अनुरोध है कि
अपने परिवार की हैसियत से ज्यादा खर्चा करने के लिए अपने परिजनों को मजबूर न करें
लोगों की झुठी तारीफ से ज्यादा
आपके अपने परिवार की इज्जत और सम्मान अधिक महत्वपूर्ण होता है
आपके इस महत्वपूर्ण दिन के लिए
आपके माता-पिता ने कितने समर्पण किए हैं यह आपको खुद माता-पिता बनने के उपरांत ही पता लगेगा
दिखावे की इस सामाजिक बीमारी को अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित रहने दीजिए
अपना दांपत्य जीवन सर उठा के , स्वाभिमान के साथ शुरू करिए और खुद को
अपने परिवार और अपने समाज के लिए सार्थक बनाइए !
अभी समाज ने कुछ समय पहले प्री वेडिंग सूट को प्रतिबंधित किया था? कितने लोग मान रहे है?समाज कम व्यंजनों की बात करता है?कोई सुनता है क्या?जगह जगह अच्छी बातें बिखरी पड़ी है,अच्छे उदाहरण आंखों के सामने है?अच्छी पहल करते हमने देखा है,कोई नज़र डालता है क्या? बारहवी गंगा प्रसादी की बात 100 साल से समाज कर रहा है,क्या नही हो रही है ?भगवान स्वरूप रामसुख दास जी महाराज पुरजोर शब्दो मे बोल कर गए,परिवार नियोजन मत करो, कोई एक भी सुनता है क्या? सब को पता है,अच्छे सवास्थ्य के लिए नियमित व्यायाम जरूरी है,10 पर्तिशत भी करते है क्या?
इसलिए बेहतर यह रहता है,जो ठीक नही है,जो समाज के लिए अनुकरणीय नही है,जिसके दुष्परिणाम ज्यादा है..हम किसी का इंतजार नही करे, कोई कहे?
बस जब भी अवसर आये, हम पहल करें।इस दुनिया मे अकेले चलने का साहस बहुत कम लोगो मे है।सब भीड़ का हिस्सा बन जाते है। पर पहल करने में जिस जिगर की जरूरत है,वो नही है। बस..हम फिर गेंद इस पाले से उस पाले में डालते रहते है।
।। जय महेश।।
वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह
वृश्चिक राशि वालों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि जो भी कार्य शेष है, जल्दी जल्दी निपटा लें क्योंकि वृश्चिक राशि पर 17 जनवरी 2023 से शनि की ढैया लगने वाली है।
चित्र में दिखाई देने वाला बिच्छू वृश्चिक राशि का प्रतीक चिन्ह है।
अभी जन्मपत्री में जो भी गए स्थिति है अथवा ग्रह दशा आपकी चल रही है (अलग-अलग वृश्चिक राशि वालों की ग्रह स्थिति एवं ग्रह दशा अलग-अलग है) उससे भी ज्यादा समय संघर्ष वाला आने वाला है यही इस उत्तर का मूल स्रोत है। चित्र सोर्स है गूगल इमेजेस ।
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