पंद्रह अगस्त को जहाँ हम स्वतंत्रता दिवस मना रहे
होंगे वहीँ दूसरी ओर अपने राष्ट्रीय झंडे क़ी संरचना करने वाले पिंगली
वेंकैय्या को कोई भी याद तक नहीं करेगा. राष्ट्रीय ध्वज की डिजाईन तैयार
करने वाले स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या का जन्म आन्ध्र प्रदेश के कृष्ण जिले
के “दीवी” तहसील के “भटाला पेनमरू ” नामक गाँव में दो अगस्त 1878 को हुआ
था, उनके पिता का नाम पिंगली ह्न्मंत रायडू एवं माता का नाम वेंकटरत्न्म्मा
था.
पिंगली वेंकैय्या ने प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू एवम मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद १९ वर्ष की उम्र में मुंबई चले गए. वहाँ जाने के बाद उन्होंने सेना में नौकरी कर ली, जहाँ से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया. सन 1899 से 1902 के बीच दक्षिण अफ्रीका के “बायर” युद्ध में उन्होंने भाग लिया. इसी बीच वहाँ पर वेंकैय्या साहब क़ी मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हो गई, वे उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए, स्वदेश वापस लौटने पर मुंबई (तब मुंबई को बम्बई कहा जाता था) में रेलवे में गार्ड की नौकरी में लग गए. इसी बीच मद्रास (जिसे चेन्नई के नाम से पुकारते हैं)में प्लेग नामक महामारी के चलते कई लोंगों की मौत हो गई जिससे उनका मन व्यथित हो उठा, और उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी. वहाँ से मद्रास में प्लेग रोग निर्मूलन इन्स्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए. स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या की संस्कृत ,उर्दू एवम हिंदी आदि भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी. इसके साथ ही वे भू-विज्ञानं एवम कृषि के अच्छे जानकर भी थे.
बात सन 1904 की है जब जापान ने रूस को हरा दिया था. इस समाचार से वे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत जापानी भाषा सीख ली. उधर महात्मा गाँधी जी का खड़ी आन्दोलन चल ही रहा था,इस आन्दोलन ने भी पिंगली वेंकैय्या के मन को बदल दिया. उस समय उन्होंने अमेरिका से कम्बोडिया नामक कपास की बीज का आयात ओउर इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया. जिसे (उनके इस शोध कार्य के लिये) बाद में “वेंकैय्या कपास” के नाम से जाना जाने लगा. उधर ब्रिटिश सरकार ने स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या को “रायल एग्रीकल्चरल सोसायटी ऑफ़ लन्दन “का सदस्य के रूप में मनोनीत कर उनके गौरव को बढाया.
सन 1906 में भातीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसकी अध्यक्षता “ग्रेंड ओल्ड मैन”के नाम से जाने जाने वाले दादा भाई नौरोजी ने की थी, इस सम्मेलन में दादा भाई नौरोजी ने स्व. पिंगली वेंकैय्या के द्वारा निःस्वार्थ भाव से किये गए कार्यों की सरहना की, बाद में उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य मनोनीत कर दिया गया. कांग्रेस के इस अधिवेशन में “यूनियन जैक” का झंडा फहराया गया था, जिसे देख कर स्व. पिंगली वेंकैय्या का मन द्रवित हो उठा. उसी दिन से वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की संरचना में लग गए. 1916 में उन्होंने “ए नेशनल फ्लैग फार इण्डिया” नामक एक पुस्तक प्रकाशित की,जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के तीस नमूने प्रकाशित किये थे. पांच साल बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक सन 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें महात्मा गाँधी जी ने सभी को स्व. पिंगली वेंकैय्या द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी. इसी बैठक में स्व. पिंगली वेंकैय्या जी द्वारा बनाये गए राष्ट्रीय ध्वज क़ी डिजाईन को महात्मा गाँधी ने मान्यता दी. इस सन्दर्भ में महात्मा गाँधी ने “यंग इण्डिया” नामक अख़बार के सम्पादकीय में “आवर नेशनल फ्लैग” शीर्षक से लिखा कि “राष्ट्रीय ध्वज के लिये हमें बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए, वे आगे लिखते हैं कि मछलीपट्टनम के आन्ध्रा कालेज के पिंगली वेंकैय्या ने देश का झंडा के सन्दर्भ एक पुस्तक प्रकाशित क़ी है, जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज से सम्बंधित अनेकों चित्र प्रकाशित किए हैं, जिसके लिये मैं उनके श्रम को देखते हुए उनका आदर करता हूँ”. गाँधी जी अपने सम्पादकीय में आगे लिखते हैं कि “जब मैं विजयवाड़ा के दौरे पर था उस दौरान पिंगली वेंकैय्या ने मुझे हरा एवम लाल रंगों से बने बिना चरखे वाले कई चित्र बनाकर दिए थे. हर झंडे की रूप-रेखा पर उन्हें कम से कम तीन घंटे तो लगे ही थे. मैंने उन्हें एक झंडे में बीच में सफ़ेद रंग की पट्टी डालने की सलाह दी, जिसका उद्देश्य था कि सफ़ेद रंग सत्य व अहिंसा का होता है. उन्होंने इसे तुरंत मान लिया”. इसी के बाद पिंगली वेंकैय्या द्वारा किये गए झंडे का नाम “झंडा वेंकैय्या ” लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया. चार जुलाई 1963 को श्री पिंगली वेंकैय्या का निधन हो गया.
भारतीय डाक-तार विभाग ने 12 अगस्त 2009 को यानि उनके निधन के पूरे 46 साल बाद स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या पर एक पॉँच रुपये का डाक टिकट जारी किया. सीमित संख्या में जारी इस डाकटिकट को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के वरिष्ठ पत्रकार एवं डाक-टिकट संग्राहक मोती चाँद मुथा के पास देखा जा सकता है. दुःख तो इस बात का है कि स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या द्वारा किये गए कार्य की न तो भारत सरकार ने न ही कांग्रेस ने सही ढंग से आदर दिया है
पिंगली वेंकैय्या ने प्रारंभिक शिक्षा भटाला पेनमरू एवम मछलीपट्टनम से प्राप्त करने के बाद १९ वर्ष की उम्र में मुंबई चले गए. वहाँ जाने के बाद उन्होंने सेना में नौकरी कर ली, जहाँ से उन्हें दक्षिण अफ्रीका भेज दिया गया. सन 1899 से 1902 के बीच दक्षिण अफ्रीका के “बायर” युद्ध में उन्होंने भाग लिया. इसी बीच वहाँ पर वेंकैय्या साहब क़ी मुलाकात महात्मा गाँधी जी से हो गई, वे उनके विचारों से काफी प्रभावित हुए, स्वदेश वापस लौटने पर मुंबई (तब मुंबई को बम्बई कहा जाता था) में रेलवे में गार्ड की नौकरी में लग गए. इसी बीच मद्रास (जिसे चेन्नई के नाम से पुकारते हैं)में प्लेग नामक महामारी के चलते कई लोंगों की मौत हो गई जिससे उनका मन व्यथित हो उठा, और उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी. वहाँ से मद्रास में प्लेग रोग निर्मूलन इन्स्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए. स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या की संस्कृत ,उर्दू एवम हिंदी आदि भाषाओं पर अच्छी पकड़ थी. इसके साथ ही वे भू-विज्ञानं एवम कृषि के अच्छे जानकर भी थे.
बात सन 1904 की है जब जापान ने रूस को हरा दिया था. इस समाचार से वे इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने तुरंत जापानी भाषा सीख ली. उधर महात्मा गाँधी जी का खड़ी आन्दोलन चल ही रहा था,इस आन्दोलन ने भी पिंगली वेंकैय्या के मन को बदल दिया. उस समय उन्होंने अमेरिका से कम्बोडिया नामक कपास की बीज का आयात ओउर इस बीज को भारत के कपास बीज के साथ अंकुरित कर भारतीय संकरित कपास का बीज तैयार किया. जिसे (उनके इस शोध कार्य के लिये) बाद में “वेंकैय्या कपास” के नाम से जाना जाने लगा. उधर ब्रिटिश सरकार ने स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या को “रायल एग्रीकल्चरल सोसायटी ऑफ़ लन्दन “का सदस्य के रूप में मनोनीत कर उनके गौरव को बढाया.
सन 1906 में भातीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन कलकत्ता में हुआ, जिसकी अध्यक्षता “ग्रेंड ओल्ड मैन”के नाम से जाने जाने वाले दादा भाई नौरोजी ने की थी, इस सम्मेलन में दादा भाई नौरोजी ने स्व. पिंगली वेंकैय्या के द्वारा निःस्वार्थ भाव से किये गए कार्यों की सरहना की, बाद में उन्हें राष्ट्रीय कांग्रेस का सदस्य मनोनीत कर दिया गया. कांग्रेस के इस अधिवेशन में “यूनियन जैक” का झंडा फहराया गया था, जिसे देख कर स्व. पिंगली वेंकैय्या का मन द्रवित हो उठा. उसी दिन से वे भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की संरचना में लग गए. 1916 में उन्होंने “ए नेशनल फ्लैग फार इण्डिया” नामक एक पुस्तक प्रकाशित की,जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय ध्वज के तीस नमूने प्रकाशित किये थे. पांच साल बाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की बैठक सन 1921 में विजयवाड़ा में हुई तो उसमें महात्मा गाँधी जी ने सभी को स्व. पिंगली वेंकैय्या द्वारा तैयार किये गए राष्ट्रीय ध्वज के चित्रों की जानकारी दी. इसी बैठक में स्व. पिंगली वेंकैय्या जी द्वारा बनाये गए राष्ट्रीय ध्वज क़ी डिजाईन को महात्मा गाँधी ने मान्यता दी. इस सन्दर्भ में महात्मा गाँधी ने “यंग इण्डिया” नामक अख़बार के सम्पादकीय में “आवर नेशनल फ्लैग” शीर्षक से लिखा कि “राष्ट्रीय ध्वज के लिये हमें बलिदान देने को तैयार रहना चाहिए, वे आगे लिखते हैं कि मछलीपट्टनम के आन्ध्रा कालेज के पिंगली वेंकैय्या ने देश का झंडा के सन्दर्भ एक पुस्तक प्रकाशित क़ी है, जिसमें उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज से सम्बंधित अनेकों चित्र प्रकाशित किए हैं, जिसके लिये मैं उनके श्रम को देखते हुए उनका आदर करता हूँ”. गाँधी जी अपने सम्पादकीय में आगे लिखते हैं कि “जब मैं विजयवाड़ा के दौरे पर था उस दौरान पिंगली वेंकैय्या ने मुझे हरा एवम लाल रंगों से बने बिना चरखे वाले कई चित्र बनाकर दिए थे. हर झंडे की रूप-रेखा पर उन्हें कम से कम तीन घंटे तो लगे ही थे. मैंने उन्हें एक झंडे में बीच में सफ़ेद रंग की पट्टी डालने की सलाह दी, जिसका उद्देश्य था कि सफ़ेद रंग सत्य व अहिंसा का होता है. उन्होंने इसे तुरंत मान लिया”. इसी के बाद पिंगली वेंकैय्या द्वारा किये गए झंडे का नाम “झंडा वेंकैय्या ” लोगों के बीच लोकप्रिय हो गया. चार जुलाई 1963 को श्री पिंगली वेंकैय्या का निधन हो गया.
भारतीय डाक-तार विभाग ने 12 अगस्त 2009 को यानि उनके निधन के पूरे 46 साल बाद स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या पर एक पॉँच रुपये का डाक टिकट जारी किया. सीमित संख्या में जारी इस डाकटिकट को महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के वरिष्ठ पत्रकार एवं डाक-टिकट संग्राहक मोती चाँद मुथा के पास देखा जा सकता है. दुःख तो इस बात का है कि स्वर्गीय पिंगली वेंकैय्या द्वारा किये गए कार्य की न तो भारत सरकार ने न ही कांग्रेस ने सही ढंग से आदर दिया है
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